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हाईकोर्ट ने गुर्जर आरक्षण मामले में ओबीसी आयोग की सिफारिशें पेश करने का दिया आदेश - ओबीसी आरक्षण

हाईकोर्ट ने गुर्जर सहित 5 जातियों को एमबीसी वर्ग में अलग से पांच फीसदी आरक्षण के मामले में ओबीसी आयोग की सिफारियों को पेश करने का आदेश दिया है. अदालत में मामले की अगली सुनवाई के लिए 29 मई की तारीख निश्चित की है.

अभिनव शर्मा, याचिकाकर्ता वकील
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Published : May 10, 2019, 12:06 AM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने गुर्जर सहित 5 जातियों को एमबीसी वर्ग में अलग से पांच फीसदी आरक्षण देने के मामले में जस्टिस एसके गर्ग की रिपोर्ट और ओबीसी आयोग की सिफारिशों को हाई कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं. मुख्य न्यायाधीश एस रविंद्र भट्ट और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने यह आदेश अरविंद शर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. इसके साथ ही अदालत ने प्रकरण की सुनवाई 29 मई को तय की है.

अभिनव शर्मा, याचिकाकर्ता वकील

हाईकोर्ट में मामल की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि जस्टिस गर्ग की रिपोर्ट और ओबीसी आयोग के अध्ययन के बाद ही एमबीसी के तहत 5 फ़ीसदी आरक्षण दिया गया है. ऐसे में दिया गया आरक्षण न्याय संगत है. अदालत को यह भी बताया गया कि आर्थिक पिछड़ों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने से वैसे भी आरक्षण की सीमा 50 फीसदी को पार कर चुकी है. इस पर खंडपीठ ने कहा कि आर्थिक पिछड़ों को दिया 10 फीसदी आरक्षण संविधान के तहत दिया गया है. ऐसे में उसे इस प्रकरण से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता.

याचिका में राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन अधिनियम 2019 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा गया कि राज्य सरकार ने आपात स्थितियों का हवाला देते हुए इन जातियों को शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी नौकरी में पांच फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया है. सरकार ने यह आरक्षण इनकी जनसंख्या के अनुपात को देखते हुए किया है. जबकि संविधान के तहत जनसंख्या के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता. यह सिर्फ पिछड़ेपन के आधार पर ही दिया जा सकता है. इसके अलावा राज्य सरकार ने गुर्जरों के उग्र आंदोलन को रोकने के लिए मजबूरी में यह अधिनियम पारित किया है. सरकार ने रेलवे ट्रैक और हाईवे जाम कर बैठे गुर्जरों से मौके पर जाकर दबाव में यह कार्रवाई की है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने गुर्जर सहित 5 जातियों को एमबीसी वर्ग में अलग से पांच फीसदी आरक्षण देने के मामले में जस्टिस एसके गर्ग की रिपोर्ट और ओबीसी आयोग की सिफारिशों को हाई कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं. मुख्य न्यायाधीश एस रविंद्र भट्ट और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने यह आदेश अरविंद शर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए. इसके साथ ही अदालत ने प्रकरण की सुनवाई 29 मई को तय की है.

अभिनव शर्मा, याचिकाकर्ता वकील

हाईकोर्ट में मामल की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि जस्टिस गर्ग की रिपोर्ट और ओबीसी आयोग के अध्ययन के बाद ही एमबीसी के तहत 5 फ़ीसदी आरक्षण दिया गया है. ऐसे में दिया गया आरक्षण न्याय संगत है. अदालत को यह भी बताया गया कि आर्थिक पिछड़ों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने से वैसे भी आरक्षण की सीमा 50 फीसदी को पार कर चुकी है. इस पर खंडपीठ ने कहा कि आर्थिक पिछड़ों को दिया 10 फीसदी आरक्षण संविधान के तहत दिया गया है. ऐसे में उसे इस प्रकरण से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता.

याचिका में राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन अधिनियम 2019 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा गया कि राज्य सरकार ने आपात स्थितियों का हवाला देते हुए इन जातियों को शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी नौकरी में पांच फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया है. सरकार ने यह आरक्षण इनकी जनसंख्या के अनुपात को देखते हुए किया है. जबकि संविधान के तहत जनसंख्या के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता. यह सिर्फ पिछड़ेपन के आधार पर ही दिया जा सकता है. इसके अलावा राज्य सरकार ने गुर्जरों के उग्र आंदोलन को रोकने के लिए मजबूरी में यह अधिनियम पारित किया है. सरकार ने रेलवे ट्रैक और हाईवे जाम कर बैठे गुर्जरों से मौके पर जाकर दबाव में यह कार्रवाई की है.

Intro:जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने गुर्जर सहित 5 जातियों को एमबीसी वर्ग में अलग से पांच फ़ीसदी आरक्षण देने के मामले में जस्टिस एसके गर्ग की रिपोर्ट और ओबीसी आयोग की सिफारिशों को हाई कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश एस रविंद्र भट्ट और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने यह आदेश अरविंद शर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। इसके साथ ही अदालत ने प्रकरण की सुनवाई 29 मई को तय की है।


Body:सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि जस्टिस गर्ग की रिपोर्ट और ओबीसी आयोग के अध्ययन के बाद ही एमबीसी के तहत 5 फ़ीसदी आरक्षण दिया गया है। ऐसे में दिया गया आरक्षण न्याय संगत है। अदालत को यह भी बताया गया कि आर्थिक पिछड़ों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने से वैसे भी आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी को पार कर चुकी है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि आर्थिक पिछड़ों को दिया 10 फीसदी आरक्षण संविधान के तहत दिया गया है। ऐसे में उसे इस प्रकरण से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता।
याचिका में राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन अधिनियम 2019 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा गया कि राज्य सरकार ने आपात स्थितियों का हवाला देते हुए इन जातियों को शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी नौकरी में पांच फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया है। सरकार ने यह आरक्षण इनकी जनसंख्या के अनुपात को देखते हुए किया है। जबकि संविधान के तहत जनसंख्या के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। यह सिर्फ पिछड़ेपन के आधार पर ही दिया जा सकता है। इसके अलावा राज्य सरकार ने गुर्जरों के उग्र आंदोलन को रोकने के लिए मजबूरी में यह अधिनियम पारित किया है। सरकार ने रेलवे ट्रैक और हाईवे जाम कर बैठे गुर्जरों से मौके पर जाकर दबाव में यह कार्रवाई की है।


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