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साइबर अपराध रोकने के लिए संसदीय समिति ने ये दिया सुझाव

देशभर में साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या से हैरान गृह मामलों की एक संसदीय स्थायी समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को सुझाव दिया है कि वह नागरिक समाज के आईटी विशेषज्ञों के स्वयंसेवी सहायता समूह बनाने पर विचार करे. गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

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Published : Feb 12, 2022, 10:22 PM IST

नई दिल्ली: देशभर में साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या से हैरान गृह मामलों की एक संसदीय स्थायी समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को सुझाव दिया है कि वह समाज के आईटी विशेषज्ञों के स्वयंसेवी सहायता समूह (IT experts from civil society) बनाने पर विचार करे. ताकि इनकी मदद से साइबर चोरों को ट्रैक करने के तरीकों को तैयार करने में मदद मिल सके.

राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि राज्य साइबर अपराधों की जांच के प्रबंधन में जनशक्ति और संसाधनों की कमी का सामना कर रहे हैं. संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा '.. राज्य और केंद्र शासित प्रदेश पुलिस को साइबर अपराधों की तत्काल रिपोर्टिंग के लिए एक साइबर क्राइम हेल्प डेस्क बनाना चाहिए जिससे उनके द्वारा शीघ्र जांच की जा सके. समय पर हस्तक्षेप से ऐसे अपराधों की रोकथाम के साथ-साथ पीड़ितों को राहत मिल सकती है.'

अपराध के मामले बढ़े
समिति ने सुझाव दिया है कि गृह मंत्रालय पर्याप्त धन आवंटित कर सकता है और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में साइबर प्रशिक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना और मौजूदा साइबर प्रशिक्षण बुनियादी ढांचे के सुदृढ़ीकरण और उन्नयन के लिए आवश्यक संसाधनों का विस्तार कर सकता है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, साइबर अपराध के मामले 2018 में 27248 से बढ़कर 2020 में 50035 हो गए हैं. समिति ने पाया कि ये अपराध मुख्य रूप से वित्तीय लेनदेन से संबंधित हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, अपराधी न केवल निर्दोष और कमजोर लोगों, विशेष रूप से बुजुर्ग लोगों को निशाना बनाते हैं और उनकी बचत को ठगते हैं, बल्कि मशहूर हस्तियों को भी शिकार बनाते हैं.

समिति का विचार है कि देश में बढ़ते साइबर अपराधों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है. समिति ने सिफारिश की कि सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (एसवीपीएनपीए), उत्तर पूर्व पुलिस अकादमी (एनईपीए) को राज्य प्रशिक्षण अकादमियों के साथ समन्वय करना चाहिए. साइबर कानूनों, साइबर अपराध जांच, डिजिटल फोरेंसिक के आवश्यक ज्ञान के साथ पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित करना और साइबर अपराधों से निपटने के लिए उन्हें समय-समय पर नए तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, प्रशिक्षण अकादमियों को साइबर प्रौद्योगिकी पर प्रशिक्षक के रूप में साइबर विशेषज्ञों की भर्ती करने की सलाह दी जा सकती है.

समिति ने इस बात पर जोर दिया कि साइबर अपराधों से निपटने के लिए पुलिस कर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दिया गया है. अपराधी तकनीक के जानकार हैं और नियमित आधार पर नए तौर-तरीके अपना रहे हैं.

डार्क वेब का उपयोग, इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआईपी) कॉल आदि से कुछ ऐसे उपकरण हैं जो अपराधियों द्वारा सक्रिय रूप से उपयोग किए जाते हैं लेकिन इनके लिए पुलिस की रणनीति अभी भी विकसित हो रही है.

साइबर अपराध प्रकोष्ठ की अभी ये है स्थिति
'ईटीवी भारत' के पास गृह मंत्रालय के आंकड़ों में कहा गया है कि भारत भर के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 376 साइबर सेल, 1,302 महिला सेल और 262 सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल स्थापित किए हैं. बिहार में सबसे अधिक साइबर सेल (75) हैं, इसके बाद महाराष्ट्र में 47, ओडिशा 34 हैं. विडंबना यह है कि पंजाब, राजस्थान, गोवा, असम जैसे कुछ राज्यों में साइबर अपराध प्रकोष्ठ नहीं है, जबकि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में केवल एक-दो साइबर अपराध प्रकोष्ठ स्थापित किए गए हैं.

