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स्पेशल स्टोरीः राजस्थान का एक मात्र सिंदूर का पेड़...पवित्र मानकर करते हैं पूजा

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Published : Dec 16, 2019, 11:37 PM IST

सिंदूर का पेड़, जिसे कमीला नाम से भी जाना जाता है, सामान्यतः हिमायल क्षेत्र में पाया जाता है. लेकिन, अजमेर के रहने वाले जाटोलिया परिवार के घर लगा सिंदूर का पेड़ आकर्षण का केंद्र है. वैसे तो बिरले ही लोग जानते होंगे कि सिंदूर का पेड़ भी होता है और यह कुदरत की देन है. आइए जानते हैं इस पवित्र पेड़ के बारे में.

अजमेर न्यूज, ajmer news
अजमेर न्यूज, ajmer news

अजमेर. हिमालय क्षेत्र में उगने वाला सिंदूर का पेड़ रेगिस्तान में पाया जाना दुर्लभ ही है. लेकिन, जिले के कुंदन नगर इलाके में जाटोलिया परिवार के यहां सिंदूर का पेड़ लगा हुआ है. यह पेड़ लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यही वजह है कि लोग कुदरती सिंदूर लेने पेड़ मालिक के पास आते हैं, इतना ही नहीं लोग पेड़ को पवित्र मानने लगे हैं और दीपावली पर इसकी विशेष पूजा भी की जाती है.

अजमेर में सिंदूर का पेड़ बना आकर्षण का केंद्र

बिरले ही लोग जानते होंगे कि सिंदूर को बनाया नहीं जाता है, बल्कि यह कुदरत की देन है. जी हां, सिंदूर के पेड़ को कलीमा भी कहा जाता है, जो सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में ही पाया जाता है. लेकिन अजमेर के जाटोलिया परिवार में राजस्थान का एकमात्र सिंदूर का पेड़ लगा हुआ है. पेड़ लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. लोग पेड़ को पवित्र भाव से देखते हैं और इससे मिलने वाले फल को अपने साथ ले जाते हैं.

पेड़ के मालिक को नहीं पता था, पेड़ सिंदूर का है

पेड़ के मालिक अशोक जाटोलिया बताते हैं कि 3 साल पहले तक उन्हें पता ही नहीं था, कि यह पेड़ सिंदूर का है. 3 वर्ष पहले जब पेड़ पर फल आने लगे, तब पड़ताल करने पर उन्हें इसके बारे में पता चला.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट : जब 120 जवानों ने चटाई थी पाकिस्तान को धूल, सुनें लौगेंवाला युद्ध की कहानी शूरवीरों की जुबानी

जब से सिंदूर के पेड़ के बारे में लोगों को पता चला तब से कोई बालाजी के लगाने, कोई गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए पेड़ से फल ले जाता है. लेकिन, लाल सुर्ख सिंदूर के लिए फल के पकने का इंतजार करना पड़ता है. फल के भीतर निकलने वाले बीच के सूखने के बाद इस रंग लाल या महरून हो जाता है.

पेड़ की करते हैं विशेष देखभाल

पेड़ की पहचान होने के बाद जाटोलिया परिवार सिंदूर के पेड़ की विशेष देखभाल करता है. धार्मिक प्रयोजन से सिंदूर मांगने वालो एवं महिलाओं को निशुल्क सिंदूर दिया जाता है. इस एक मात्र सिंदूर के पेड़ की मान्यता इतनी बढ़ गई कि लोग अब इससे धार्मिक दृष्ठि से देखने लगे हैं.

पढ़ें- गहलोत 'राज' 1 साल : गहलोत सरकार दलित महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न रोकने में फैल, एक रिपोर्ट में दावा

सुनीता जाटोलिया बताती है कि जब महिलाओं को इसके बार में पता चलता है, तो वो उनसे सिंदूर लेना नहीं भूलती. सुनीता बताती हैं कि अजमेर से वैष्णव देवी जाने वाले दर्शनार्थियों के साथ भी वे पेड़ से प्राप्त कुदरती सिंदूर माता को भिजवाती है.

