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स्कूलों के 'सरकारी' हाल: अजमेर में 38 स्कूलों में जोखिम उठाकर बच्चे ले रहे हैं शिक्षा, देखें रिपोर्ट

अजमेर की पहचान दशकों पहले शिक्षा नगरी के रूप में थी, लेकिन वक्त के साथ यह पहचान तो धुंधली होती चली गई, आज हालात यह हैं कि जिले में 38 सरकारी स्कूल ऐसे हैं. जहां बच्चों को जोखिम उठाकर शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर हैं. जिन इमारतों में स्कूल संचालित थी वह उचित रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गई है. इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हादसे के डर के साए में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. देखिए स्कूलों के 'सरकारी' हाल पर अजमेर से स्पेशल रिपोर्ट...

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अजमेर की 38 स्कूलों का जर्जर भवन
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Published : Dec 22, 2019, 5:47 PM IST

अजमेर. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्कूलों के विकास के लिए सरकारी तौर पर कई नवाचार हुए, वहीं सरकारी भूमि पर बने स्कूलों की दशा में भी सुधार हुआ. मगर जिले में 38 भवन ऐसे हैं, जिनमें दशकों से सरकारी स्कूल संचालित हैं, लेकिन उनकी कभी मरम्मत नहीं हो पाई, रखरखाव के अभाव में स्कूल के भवनों की हालत बद से बदतर हो गई है. इनमें अधिकांश भवन आजादी से पहले या फिर आजादी के बाद के हैं. इनमें कई भवनों को दानदाताओं ने शिक्षा विभाग को दान किया, लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों एवं अधिकारियों की शिथिलता से उन भवनों का पंजीयन नहीं हो पाया.

अजमेर की 38 स्कूलों का जर्जर भवन..डर के साए में

वर्तमान में अधिकांश भवनों का विवाद कोर्ट में चल रहा है. जिनमें मालिकाना हक एवं किराए को लेकर विवाद है. ऐसे में इन सरकारी स्कूलों के भवनों की हालत इतनी खराब हो गई है कि इनमें हमेशा हादसे का डर बना रहता है. ऐसा नहीं है कि इन स्कूलों में बच्चों को शिक्षा नहीं मिलती. बता दे कि ऐसे तमाम स्कूल रिहायशी क्षेत्रों में है, जिनमें अधिकांश बच्चे गरीब वर्ग के पढ़ते है.

पढ़ें- स्कूलों के 'सरकारी' हाल: जयपुर नगर निगम की ओर संचालित पिंक सिटी स्कूल के हालात बद से बदतर, देखिए रिपोर्ट

राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय
भजन गंज नगर क्षेत्र में राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय है. 260 बालिकाएं स्कूल में अध्यनरत है. तीन वर्षों में स्कूल की 10 छात्राएं गार्गीय पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी है. वहीं 5 बालिका खेल कूद में राष्ट्रीय स्तर तक प्रदर्शन कर चुकी है. ऐसा नही है कि इन स्कूलों के भवनों की मरम्मत के लिए धन की कमी है। समसा की ओर से धन भी दिया जाता है। लेकिन भवन मालिकों की आपत्ति की वजह इनमें आवश्यक मरम्मत के कार्य भी नही हो पा रहे है. दशकों से जर्जर सरकारी स्कूल भवनों की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. अदालतों में चल रहे मुकदमो को लेकर भी सरकार कभी गंभीर नहीं हुई और ना ही सेटलमेंट के जरिये कोई हल निकाला गया. लिहाजा जोखिम उठाकर शिक्षा प्राप्त करना गरीब बच्चों की नियति बन गई है.

पढ़ें- स्कूलों के 'सरकारी' हाल: चहुंमुखी विकास तो छोड़ो, यहां पढ़ाने वाले शिक्षक ही नहीं

राजकीय प्राथमिक विद्यालय के हाल
प्रकाश रोड स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय के भवन की भी यहीं हालत है. छतों पर टिन की चादरें है, दीवारों से प्लस्टर गिरता रहता है. विद्यालय समिति ने दानदाताओ से फर्श ठीक करवा दिया तो स्कूल की मुख्य दीवार का पिलर ढह गया. स्कूल भवन की हालत बेहद खराब होने के बावजूद स्कूल दो पारियों में संचालित होती है. 160 गरीब तबके के बच्चों में उनके उज्ज्वल भविष्य की नींव यहां से डाली जा रही है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट : नाले के पानी के बीच अलवर में पढ़ाई करने को मजबूर हैं बच्चे

