पुष्कर (अजमेर). धार्मिक नगरी पुष्कर (Religious City Pushkar) का पांच दिनों तक चलने वाला धार्मिक मेला पंचतीर्थ स्नान के साथ शुरू हो गया. तिथि क्षय के कारण इस वर्ष स्नान के छठवें दिन भी विशेष धार्मिक महत्व रहेगा. देवउठनी एकादशी के दिन श्रद्धालुओं ने सरोवर में डुबकी लगाकर पुजा अर्चना की. 2 वर्षों के अंतराल के बाद धार्मिक मेले में श्रद्धालुओं (Pilgrims) की संख्या भी अधिक देखी गई है.
ऐसी मान्यता है की कार्तिक पंचतीर्थ स्नान (Panchtirth Snaan) में किए स्नान का फल, एक हजार बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान और जो फल कुम्भ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है. जो व्यक्ति कार्तिक के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं, वह वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति पाते हैं.
इन्हीं मान्यताओं के चलते कार्तिक माह की प्रबोधनी एकादशी के दिन धार्मिक नगरी पुष्कर में श्रदालुओ ने पवित्र सरोवर में कोरोना गाइडलाइन (Corona Guideline) के साथ आस्था की डुबकी लगाकर धर्म लाभ प्राप्त किया. महास्नान के लिए सरोवर के घाटों पर प्रात: काल से ही महिला श्रदालुओं का आना शुरू हो गया. श्रदालुओं ने सरोवर के घाटो पर दीपदान कर पूजा -अर्चना की और यथा शक्ति दान -पुण्य किया. सुबह से शुरू हुए स्नान का दौर दिनभर जारी रहा.
पुष्कर के आध्यात्मिक महत्व के पंचतीर्थ महा स्नान का आगाज कार्तिक एकादशी के अवसर पर हो गया. इस अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Chief Minister Ashok Gehlot) ने कस्बे के साधु-संतों की मौजूदगी में पुष्कर सरोवर पर पूजा अर्चना एवं दुग्ध अभिषेक का आयोजन करवाया गया. साथ ही पीसीसी उपाध्यक्ष एवं पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री नसीम अख्तर इंसाफ (PCC Vice President Naseem Akhtar Insaaf) ने प्रदेश वासियों को पुष्कर धार्मिक मेले की बधाई देते हुए मुख्यमंत्री का संदेश सुनाया.
मुख्यमंत्री ने अपने संदेश में प्रदेश में खुशहाली और चहुमुखी विकास की कामना की. गौरतलब है कि पुष्कर के धार्मिक इतिहास में यह पहला मौका था जब सूबे के मुख्यमंत्री द्वारा पुष्कर सरोवर पर दुग्ध अभिषेक पूजा अर्चना कर अपना संदेश भेजा गया था.
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सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद
इस दौरान जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित और जिला पुलिस कप्तान विकास शर्मा ने भी सरोवर पर पूजा अर्चना कर धर्म लाभ कमाया. पुष्कर मेले की व्यवस्थाओं के संबंध में जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित और जिला पुलिस अधीक्षक विकास शर्मा ने बताया कि मेले को लेकर तमाम व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से अंजाम दिया जा रहा है. सुरक्षा व्यवस्थाओ को लेकर पुष्कर सरोवर, जगतपिता ब्रह्मा मंदिर, और पुष्कर मेला मैदान में अतिरिक्त पुलिस जाब्ता तैनात किया गया है. साथ ही क्यूआरटी टीम को भी पुष्कर मेले की व्यवस्थाओं में तैनात किया गया है.
तैंतीस करोड़ देवी -देवता सरोवर में करते हैं वास
तीर्थ पुरोहितों के अनुसार कार्तिक माह में हर वर्ष कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों तक तैंतीस करोड़ देवी -देवता पवित्र सरोवर में वास करते हैं. इन्ही मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए न केवल कार्तिक माह के इन पांच दिनों में बल्कि पुरे कार्तिक माह में देश ओर दुनिया के लाखों श्रदालु पवित्र सरोवर में आस्था की डुबकी लगाने पुष्कर आते है.
