ETV Bharat / city

Special: पाक में यातनाएं झेलने के बाद 47 सालों से न्याय के लिए भटक रहे हैं कुतुबुद्दीन

घर और परिवार के बारे में बिना कुछ सोचे देश के लिए जिंदगी को दांव पर लगाने वाले कुतुबुद्दीन को आज तक न्याय नहीं मिल सका है. उनका कहना है कि रॉ के लिए काम करते थे. पाक में उन्हें पकड़ लिया गया था. वहां जेल में कठोर सजा काटने के बाद जब भारत आए तो यहां भी कोई परिचय पत्र न होने के कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया. यहां भी सजा काटने के बाद अब वे न्याय के सालों से भटक रहे हैं. पीएम, सीएम और सुप्रीम कोर्ट से भी न्याय न मिलने पर वे इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे हैं.

author img

By

Published : Oct 7, 2020, 9:49 PM IST

Detective Qutbuddin pleading for justice
न्याय के लिए गुहार लगा रहे जासूस कुतुबुद्दीन

अजमेर. ख्वाजा गरीब नवाज की नगरी अजमेर निवासी कुतुबुद्दीन की कहानी किसी फिल्म के जैसे ही है. लगभग 47 साल पाकिस्तान की जेल में यातनाएं झेलने के बाद कुतुबुद्दीन आज भी देश के हुक्मरानों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं. उम्र भले ही 70 करीब हो चली है मगर इंसाफ की आस में अभी भी वह भटक रहे हैं. एक ही बात जुबान पर है कि न्याय करो या फिर इच्छा मृत्यु दे दो.

न्याय के लिए गुहार लगा रहे जासूस कुतुबुद्दीन

उनका कहना है कि न्याय के लिए ऐसे कोई दरवाजे नहीं होंगे जहां उन्होंने दस्तक नहीं दी होगी पर लेकिन न्याय नहीं मिला. क्या राष्ट्रपति, क्या मुख्यमंत्री और क्या गृह मंत्रालय भारत सरकार सभी के पास सिर्फ कागज ही घूमते रहे पर इंसाफ कोई नहीं दे पाया.

Family is facing problems
परिवार को झेलनी पड़ रही परेशानी

यहां से हुई कहानी शुरू
कुतुबुद्दीन खिलजी ने बताया कि वे अजमेर में ही पैदा हुए और उनके पिता अलाउद्दीन खिलजी आजादी के बाद से ही मोनिया स्कूल के बाहर रंगाई, छपाई का कार्य किया करते थे. 1970 में मोइनिया स्कूल से हायर सेकेंडरी पास करने के बाद कुतबुदिन की मुलाकात सीआईडी के सिपाही किशन सिंह के जरिए रॉ के अजमेर कार्यालय के अधिकारी महावीर प्रसाद वशिष्ठ से हुई. निदेशक की ओर से साक्षात्कार लेने के बाद कुतुबुद्दीन को रॉ में शामिल तो कर लिया गया लेकिन किसी प्रकार का परिचय पत्र नहीं दिया.

यह भी पढ़ें: Special: चूल्हा-चौका ही नहीं खाकी पहनकर जंगलों की रक्षा भी करती है नारी शक्ति

पाकिस्तान में हुआ दाखिल
कुतुबुद्दीन की माने तो प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उसे पाकिस्तान में सैन्य जासूसी के मिशन पर भेज दिया गया जिसके लिए उसे पैसे भी दिए गए. घर पर बीवी, बच्चों की देखभाल का आश्वासन भी दिया गया. कुतुबुद्दीन मुनाबाव होता हुआ पाकिस्तान पहुंच गया और जासूसी भी पूरी की परंतु लौटते समय पाकिस्तानी गुप्तचर विभाग के हत्थे चढ़ गया, इससे उसे वहां 5 साल जेल में रहना पड़ा. 1978 में भारत लौटने के बाद उसके पास कोई भी परिचय पत्र न होने के कारण अमृतसर जेल में डाल दिया गया.

इसके साथ ही रॉ के लोगों ने भी कुतुबुद्दीन और उसके मिशन के बारे जानकारी से साफ इनकार कर दिया. वहीं उसके परिवार को भी किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं दी गई थी जिस कारण उसकी जिंदगी बदतर हो गई थी.

यह भी पढ़ें: भारत-पाक सीमा के पास पकड़ा गया संदिग्ध, सुरक्षा एजेंसियां करेगी पूछताछ

इससे व्यथित होकर कुतुबुद्दीन ने 1993 में अजमेर की अदालत में अपने हक के लिए फरियाद की जो सक्षम साक्ष्य के अभाव और 13 साल की देरी के कारण खारिज कर दी गई. यही सिलसिला समस्त अपीलों के दौरान कायम रहा तो वही सर्वोच्च न्यायालय ने तो रॉ के कार्य को गोपनीय प्रकृति का बताते हुए इसका समाधान संसद में मुख्यमंत्री पर छोड़ दिया. तब से आज तक वे भारत के राष्ट्रपति सहित मुख्यमंत्री और गृह मंत्रालय, भारत सरकार को कई मर्तबा खत लिख चुके हैं पर कोई समाधान नहीं निकाला.