कुदरती रंग और कोई रिएक्शन भी नहीं

बाजार में बिकने वाले सिंदूर और कुदरती सिंदूर में पड़ा फर्क है, इसमें कुदरती रंग का समावेश है और इसको लगाने से कोई रिएक्शन भी नहीं होता. जबकि, बाजार का रसायन युक्त सिंदूर लगाने से रिएक्शन की संभावना रहती है. शादी शुदा महिलाओं के लिए सिंदूर विशेष महत्व रखता है. ऐसे में जब कुदरती सिंदूर मिल जाये तो उसका महत्व और बढ़ जाता है.

अजमेर. हिमालय क्षेत्र में उगने वाला सिंदूर का पेड़ रेगिस्तान में पाया जाना दुर्लभ ही है. लेकिन, जिले के कुंदन नगर इलाके में जाटोलिया परिवार के यहां सिंदूर का पेड़ लगा हुआ है. यह पेड़ लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यही वजह है कि लोग कुदरती सिंदूर लेने पेड़ मालिक के पास आते हैं, इतना ही नहीं लोग पेड़ को पवित्र मानने लगे हैं और दीपावली पर इसकी विशेष पूजा भी की जाती है.

अजमेर में सिंदूर का पेड़ बना आकर्षण का केंद्र

बिरले ही लोग जानते होंगे कि सिंदूर को बनाया नहीं जाता है, बल्कि यह कुदरत की देन है. जी हां, सिंदूर के पेड़ को कलीमा भी कहा जाता है, जो सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में ही पाया जाता है. लेकिन अजमेर के जाटोलिया परिवार में राजस्थान का एकमात्र सिंदूर का पेड़ लगा हुआ है. पेड़ लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. लोग पेड़ को पवित्र भाव से देखते हैं और इससे मिलने वाले फल को अपने साथ ले जाते हैं.

पेड़ के मालिक को नहीं पता था, पेड़ सिंदूर का है

पेड़ के मालिक अशोक जाटोलिया बताते हैं कि 3 साल पहले तक उन्हें पता ही नहीं था, कि यह पेड़ सिंदूर का है. 3 वर्ष पहले जब पेड़ पर फल आने लगे, तब पड़ताल करने पर उन्हें इसके बारे में पता चला.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट : जब 120 जवानों ने चटाई थी पाकिस्तान को धूल, सुनें लौगेंवाला युद्ध की कहानी शूरवीरों की जुबानी

जब से सिंदूर के पेड़ के बारे में लोगों को पता चला तब से कोई बालाजी के लगाने, कोई गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए पेड़ से फल ले जाता है. लेकिन, लाल सुर्ख सिंदूर के लिए फल के पकने का इंतजार करना पड़ता है. फल के भीतर निकलने वाले बीच के सूखने के बाद इस रंग लाल या महरून हो जाता है.

पेड़ की करते हैं विशेष देखभाल

पेड़ की पहचान होने के बाद जाटोलिया परिवार सिंदूर के पेड़ की विशेष देखभाल करता है. धार्मिक प्रयोजन से सिंदूर मांगने वालो एवं महिलाओं को निशुल्क सिंदूर दिया जाता है. इस एक मात्र सिंदूर के पेड़ की मान्यता इतनी बढ़ गई कि लोग अब इससे धार्मिक दृष्ठि से देखने लगे हैं.

पढ़ें- गहलोत 'राज' 1 साल : गहलोत सरकार दलित महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न रोकने में फैल, एक रिपोर्ट में दावा

सुनीता जाटोलिया बताती है कि जब महिलाओं को इसके बार में पता चलता है, तो वो उनसे सिंदूर लेना नहीं भूलती. सुनीता बताती हैं कि अजमेर से वैष्णव देवी जाने वाले दर्शनार्थियों के साथ भी वे पेड़ से प्राप्त कुदरती सिंदूर माता को भिजवाती है.