दुविधा में शिक्षा विभाग
जर्जर भवनों में स्कूल संचालित करना शिक्षा विभाग के लिए ना निगलते बन रहा है और ना ही उगलते बन रहा है. हालात यह कि इनमें आवश्यक मरम्मत के काम भी नहीं हो रहे है. वहीं स्कूलों से बच्चों को अन्य स्कूल में स्थानांतरित किये जाने से भवन तो हाथ से जाता है, साथ ही गरीब तबके के बच्चों को पढ़ाई छोड़ना मजबूरी बन जाता है, क्योंकि जिन स्कूलों में उन्हें स्थान्तरित करते है वो उनके घरों से काफी दूर है. ऐसे में बालिकाओं को दूर शिक्षा प्राप्त करने के लिए संसाधन शुल्क अभिभवक वहन नहीं कर पाते. ऐसे इन्ही जर्जर भवनों में स्कूल संचालित करना भी मजबूरी बन गया है.

पढ़ें- Special­: भामाशाहों की मदद से स्कूल की काया पलटी, अब प्राइवेट स्कूलों जैसी हो रही पढ़ाई

प्रदेश में सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने लगा है, लेकिन किराए के भवनों में संचालित स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करना मतलब जोखिम उठाना है. बावजूद इसके बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से गरीब तबके अभिभावक यह जोखिम उठा रहे है. छात्र संगठन एनएसयूआई के पूर्व प्रदेश सचिव ईश्वर राजौरिया का कहना है कि सरकार को ऐसे स्कूलों को अधिग्रहण करके इनके रखरखाव की व्यवस्था करनी चाहिए. दशकों से जर्जर सरकारी स्कूल भवनों की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. अदालतों में चल रहे मुकदमो को लेकर भी सरकार कभी गंभीर नहीं हुई और ना ही सेटलमेंट के जरिये कोई हल निकाला गया. लिहाजा जोखिम उठाकर शिक्षा प्राप्त करना गरीब बच्चों की नियति बन गया है.

अजमेर. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्कूलों के विकास के लिए सरकारी तौर पर कई नवाचार हुए, वहीं सरकारी भूमि पर बने स्कूलों की दशा में भी सुधार हुआ. मगर जिले में 38 भवन ऐसे हैं, जिनमें दशकों से सरकारी स्कूल संचालित हैं, लेकिन उनकी कभी मरम्मत नहीं हो पाई, रखरखाव के अभाव में स्कूल के भवनों की हालत बद से बदतर हो गई है. इनमें अधिकांश भवन आजादी से पहले या फिर आजादी के बाद के हैं. इनमें कई भवनों को दानदाताओं ने शिक्षा विभाग को दान किया, लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों एवं अधिकारियों की शिथिलता से उन भवनों का पंजीयन नहीं हो पाया.

अजमेर की 38 स्कूलों का जर्जर भवन..डर के साए में

वर्तमान में अधिकांश भवनों का विवाद कोर्ट में चल रहा है. जिनमें मालिकाना हक एवं किराए को लेकर विवाद है. ऐसे में इन सरकारी स्कूलों के भवनों की हालत इतनी खराब हो गई है कि इनमें हमेशा हादसे का डर बना रहता है. ऐसा नहीं है कि इन स्कूलों में बच्चों को शिक्षा नहीं मिलती. बता दे कि ऐसे तमाम स्कूल रिहायशी क्षेत्रों में है, जिनमें अधिकांश बच्चे गरीब वर्ग के पढ़ते है.

पढ़ें- स्कूलों के 'सरकारी' हाल: जयपुर नगर निगम की ओर संचालित पिंक सिटी स्कूल के हालात बद से बदतर, देखिए रिपोर्ट

राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय
भजन गंज नगर क्षेत्र में राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय है. 260 बालिकाएं स्कूल में अध्यनरत है. तीन वर्षों में स्कूल की 10 छात्राएं गार्गीय पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी है. वहीं 5 बालिका खेल कूद में राष्ट्रीय स्तर तक प्रदर्शन कर चुकी है. ऐसा नही है कि इन स्कूलों के भवनों की मरम्मत के लिए धन की कमी है। समसा की ओर से धन भी दिया जाता है। लेकिन भवन मालिकों की आपत्ति की वजह इनमें आवश्यक मरम्मत के कार्य भी नही हो पा रहे है. दशकों से जर्जर सरकारी स्कूल भवनों की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. अदालतों में चल रहे मुकदमो को लेकर भी सरकार कभी गंभीर नहीं हुई और ना ही सेटलमेंट के जरिये कोई हल निकाला गया. लिहाजा जोखिम उठाकर शिक्षा प्राप्त करना गरीब बच्चों की नियति बन गई है.

