जयपुर. प्रदेश के स्कूली पाठ्यक्रम में हुए बदलाव को लेकर राजनीति गरमाई हुई है. वहीं इतिहासकार पाठ्यक्रम में हुए बदलाव पर अपना अपना पक्ष रख रहे हैं. इसी बीच सरकार ने आठवीं कक्षा की अंग्रेजी की किताब में बदलाव किया और किताब से जौहर करने के चित्रों और पाठ को हटा दिया गया. लेकिन इतिहासकार योगेंद्र सिंह नरुका ने इसे गलत ठहराया है.
इतिहासकार योगेंद्र सिंह नरुका का कहना है कि जौहर प्रथा आत्मसम्मान, राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है, जिसका ज्ञान किशोरावस्था में मिलना चाहिए. यहीं नहीं उन्होंने बताया कि जौहर उस समय किया जाता है. जब युद्ध और आत्मरक्षा के सभी विकल्प समाप्त हो जाते हैं, दुश्मन के हाथों पड़ने से बेहतर है कि स्वयं ही आत्मस्वर्ग कर लिया जाए. इस परंपरा को यदि विस्तृत रूप में देखा जाए तो ये मेवाड़ ही नहीं समूचे विश्व में प्रचलित है. चंद्रशेखर आजाद का बलिदान भी जौहर का एक छोटा रूप माना जा सकता हैं, जिसमें उन्होंने अंग्रेजों के हाथों में पड़ने से बेहतर आत्मस्वर्ग करना बेहतर समझा.
नरुका ने बताया कि अगर जौहर प्रथा को पढ़ाना और दिखाना गलत है तो कुछ समय पहले आयी फिल्म पद्मावत के जौहर प्रथा का विरोध सरकार ने क्यों नहीं किया था. जौहर प्रथा बच्चों को पढ़ाया जाता है तो आने वाले समय में हमारे नौजवान आतंकियों की गोली ना खाकर खुद आत्मसम्मान से जौहर करेंगे.
नरुका ने बताया कि सती प्रथा शुरू से अनिवार्य नहीं थी. प्रेम और सतीत्व की रक्षा के लिए जो बलिदान दिया जाता है. उसे सती प्रथा कहते है. ये अनिवार्य और जबरदस्ती नहीं हुआ करती थी. समाज विशेष नहीं बल्कि अन्य समाजों में प्रचलित थी. उदाहरण के तौर पर हम देख सकते हैं कि अलवर की नारायणी देवी जो सैन समाज से थी और अपने पति के साथ में सती हुई थीं. वहीं राजपूत समाज में मीरा बाई थीं. जिन्हें श्री कृष्ण भगवान से प्रेम था. वो अपने पति की मृत्यु के बाद सती नहीं हुई थी.