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गांधी जयंती विशेष: 13 ग्राम का चरखा बनाने वाले 'मधुकांत' की मेहनत लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में है दर्ज

हर साल की तरह इस साल भी 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. भारतीय इतिहास में इनका नाम सबसे प्रेरणादायक महापुरुषों में शुमार है. उन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए निस्वार्थ भाव से योगदान दिया था. यही नहीं गांधी जी एक महान नेता के साथ समाज सुधारक भी थे. उन्होंने जीवन भर निडर होकर लोगों के अधिकारों और सम्मान के लिए संघर्ष किया.

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मधुकांत ने बनाया 13 ग्राम का चरखा
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Published : Oct 2, 2020, 7:27 PM IST

अजमेर. शहर के मधुकांत वत्स ने दुनिया के सबसे छोटे चरखे का निर्माण किया. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चरखे का यह छोटा और सूक्ष्म रूप है. यह छोटा चरखा बिल्कुल बड़े चरखे के समान ही कार्य करता है. वत्स बताते हैं कि वे बचपन से ही गांधी जी के साहित्य और चित्रण को देखते आए हैं, जिसमें उनके साथ चरखे का भी हमेशा से ही उल्लेख रहा है. गांधी जी की किताबों से और उनके विचारों से मधुकांत वत्स हमेशा से ही प्रभावित रहे हैं.

मधुकांत ने बनाया 13 ग्राम का चरखा

गांधी जी के विचारों से वत्स ने मन में एक धारणा बना ली और फिर छोटे चरखे का निर्माण शुरू किया गया, जो देश को चुनौती देने का काम था. वत्स ने इसे 9 जुलाई 2006 में पूरा कर लिया था. वहीं इस चरखे को बनाने में लगभग 6 से 7 महीने का उन्हें समय लगा. अथक प्रयासों के बाद मधुकांत वक्त के द्वारा बनाए गए सबसे छोटे चरखे को अप्रैल 2008 में लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में दर्ज कर लिया गया, जो कि उनके लिए बड़े सौभाग्य की बात थी.

यह भी पढ़ें: स्पेशल: गांधी दर्शन से रूबरू करवाता 'गांधी सेवा सदन स्कूल', उनसे जुड़ी हर वस्तुओं का संग्रहण

बचपन से कलाकृति का रहा शौक

वत्स बताते हैं कि वे गांधी जी से काफी प्रभावित रहे, जिसके बाद लगभग 6 महीने के अथक प्रयास के बाद उनके द्वारा विश्व का सबसे छोटा चरखा बनाया गया. उन्होंने कहा कि स्कूली समय में फादर पिंटो ने उन्हें प्रेरणा दी. वे बचपन से वुडन के काम में माहिर रहे. यह चरखा सागवान की लकड़ी से निर्मित है, जिसमें पीतल के बुश भी है. इसकी समय-समय पर साफ-सफाई भी की जाती है.

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लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में नाम दर्ज

यह भी पढ़ें: गांधी जयंती विशेष: जयपुर के मूर्तिकार ने पेंसिल की लीड पर उकेरी महात्मा गांधी की 1.3 सेंटीमीटर की प्रतिमा

मधुकांत वत्स बताते हैं कि इस चरखे का वजन 13 ग्राम 30 मिलीग्राम है. वहीं इसकी लंबाई लगभग 11 सेंटीमीटर है और इसकी चौड़ाई लगभग 9 सेंटीमीटर है. चरखे को बनाने में 72 ज्वॉइटंस को शामिल किया गया है. यह बड़े चरखे का छोटा और सूक्ष्म रूप है, जिसे वत्स द्वारा बनाया गया. उन्होंने कहा कि इस चरखे में सभी उपकरण उपलब्ध हैं, जो कि बड़े चरखे में सम्मिलित किए गए हैं. वत्स ने कहा कि वे काफी खुश हैं कि उन्होंने देश-दुनिया को चुनौती देते हुए सबसे छोटे चरखे का निर्माण किया, जिसका उल्लेख लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में भी अंकित है.

अजमेर. शहर के मधुकांत वत्स ने दुनिया के सबसे छोटे चरखे का निर्माण किया. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चरखे का यह छोटा और सूक्ष्म रूप है. यह छोटा चरखा बिल्कुल बड़े चरखे के समान ही कार्य करता है. वत्स बताते हैं कि वे बचपन से ही गांधी जी के साहित्य और चित्रण को देखते आए हैं, जिसमें उनके साथ चरखे का भी हमेशा से ही उल्लेख रहा है. गांधी जी की किताबों से और उनके विचारों से मधुकांत वत्स हमेशा से ही प्रभावित रहे हैं.

मधुकांत ने बनाया 13 ग्राम का चरखा

गांधी जी के विचारों से वत्स ने मन में एक धारणा बना ली और फिर छोटे चरखे का निर्माण शुरू किया गया, जो देश को चुनौती देने का काम था. वत्स ने इसे 9 जुलाई 2006 में पूरा कर लिया था. वहीं इस चरखे को बनाने में लगभग 6 से 7 महीने का उन्हें समय लगा. अथक प्रयासों के बाद मधुकांत वक्त के द्वारा बनाए गए सबसे छोटे चरखे को अप्रैल 2008 में लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में दर्ज कर लिया गया, जो कि उनके लिए बड़े सौभाग्य की बात थी.

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बचपन से कलाकृति का रहा शौक

वत्स बताते हैं कि वे गांधी जी से काफी प्रभावित रहे, जिसके बाद लगभग 6 महीने के अथक प्रयास के बाद उनके द्वारा विश्व का सबसे छोटा चरखा बनाया गया. उन्होंने कहा कि स्कूली समय में फादर पिंटो ने उन्हें प्रेरणा दी. वे बचपन से वुडन के काम में माहिर रहे. यह चरखा सागवान की लकड़ी से निर्मित है, जिसमें पीतल के बुश भी है. इसकी समय-समय पर साफ-सफाई भी की जाती है.

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लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में नाम दर्ज

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मधुकांत वत्स बताते हैं कि इस चरखे का वजन 13 ग्राम 30 मिलीग्राम है. वहीं इसकी लंबाई लगभग 11 सेंटीमीटर है और इसकी चौड़ाई लगभग 9 सेंटीमीटर है. चरखे को बनाने में 72 ज्वॉइटंस को शामिल किया गया है. यह बड़े चरखे का छोटा और सूक्ष्म रूप है, जिसे वत्स द्वारा बनाया गया. उन्होंने कहा कि इस चरखे में सभी उपकरण उपलब्ध हैं, जो कि बड़े चरखे में सम्मिलित किए गए हैं. वत्स ने कहा कि वे काफी खुश हैं कि उन्होंने देश-दुनिया को चुनौती देते हुए सबसे छोटे चरखे का निर्माण किया, जिसका उल्लेख लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में भी अंकित है.

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