अजमेर. रमजान के महीने में रोजों के साथ इबादत का मजा ही कुछ और है. तभी बड़े तो बड़े बच्चे भी इस गर्मी के मौसम मे रोजे के मामले में पीछे नहीं दिख रहे. ख्वाजा साहब की नगरी अजमेर में कोरोना के चलते बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं. ऐसे में नन्हें रोजदार भी अधिक देखे जा सकते हैं. अजमेर में रोजा रखने का चलन इस कदर है कि अब हर घर में छोटे-छोटे बच्चे रोजा रखे हुए हैं.
जहां पांच साल से लेकर 12 साल तक के नन्हें बच्चों ने भी भूखे प्यासे रह कर अल्लाह की राह में रोजा रखा. बच्चे घर में भी अल्लाह की इबादत कर रहे हैं और इस बीमारी से छुटकारा दिलवाने के लिए दुआ भी मांग रहे हैं. एक ओर जहां गर्मी में प्यास और भूख को बड़े-बड़े सहन नहीं कर पाते हैं. वहीं दूसरी ओर पांच साल से लेकर 12 साल तक के नन्हें बच्चे 15 घंटे भूखे प्यासे रह कर रमजान का रोजा रख रहे हैं. अल्लाह की इबादत को अपने रोम-रोम में बसा लेने वाले इन बच्चों को ना तो भूख सताती है और ना ही प्यास. रोजों की चाहत ने इन बच्चों को सबका प्यारा बना दिया है.
पढ़ें- रोजा रख कर गर्भवती मुस्लिम नर्स कोविड केयर सेंटर में निभा रही अपनी ड्यूटी
अपने मां-बाप की मासूम बच्ची लाडली आयशा ने भी रोजा रख कर इस्लाम का एक फर्ज अदा किया तो इसके भाई ने भी अल्लाह की राह में अपनी भूख प्यास मिटा दी और कम उम्र से ही रोजा रखना शुरू कर दिया. आज ये बच्चे अपने घर के बड़ों की तरह इबादत में अपना पूरा वक्त तो बिताते ही हैं, साथ ही स्कूल और अपने दोस्तों में नन्हें रोजेदारो के नाम से भी पहचाने जाने लगे हैं.
सब्र और रहमत के इस पाक महीने में बच्चों की भी संख्या रोजादारों में बढ़ती जा रही अल्लाह की रहमत और रसूल की मोहब्बत इन बच्चों के जीवन में एक नई बहार लाई है. जिसे देख कर बुजुर्ग और जवान रोजेदार भी अल्लाह की इबादत में पूरे एक माह लीन रहने की दुआ मांग रहे हैं. कहा जाता है कि रमजान मुबारक के महीने में एक नेकी का फल सत्तर गुना ज्यादा बढ़ जाता है.