पढ़ें- साइबर अपराधों में 11.8% की वृद्धि दर्ज, जानें क्या है वजह

नई दिल्ली: देशभर में साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या से हैरान गृह मामलों की एक संसदीय स्थायी समिति ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को सुझाव दिया है कि वह समाज के आईटी विशेषज्ञों के स्वयंसेवी सहायता समूह (IT experts from civil society) बनाने पर विचार करे. ताकि इनकी मदद से साइबर चोरों को ट्रैक करने के तरीकों को तैयार करने में मदद मिल सके.

राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि राज्य साइबर अपराधों की जांच के प्रबंधन में जनशक्ति और संसाधनों की कमी का सामना कर रहे हैं. संसदीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा '.. राज्य और केंद्र शासित प्रदेश पुलिस को साइबर अपराधों की तत्काल रिपोर्टिंग के लिए एक साइबर क्राइम हेल्प डेस्क बनाना चाहिए जिससे उनके द्वारा शीघ्र जांच की जा सके. समय पर हस्तक्षेप से ऐसे अपराधों की रोकथाम के साथ-साथ पीड़ितों को राहत मिल सकती है.'

अपराध के मामले बढ़े
समिति ने सुझाव दिया है कि गृह मंत्रालय पर्याप्त धन आवंटित कर सकता है और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में साइबर प्रशिक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना और मौजूदा साइबर प्रशिक्षण बुनियादी ढांचे के सुदृढ़ीकरण और उन्नयन के लिए आवश्यक संसाधनों का विस्तार कर सकता है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, साइबर अपराध के मामले 2018 में 27248 से बढ़कर 2020 में 50035 हो गए हैं. समिति ने पाया कि ये अपराध मुख्य रूप से वित्तीय लेनदेन से संबंधित हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, अपराधी न केवल निर्दोष और कमजोर लोगों, विशेष रूप से बुजुर्ग लोगों को निशाना बनाते हैं और उनकी बचत को ठगते हैं, बल्कि मशहूर हस्तियों को भी शिकार बनाते हैं.

समिति का विचार है कि देश में बढ़ते साइबर अपराधों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है. समिति ने सिफारिश की कि सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (एसवीपीएनपीए), उत्तर पूर्व पुलिस अकादमी (एनईपीए) को राज्य प्रशिक्षण अकादमियों के साथ समन्वय करना चाहिए. साइबर कानूनों, साइबर अपराध जांच, डिजिटल फोरेंसिक के आवश्यक ज्ञान के साथ पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित करना और साइबर अपराधों से निपटने के लिए उन्हें समय-समय पर नए तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करना चाहिए. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, प्रशिक्षण अकादमियों को साइबर प्रौद्योगिकी पर प्रशिक्षक के रूप में साइबर विशेषज्ञों की भर्ती करने की सलाह दी जा सकती है.

समिति ने इस बात पर जोर दिया कि साइबर अपराधों से निपटने के लिए पुलिस कर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दिया गया है. अपराधी तकनीक के जानकार हैं और नियमित आधार पर नए तौर-तरीके अपना रहे हैं.

डार्क वेब का उपयोग, इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआईपी) कॉल आदि से कुछ ऐसे उपकरण हैं जो अपराधियों द्वारा सक्रिय रूप से उपयोग किए जाते हैं लेकिन इनके लिए पुलिस की रणनीति अभी भी विकसित हो रही है.

साइबर अपराध प्रकोष्ठ की अभी ये है स्थिति
'ईटीवी भारत' के पास गृह मंत्रालय के आंकड़ों में कहा गया है कि भारत भर के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 376 साइबर सेल, 1,302 महिला सेल और 262 सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल स्थापित किए हैं. बिहार में सबसे अधिक साइबर सेल (75) हैं, इसके बाद महाराष्ट्र में 47, ओडिशा 34 हैं. विडंबना यह है कि पंजाब, राजस्थान, गोवा, असम जैसे कुछ राज्यों में साइबर अपराध प्रकोष्ठ नहीं है, जबकि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में केवल एक-दो साइबर अपराध प्रकोष्ठ स्थापित किए गए हैं.

पढ़ें- साइबर अपराधों में 11.8% की वृद्धि दर्ज, जानें क्या है वजह

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