लेकिन सिर्फ कार्यालयों के मध्य कागज घूमते रहे. न्याय को कुतुबुद्दीन और उसका परिवार आज तक तरस रहा है. कुतुबुद्दीन का कहना है कि उनकी एक ही ख्वाहिश है कि उसकी किस्मत में जो लिखा था वह उसे मिला पर सरकार उसकी उम्र और आर्थिक स्थिति को देखते हुए कुछ रहम करे. उसके बुढ़ापे के सहारे को एक नौकरी दे दे. जीवन भर भटकने के बाद अब इस उम्र में वह अपने परिवार को मरता नहीं देख सकता. इसलिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहा हूं.

अजमेर. ख्वाजा गरीब नवाज की नगरी अजमेर निवासी कुतुबुद्दीन की कहानी किसी फिल्म के जैसे ही है. लगभग 47 साल पाकिस्तान की जेल में यातनाएं झेलने के बाद कुतुबुद्दीन आज भी देश के हुक्मरानों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं. उम्र भले ही 70 करीब हो चली है मगर इंसाफ की आस में अभी भी वह भटक रहे हैं. एक ही बात जुबान पर है कि न्याय करो या फिर इच्छा मृत्यु दे दो.

न्याय के लिए गुहार लगा रहे जासूस कुतुबुद्दीन

उनका कहना है कि न्याय के लिए ऐसे कोई दरवाजे नहीं होंगे जहां उन्होंने दस्तक नहीं दी होगी पर लेकिन न्याय नहीं मिला. क्या राष्ट्रपति, क्या मुख्यमंत्री और क्या गृह मंत्रालय भारत सरकार सभी के पास सिर्फ कागज ही घूमते रहे पर इंसाफ कोई नहीं दे पाया.

Family is facing problems
परिवार को झेलनी पड़ रही परेशानी

यहां से हुई कहानी शुरू
कुतुबुद्दीन खिलजी ने बताया कि वे अजमेर में ही पैदा हुए और उनके पिता अलाउद्दीन खिलजी आजादी के बाद से ही मोनिया स्कूल के बाहर रंगाई, छपाई का कार्य किया करते थे. 1970 में मोइनिया स्कूल से हायर सेकेंडरी पास करने के बाद कुतबुदिन की मुलाकात सीआईडी के सिपाही किशन सिंह के जरिए रॉ के अजमेर कार्यालय के अधिकारी महावीर प्रसाद वशिष्ठ से हुई. निदेशक की ओर से साक्षात्कार लेने के बाद कुतुबुद्दीन को रॉ में शामिल तो कर लिया गया लेकिन किसी प्रकार का परिचय पत्र नहीं दिया.

यह भी पढ़ें: Special: चूल्हा-चौका ही नहीं खाकी पहनकर जंगलों की रक्षा भी करती है नारी शक्ति

पाकिस्तान में हुआ दाखिल
कुतुबुद्दीन की माने तो प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उसे पाकिस्तान में सैन्य जासूसी के मिशन पर भेज दिया गया जिसके लिए उसे पैसे भी दिए गए. घर पर बीवी, बच्चों की देखभाल का आश्वासन भी दिया गया. कुतुबुद्दीन मुनाबाव होता हुआ पाकिस्तान पहुंच गया और जासूसी भी पूरी की परंतु लौटते समय पाकिस्तानी गुप्तचर विभाग के हत्थे चढ़ गया, इससे उसे वहां 5 साल जेल में रहना पड़ा. 1978 में भारत लौटने के बाद उसके पास कोई भी परिचय पत्र न होने के कारण अमृतसर जेल में डाल दिया गया.

इसके साथ ही रॉ के लोगों ने भी कुतुबुद्दीन और उसके मिशन के बारे जानकारी से साफ इनकार कर दिया. वहीं उसके परिवार को भी किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं दी गई थी जिस कारण उसकी जिंदगी बदतर हो गई थी.

यह भी पढ़ें: भारत-पाक सीमा के पास पकड़ा गया संदिग्ध, सुरक्षा एजेंसियां करेगी पूछताछ

इससे व्यथित होकर कुतुबुद्दीन ने 1993 में अजमेर की अदालत में अपने हक के लिए फरियाद की जो सक्षम साक्ष्य के अभाव और 13 साल की देरी के कारण खारिज कर दी गई. यही सिलसिला समस्त अपीलों के दौरान कायम रहा तो वही सर्वोच्च न्यायालय ने तो रॉ के कार्य को गोपनीय प्रकृति का बताते हुए इसका समाधान संसद में मुख्यमंत्री पर छोड़ दिया. तब से आज तक वे भारत के राष्ट्रपति सहित मुख्यमंत्री और गृह मंत्रालय, भारत सरकार को कई मर्तबा खत लिख चुके हैं पर कोई समाधान नहीं निकाला.

लेकिन सिर्फ कार्यालयों के मध्य कागज घूमते रहे. न्याय को कुतुबुद्दीन और उसका परिवार आज तक तरस रहा है. कुतुबुद्दीन का कहना है कि उनकी एक ही ख्वाहिश है कि उसकी किस्मत में जो लिखा था वह उसे मिला पर सरकार उसकी उम्र और आर्थिक स्थिति को देखते हुए कुछ रहम करे. उसके बुढ़ापे के सहारे को एक नौकरी दे दे. जीवन भर भटकने के बाद अब इस उम्र में वह अपने परिवार को मरता नहीं देख सकता. इसलिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इच्छा मृत्यु की मांग कर रहा हूं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.