इस वर्ष तिथि शय के कारण 19 नवम्बर को भी स्न्नान का विशेष धार्मिक महत्व रहेगा. गौरतलब है कि कोरोना काल के दौरान 2 वर्षों तक रही पाबंदियों के बाद श्रद्धालुओ की आवक में खासा इजाफा देखा गया है. जिसको लेकर सरोवर के सभी घाटों पर पुलिस (Police) और एसडीआरएफ (SDRF) का जाब्ता तैनात रहा.
पुष्कर का गिरधर गोपाल मंदिर जहां मीरा बाई ने ली दीक्षा
पुष्कर में ही मीरा को पहले गुरु मिले थे और यहीं पर उन्होंने वैष्णव दीक्षा ली थी. इस तपोस्थली में जगद्गुरु निंबार्कपीठाधीश्वर परशुराम देवाचार्य ने भी तप किया था. वे भक्त शिरोमणि मीरा बाई के गुरु थे. पुष्कर के ब्रह्म घाट के नजदीक परशुरामद्वारा मंदिर काफी प्राचीन है. अब इस मंदिर को भगवान गिरधर गोपाल से जाना जाता है. मंदिर में बिराजे गिरधर गोपाल की प्रतिमा के बारे बताया जाता है कि यह वही प्रतिमा है जिससे भक्त शिरोमणि मीरा सदैव अपने पास रख भक्ति और सेवा किया करती थीं. बताया जाता है कि बचपन में मीरा अपने ननिहाल रहा करती थी. बाल्यकाल में एक घटना ने मीरा के जीवन को ऐसा बदला की आज मीरा को भक्त शिरोमणि के रूप में पूरा संसार जानता है.
मीरा इस तरह बनी भक्त शिरोमणि
पुष्कर के इतिहास के जानकार तीर्थ पुरोहित पंडित ठाकुर प्रसाद बताते हैं कि मीरा का बाल्यकाल मेड़ता में अपनी ननिहाल में बिता था. एक दिन घर के बाहर से बारात गुजरने पर बालिका मीरा ने अपनी नानी से पूछ लिया कि यह क्या हो रहा है. तब नानी ने कहा कि यह वर की बारात है. तब मीरा ने नानी से पूछा की मेरा वर कौन है. तो नानी ने कह दिया कि तुम्हारे वर गिरधर गोपाल हैं. बस इस दिन से ही मीरा ने अपना सर्वेश्वर गिरधर गोपाल को मान लिया था. इसके बाद मीरा का पूरा जीवन कृष्ण भक्ति में बीता. पंडित ठाकुर प्रसाद बताते हैं कि कृष्ण भक्त मीरा का पुष्कर से भी इतिहास जुड़ा हुआ है. मीरा ने पुष्कर में निंबार्क पीठाधीश्वर परशुराम देवाचार्य से वैष्णव दीक्षा ली थी. बताया जाता है कि मेड़ता से पुष्कर आने के बाद परशुराम देवाचार्य से वैष्णवी दीक्षा लेने के साथ ही उन्हें दिव्य प्रतिमा गिरधर गोपाल की भी दी गई थी.
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पुष्कर तप स्थली, भक्ति स्थली नहीं
मीरा पुष्कर में रहकर कृष्ण भक्ति में लीन होना चाहती थी. तब परशुराम देवाचार्य ने पुष्कर पवित्र धरा में तप के महत्व के बारे में मीरा को बताया. साथ ही उन्होंने मीरा को वृद्धावन जाकर कृष्ण की भक्ति करने की सलाह दी थी. वैष्णवी दीक्षा लेने के बाद मीरा वृंदावन चली गई. यहीं पर मीरा को उनके सर्वेश्वर गिरधर गोपाल के दर्शन भी हुए थे. उन्होंने बताया कि भक्त शिरोमणि मीरा के अंतर्ध्यान होने के पश्चात निम्बार्कपीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर राधा सर्वेश्वर देवाचार्य ने परशुरामद्वारा मंदिर में मीरा के गिरधर गोपाल की प्रतिमा की स्थापना की. वर्तमान में पुष्कर में भगवान गिरधर गोपाल भव्य मंदिर है. मंदिर प्रांगण में ही मंदिर से जुड़ा इतिहास भी शामिल है. परशुराम देवाचार्य ने अपने गुरु हरि व्यास देवाचार्य के निर्देश पर पुष्कर आरण्य क्षेत्र रूपनगढ़ में स्थित सलेमाबाद में निंबार्क पीठ की स्थापना की थी. मंदिर प्रांगण में शिलालेख के अनुसार हरि व्यास देवाचार्य वैष्णव धर्म का प्रचार प्रसार किया करते थे. बताया जाता है कि वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए हरि व्यास देवाचार्य जम्मू भी गए थे जहां माता के मंदिर के नजदीक पशु बलि दी जाती थी, यह देखकर हरि व्यास देवाचार्य माता के दर्शन किये बिना वापस लौटने लगे.