पढ़ें- स्कूलों के 'सरकारी' हाल: चहुंमुखी विकास तो छोड़ो, यहां पढ़ाने वाले शिक्षक ही नहीं

राजकीय प्राथमिक विद्यालय के हाल
प्रकाश रोड स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय के भवन की भी यहीं हालत है. छतों पर टिन की चादरें है, दीवारों से प्लस्टर गिरता रहता है. विद्यालय समिति ने दानदाताओ से फर्श ठीक करवा दिया तो स्कूल की मुख्य दीवार का पिलर ढह गया. स्कूल भवन की हालत बेहद खराब होने के बावजूद स्कूल दो पारियों में संचालित होती है. 160 गरीब तबके के बच्चों में उनके उज्ज्वल भविष्य की नींव यहां से डाली जा रही है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट : नाले के पानी के बीच अलवर में पढ़ाई करने को मजबूर हैं बच्चे

दुविधा में शिक्षा विभाग
जर्जर भवनों में स्कूल संचालित करना शिक्षा विभाग के लिए ना निगलते बन रहा है और ना ही उगलते बन रहा है. हालात यह कि इनमें आवश्यक मरम्मत के काम भी नहीं हो रहे है. वहीं स्कूलों से बच्चों को अन्य स्कूल में स्थानांतरित किये जाने से भवन तो हाथ से जाता है, साथ ही गरीब तबके के बच्चों को पढ़ाई छोड़ना मजबूरी बन जाता है, क्योंकि जिन स्कूलों में उन्हें स्थान्तरित करते है वो उनके घरों से काफी दूर है. ऐसे में बालिकाओं को दूर शिक्षा प्राप्त करने के लिए संसाधन शुल्क अभिभवक वहन नहीं कर पाते. ऐसे इन्ही जर्जर भवनों में स्कूल संचालित करना भी मजबूरी बन गया है.

पढ़ें- Special­: भामाशाहों की मदद से स्कूल की काया पलटी, अब प्राइवेट स्कूलों जैसी हो रही पढ़ाई

प्रदेश में सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने लगा है, लेकिन किराए के भवनों में संचालित स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करना मतलब जोखिम उठाना है. बावजूद इसके बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से गरीब तबके अभिभावक यह जोखिम उठा रहे है. छात्र संगठन एनएसयूआई के पूर्व प्रदेश सचिव ईश्वर राजौरिया का कहना है कि सरकार को ऐसे स्कूलों को अधिग्रहण करके इनके रखरखाव की व्यवस्था करनी चाहिए. दशकों से जर्जर सरकारी स्कूल भवनों की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. अदालतों में चल रहे मुकदमो को लेकर भी सरकार कभी गंभीर नहीं हुई और ना ही सेटलमेंट के जरिये कोई हल निकाला गया. लिहाजा जोखिम उठाकर शिक्षा प्राप्त करना गरीब बच्चों की नियति बन गया है.

