अजमेर. सबका बोझ उठाने वाले आज अपने परिवार का ही बोझ नहीं उठा पा रहे हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं समाज के उस वर्ग की जिसपर लॉकडाउन होते ही मुसीबताें का पहाड़ टूट पड़ा. कोरोना की मार कुली वर्ग पर सबसे अधिक पड़ी है. रेल संचालन ठप होने के साथ कुली का काम करने वालों के हाथ भी खाली हो गए. 3 महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन ट्रेनों का संचालन शुरु न होने से कुलियों का परिवार मुफलिसी के दौर से गुजर रहा है. दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल नसीब हो पा रही है. ऐसे में उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. ईटीवी भारत ने कुलियों से बातचीत कर उनकी पीड़ा जानी...
इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ होगा कि सबसे जरूरी सेवाओं में शुमार ट्रेनों के संचालन पर रोक लगाई गई हो. राजस्थान सरकार की ओर से अनलॉक-2 शुरू हो चुका है लेकिन कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए रेल सेवाएं नहीं शुरु की गईं हैं जिससे कुलियों का जीवन यापन मुश्किल हो गया है.
आखिर कौन सुनेगा कुलियों की पीड़ा
ईटीवी भारत की टीम जब स्टेशन पर पहुंची तो कुलियों ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि इस महामारी के बीच परिवार पालना भी उनके लिए मुश्किल हो गया है. तीन से चार महीने बीत चुके हैं लेकिन अभी तक कुलियों के लिए केंद्र सरकार की ओर से किसी तरह की कल्याणकारी योजना शुरू नहीं की गई है. कुछ कुलियाें ने बताया कि उनके कई साथी मजदूरी करने को मजबूर हो गए हैं. कुली अशोक ने बताया कि मात्र दो ही ट्रेनों का संचालन वर्तमान में अजमेर रेलवे स्टेशन पर हो रहा है जिससे उनका गुजारा हो पाना मुश्किल है.
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92 कुली हैं अजमेर स्टेशन पर
भीम सिंह ने बताया कि अजमेर रेलवे स्टेशन पर कुल 92 कुली काम करते हैं लेकिन सिर्फ दो ट्रेनों के संचालन से किसी की भी रोजी-रोटी नहीं चल पा रही है. कमाई की बात की जाए तो लॉकडाउन से पहले एक कुली लगभग 10 हजार महीना कमा लेता था लेकिन अब 500 रुपय भी नहीं मिल पा रहे हैं. केंद्र सरकार की और से उनके लिए कोई आर्थिक राहत की योजना नहीं शुरू की गई है. उनका कहना है कि ऐसा ही चलता रहा तो उन्हें परिवार का पेट पालने के लिए भीख मांगने पड़ेगी.
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फिलहाल हो रहा दो ट्रेनों का संचालन
रेलवे स्टेशन पर फिलहाल दो ही ट्रेनों का संचालन किया जा रहा है जिसमें आश्रम एक्सप्रेस और जन शताब्दी एक्सप्रेस शामिल हैं. कोरोना संक्रमण के डर के कारण इस समय ट्रेन में ज्यादा यात्री भी सफर नहीं कर रहे हैं जिससे कमाई भी कुछ खास नहीं हो पा रही है. रात 8 बजे स्टेशन पर हल्की-फुल्की चहल-पहल दिखती है जबकि दिनभर सन्नाटा पसरा रहता है.
लॉकडाउन के बीच केंद्र सरकार और रेलवे प्रशासन की ओर से कुलियों को कोई भी राहत नहीं दी गई. उस बीच भामाशाह द्वारा दिए जा रहे खाने-पीने की सामग्री से ही कुलियों ने अपना परिवार चलाया. कुलियों का कहना है कि जब से ट्रेनों का संचालन ठप हुआ है, वे मजदूरी कर किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार कुलियों की पीड़ा कब सुनेगी, उनका जीवन कब ट्रैक पर आएगा.