कुदरती रंग और कोई रिएक्शन भी नहीं

बाजार में बिकने वाले सिंदूर और कुदरती सिंदूर में पड़ा फर्क है, इसमें कुदरती रंग का समावेश है और इसको लगाने से कोई रिएक्शन भी नहीं होता. जबकि, बाजार का रसायन युक्त सिंदूर लगाने से रिएक्शन की संभावना रहती है. शादी शुदा महिलाओं के लिए सिंदूर विशेष महत्व रखता है. ऐसे में जब कुदरती सिंदूर मिल जाये तो उसका महत्व और बढ़ जाता है.

Intro:अजमेर। अजमेर के कुंदन नगर इलाके में सिंदूर का पेड़ लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। बताया जाता है कि यह सिंदूर का पेड़ राजस्थान में एकमात्र है। यही वजह है कि लोग कुदरती सिंदूर लेने पेड़ मालिक के पास आते हैं। इतना ही नहीं लोग पेड़ को पवित्र मानने लगे हैं बल्कि दीपावली पर विशेष कर इसकी पूजा भी की जाती है। देखिए अजमेर से ईटीवी भारत की विशेष स्टोरी


फ़िल्म देवदास का एक प्रसिद्ध डायलॉग है 2 चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानोगे देव बाबू ...वही दो चुटकी सिंदूर सुहाग का प्रतीक माना जाता है। बिरले ही लोग जानते होंगे कि सिंदूर को बनाया नही जाता बल्कि यह कुदरत की देन है। जी हां अजमेर के कुंदन नगर में मौजूद सिंदूर के पेड़ के लिए दावा किया जाता है कि यह पेड़ राजस्थान में एक मात्र है। यही वजह है कि सिंदूर का पेड़ लोगो के लिए आकर्षण का ना केवल केंद्र बन गया है लोग इस पेड़ को पवित्र भाव से देखते है और इससे मिलने वाले फल को अपने साथ ले जाते है ...
बाइट- जगदीश नारायण विजयवर्गीय- पडौसी

तीन साल पहले तक पेड़ के मालिक अशोक जाटोलिया तक को नही पता था कि यह पेड़ सिंदूर का है। तीन वर्ष पहले जब पेड़ पर फल आने लगे तब पड़ताल करने पर उन्हें इसके बारे में पता चला। जब से सिंदूर के पेड़ के बारे में लोगो को पता चला तब से कोई बालाजी के लगाने कोई गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए सिंदूर के पेड़ से फल ले जाता है। लेकिन लाल सुर्ख सिंदूर के लिए फल के पकने का इंतजार करना पड़ता है। फल के भीतर निकलने वाले बीच के सूखने के बाद इस रंग लाल या महरून हो जाता है ...
बाइट- अशोक जाटोलिया- पेड़ मालिक

पेड़ की पहचान होने के बाद जाटोलिया परिवार सिंदूर के पेड़ की विशेष देखभाल करता है। धार्मिक प्रयोजन से सिंदूर मांगने वालो एवं महिलाओं को निशुल्क सिंदूर दिया जाता है। इस एक मात्र सिंदूर के पेड़ की मान्यता इतनी बढ़ गई लोग अब इससे धार्मिक दृष्ठि से देखने लगे है। सुनीता जाटोलिया बताती है कि पार्लर की वजह से महिलाओ का वैसे ही उनके घर मे आना जाना है। सिंदूर के बारे में जब महिलाओं को पता चलता है तो वो उनसे सिंदूर लेना नही भूलती। सुनीता बताती है कि अजमेर से वैष्णव देवी जाने वाले दर्शनार्थियों के साथ भी वे पेड़ से प्राप्त कुदरती सिंदूर माता को भिजवाती है ...
बाइट सुनीता जाटोलिया- मकान मालिक

बाजार में बिकने वाले सिंदूर और कुदरती सिंदूर में पड़ा फर्क है। इसमें कुदरती रंग का समावेश है इसको लगाने से कोई रिएक्शन भी नही होता। जबकि बाजार का रसायन युक्त सिंदूर लगाने से रिएक्शन की संभावना रहती है। शादी शुदा महिलाओं के लिए सिंदूर विशेष महत्व रखता है। ऐसे में जब कुदरती सिंदूर मिल जाये तो उसका महत्व और बढ़ जाता है ....
पीटीसी




Body:प्रियांक शर्मा
अजमेर


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