Intro:अज़मेर। दशकों को पहले अजमेर की पहचान शिक्षा नगरी के रूप में थी लेकिन वक्त के साथ यह पहचान तो मिल होती चली गई आज हालात यह हैं कि जिले में 38 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों को जोखिम उठाकर शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर हैं। दशकों से जिन इमारतों में स्कूल संचालित थी वह उचित रखरखाव के अभाव में जर्जर हो गई है इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हादसे के डर के साए में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्कूलों के विकास के लिए सरकारी तौर पर कई नवाचार हुए वहीं सरकारी भूमि पर बने स्कूलों की दशा में भी सुधार हुआ। मगर जिले में 38 भवन ऐसे हैं जिनमें दशकों से सरकारी स्कूल संचालित हैं लेकिन उनकी कभी मरम्मत नहीं हो पाती है। रखरखाव के अभाव में स्कूल के भवनों की हालत बद से बदतर हो गई है। इनमें अधिकांश भवन आज़ादी से फहले या आज़ादी के बाद के है। इनमें कई भवनों को दानदाताओ ने शिक्षा विभाग को दान किया। लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों एवं अधिकारियों की शिथिलता से उन भवनों का पंजीयन नही हो पाया। वर्तमान में अधिकांश भवनों का विवाद कोर्ट में चल रहा है। जिनमे मालिकाना हक एवं किराए को लेकर विवाद है। ऐसे में इन सरकारी स्कूलों के भवनों की हालत इतनी खराब हो गई है कि इनमें हमेशा हादसे का डर बना रहता है। ऐसा नही है कि इन स्कूलों में बच्चो को शिक्षा नही मिलती। बता दे कि ऐसे तमाम स्कूल रिहायशी क्षेत्रो में है जिनमे अधिकांश बच्चे गरीब वर्ग के पढ़ते है। भजन गंज नगरा क्षेत्र में राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय है। 260 बालिकाएं स्कूल में अध्यनरत है। तीन वर्षों में स्कूल की 10 छात्राएं गार्गीय पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी है। वही 5 बालिका खेल कूद में राष्ट्रीय स्तर तक प्रदर्शन कर चुकी है ....
बाइट- मधु कुमारी- प्राचार्या ( खड़े हुए बाइट )

जर्जर भवनों में स्कूल संचालित करना शिक्षा विभाग के लिए ना निगलते बन रहा है और ना ही उगलते बन रहा है। हालात यह कि इनमें आवश्यक मरम्मत के काम भी नही हो रहे। वही स्कूलों से बच्चो को अन्य स्कूल में स्थानांतरित किये जाने से भवन तो हाथ से जाता है साथ ही गरीब तबके के बच्चो को पढ़ाई छोड़ना मजबूरी बन जाता है। क्योंकि जिन स्कूलों में उन्हें स्थान्तरित करते है वो उनके घरों से काफी दूर है। ऐसे में बालिकाओं को दूर शिक्षा प्राप्त करने के लिए संसाधन शुल्क अभिभवक वहन नही कर पाते। ऐसे इन्ही जर्जर भवनों में स्कूल संचालित करना भी मजबूरी बन गया है ....
बाइट- एके गुप्ता- अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी

ऐसा नही है कि इन स्कूलों के भवनों की मरम्मत के लिए धन की कमी है। समसा की ओर से धन भी दिया जाता है। लेकिन भवन मालिकों की आपत्ति की वजह इनमें आवश्यक मरम्मत के कार्य भी नही हो पा रहे है ....
बाइट- मधु रानी- प्राचार्या- ( बैठे हुए बाइट)

प्रकाश रोड स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय के भवन की भी यही हालत है। छतों पर टिन की चदरे है। दीवारो से मलबा गिरता रहता है। विद्यालय समिति ने दानदाताओ से फर्श ठीक करवा दिया तो स्कूल की मुख्य दीवार का पिलर गिर गया। स्कूल भवन की हालत बेहद खराब होने के बावजूद स्कूल दो पारियों में संचालित होती है। 160 गरीब तबके के बच्चों में उनके उज्ज्वल भविष्य की नींव यहां से डाली जा रही है ....
बाइट- सुशील कुमार- प्रधानाचार्य

प्रदेश में सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने लगा है लेकिन किराए के भवनों में संचालित स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करना मतलब जोखिम उठाना है। बावजूद इसके बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से गरीब तबके अभिभावक यह जोखिम उठा रहे है। छात्र संगठन एनएसयूआई के पूर्व प्रदेश सचिव ईश्वर राजौरिया का कहना है कि सरकार को ऐसे स्कूलों को अधिग्रहण करके इनके रखरखाव की व्यवस्था करनी चाहिए ...
बाइट- ईश्वर राजोरिया पूर्व प्रदेश सचिव एनएसयूआई

दशकों से जर्जर सरकारी स्कूल भवनों की ओर सरकार ने कोई ध्यान नही दिया। अदालतों में चल रहे मुकदमो को लेकर भी सरकार कभी गंभीर नही हुई और ना ही सेटलमेंट के जरिये कोई हल निकाला गया। लिहाजा जोखिम उठाकर शिक्षा प्राप्त करना गरीब बच्चों की नियति बन गया है।








Body:प्रियांक शर्मा
अजमेर


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