अजमेर. कोरोना महामारी (Corona Epidemic) के चलते लागू हुए लॉकडाउन में हर छोटे बड़े कारोबार को आर्थिक झटका लगा है. इनमें कचरा बीनने वाले और गली-गली घूमकर घरों से कबाड़ लेने वाले वे लोग भी शामिल हैं, जिनका रोजगार लॉकडाउन में छीन गया था. यहां कचरा बीनने वाले करीब दो हजार और कबाड़ का सामान लेने वाले करीब 400 लोग हैं. कबाड़ का सामान खरीदने वाले करीब 250 कबाड़ी भी हैं.
लॉकडाउन के दरमियान कबाड़ का व्यवसाय करने वाले व्यवसायियों की कमर पूरी तरह टूट गई. अपने स्वास्थ्य को खतरे में डालकर कचरा डिपो से उपयोगी सामान निकालने वाले इस व्यवसाय की पहली कड़ी कचरा बीनने और कबाड़ का सामन लेने वाले हैं. प्लास्टिक, टिन, शीशा, गत्ते और कागज को कचरे से बीनकर ये लोग कबाड़ी को बेचते हैं. तौल के भाव से इनको उसके दाम मिलते हैं. रोजाना कचरे से उपयोगी वस्तु निकालने वाले 80 से 450 रुपए तक कमा लेते हैं.
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लॉकडाउन में इन लोगों पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा. इस बीच परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया. कचरा बीनने वाले लोगों ने बताया कि लॉकडाउन में कई बार भूखे भी रहना पड़ा. वहीं पेट भरने के लिए कर्ज भी लिया. हालात यह है कि कबाड़ी को पहले बेचे हुए उपयोगी कचरे का भुगतान भी नहीं हुआ.
पेट की आग बुझाना मजबूरी...
कोरोना महामारी को लेकर जहां लोग साफ-सफाई को लेकर सचेत हुए हैं और सोशल डिस्टेंसिंग व मास्क लगा रहे हैं. ऐसे में ये कचरा बीनने वाले लोग पेट की आग बुझाने के लिए अपने जीवन को संकट में डालकर कचरे में रहकर उपयोगी वस्तुए खोजते हैं. ताकि इन्हें दो वक्त की रोटी मिल जाए और किसी के सामने इन्हें हाथ ना फैलाना पड़े.
दूसरी ओर कचरे के ढेर में खतरा उठाकर खोजे गए उपयोगी कचरे को ये लोग कबाड़ी को बेचते हैं. लॉकडाउन में कबाड़ियों की दुकान बंद होने से कचरा बीनने वालों का रोजगार छीन गया. वहीं कबाड़ अन्य जिलों और राज्यो में नहीं जाने से कबाड़ी का व्यवसाय भी चौपट हो गया. कबाड़ी का कबाड़ बिके तो वो नया कबाड़ खरीदें. कबाड़ व्यवसायी महेश बताते हैं कि कबाड़ बाहर नहीं जा रहा है. लॉकडाउन में कुछ छूट मिलने के बाद भी व्यवसाय को राहत नहीं मिल पा रही है.