वैष्णो देवी यूं कहलाई माता
तब माता कन्या के रूप में प्रकट हुई और हरि व्यास देवाचार्य को कुछ दिन जम्मू में ही रुकने के लिए कहा. लेकिन उन्होंने पशु बलि को रोकने की शर्त मानने पर ही रुकने के लिए माता से आग्रह किया. कन्या रूप में माता ने हरि व्यास देवाचार्य से वैष्णवी दीक्षा ली. तब से माता वैष्णव देवी कहलाई.
गुरू ने दिखाई मीरा को वृंदावन की राह
पुष्कर के सामाजिक कार्यकर्ता अरुण पाराशर बताते हैं कि भक्त शिरोमणि मीरा को जब कृष्ण भक्ति में सदैव लीन रहने पर उन्हें उनकी ससुराल से निकाल दिया गया था, तब मेड़ता अपने ननिहाल लौटी लेकिन यहां भी उन्होंने पीहर से विरक्त होकर सबसे पहले पुष्कर पहुंची. ब्रह्म नगरी पुष्कर में वैष्णव संप्रदाय के गुरु परशुराम देवाचार्य उन्होंने पहला गुरु बनाया और उनसे दीक्षा ली. पराशर बताते हैं कि परशुराम देवाचार्य ने मीरा की कृष्ण भक्ति को जानकर ही उन्हें कहा था कि यह धर्म क्षेत्र है यहां भक्ति के माध्यम से इस पर को नहीं पाया जा सकता, यहां तप से ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त होता है.
पुष्कर गिरधर गोपाल मंदिर के पुजारी पंडित नवनीत शास्त्री ने बताया कि 523 वर्ष पहले परशुराम देवाचार्य से मिली दीक्षा और दिव्य प्रतिमा को लेकर जब मीरा वृदावन गई तब वहां मीरा ने अपनी असीम भक्ति से विवश होकर कृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए. ऐसा माना जाता है कि मीरा शिरोमणि मीरा देह सहित अपने सर्वेश्वर गिरधर गोपाल में समा गई थी. मीरा के अंतर्ध्यान होने के बाद गिरधर गोपाल की सेव्य प्रतिमा को निंबार्क पीठाधीश्वर की ओर से पुष्कर में परशुरामद्वारा में विराजमान किया गया.
निम्बार्क पीठ है पुष्कर का परशुरामद्वारा
मंदिर के निर्माण से लेकर उसके जीर्णोद्धार और व्यवस्थाओं का जिम्मा निंबार्क पीठ की ओर से ही किया जाता रहा है. सलेमाबाद में वैष्णव संप्रदाय की सबसे बड़ी निंबार्क पीठ आज भी मौजूद है. लाखों वैष्णव संप्रदाय से जुड़े लोगों की आस्था का केंद्र है. सलेमाबाद निंबार्क पीठ पर आने वाले श्रद्धालु पुष्कर में श्री गिरधर गोपाल मंदिर के दर्शनों के लिए जरूर आते हैं.
बता दें कि भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया था. पुष्कर के पवित्र सरोवर के जल को भी नारायण के अश्रु भी माना जाता है और इसी के नजदीक वैष्णव सम्प्रदाय के गुरु परशुरामद्वारा मंदिर में मीरा के गिरधर गोपाल भी बिराजे हैं.