ETV Bharat / state

लॉकडाउन की सबसे बड़ी त्रासदी मजदूरों पर, घर पहुंचने के लिए संघर्ष जारी

कोरोना महामारी और लॉकडाउन की त्रासदी में अगर कोई सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है, तो शायद ये कहना गलत नहीं होगा कि इस त्रासदी की लिस्ट में सबसे पहला नाम मजदूरों का है. इन गरीब मजदूरों का कोई कसूर नहीं है, लेकिन कुर्बानी के इस सफर में इनका पतन जारी है.

Struggle to reach home
घर पहुंचने के लिए संघर्ष जारी
author img

By

Published : May 12, 2020, 2:51 PM IST

Updated : May 17, 2020, 4:03 PM IST

विदिशा। कोरोना महामारी और लॉकडाउन की त्रासदी में अगर कोई सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है, तो शायद ये कहना गलत नहीं होगा कि इस त्रासदी की लिस्ट में सबसे पहला नाम मजदूरों का है. इन गरीब मजदूरों का कोई कसूर नहीं है लेकिन कुर्बानी के इस सफर में इनका पतन जारी है. फिर चाहे पतन इनकी नौकरी जाने का हो या फिर दो वक्त की रोटी का पतन हो या पटरी और सड़कों के बीच लॉकडाउन की कीमत जिंदगी देकर चुकाने का हो, लेकिन इनका पतन जारी है.

घर पहुंचने के लिए संघर्ष जारी

हम हारेंगे नहीं

विदिशा हाइवे पर मजदूरों की लंबीं कतारें उनके दर्द को बयां कर रही हैं. मुंबई, नासिक, महाराष्ट्र से लौट रहे इन मजदूरों को किसी को उत्तरप्रदेश जाना है तो किसी को बिहार जाना है. लेकिन ये सब अपने पुस्तैनी विरासत की ओर सफर कर रहे हैं. इस सफर में इन्हें कहीं ट्रक तो कहीं साइकिल तो कहीं ऑटो मिल जाता है. और अगर कुछ नहीं मिलता तो पैदल ही इनका सफर तय करते हैं. इस उम्मीद से कि हम रुकेंगे नहीं...हम हारेंगे नहीं... हम थकेंगे नहीं...हम अपनी मंजिल तक जरूर पहुंचेंगे.

साहब हम बहुत परेशान है

मौसम मई का है और तापमान 43 डिग्री. इस हालात में जब मजदूरों के एक जत्थे ने अपनी हिम्मत तोड़ दी तो पेड़ का सहारा ले लिया. लेकिन इस बीच इन मजदूरों को कैमरा देखकर एक उम्मीद जागी और कहने लगे कि साहब बहुत परेशान हैं, हम लोग जहां काम करते थे, वहां से पैसा भी नहीं मिला और अब तो मुझे मेरे घर किसी तरह पहुंचा दिया जाये. मेरा ये संदेश आप सरकार तक पहुंचा देना प्लीज.

सरकार से मदद की उम्मीद

कहने को तो इन दिनों लॉकडाउन के चलते सड़के सूनी दिखती है. लेकिन इन सड़कों पर तपती धूप पर हर वक्त मायूस मजदूरों का सैलाब चलता नजर आता है और इन मजदूरों की तस्वीरें देखकर लगता है कि क्या ये महामारी बेचारे इन्हीं के लिए धरती पर टूट पड़ी है. लिहाजा ये केंद्र और राज्य सरकारों की दावों पर कहीं न कहीं पलीता लगा रही है. लेकिन फिर भी इनमें कैमरा देखकर सरकार से एक उम्मीद की किरण इनके जब्जे को मजबूत कर दिया है और इन्हें ये उम्मीद हुई कि सरकार हमारी मदद करेगी.

भगवान भरोसे भोजन

वहीं कुछ मजदूर जो मध्य प्रदेश की सड़कों पर दौड़ रहे हैं, इनमें एक ऑटो में 7 से 8 लोग भरे हैं. इनके घर पहुंचने का खर्च आठ हजार रुपये आ रहा है वो भी तब जब घर का ऑटो है. वहीं कुछ मजदूरों का कहना है कि शहर में आसपास के लोगों से मांग-मांग कर दिन काटे जब तक कटा और जब कोई सहारा नहीं मिला तो साइकिल से अपने गांव निकल पड़े. हालांकि साइकिल से निकलने वाले एक नहीं सैकड़ों की संख्या में मजदूर है, और ये सब बिहार के हैं. जहां कोई खाना खिला देता है तो खा लेता है वरना भूखे ही सफर पर निकल जाते हैं.

विदिशा। कोरोना महामारी और लॉकडाउन की त्रासदी में अगर कोई सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है, तो शायद ये कहना गलत नहीं होगा कि इस त्रासदी की लिस्ट में सबसे पहला नाम मजदूरों का है. इन गरीब मजदूरों का कोई कसूर नहीं है लेकिन कुर्बानी के इस सफर में इनका पतन जारी है. फिर चाहे पतन इनकी नौकरी जाने का हो या फिर दो वक्त की रोटी का पतन हो या पटरी और सड़कों के बीच लॉकडाउन की कीमत जिंदगी देकर चुकाने का हो, लेकिन इनका पतन जारी है.

घर पहुंचने के लिए संघर्ष जारी

हम हारेंगे नहीं

विदिशा हाइवे पर मजदूरों की लंबीं कतारें उनके दर्द को बयां कर रही हैं. मुंबई, नासिक, महाराष्ट्र से लौट रहे इन मजदूरों को किसी को उत्तरप्रदेश जाना है तो किसी को बिहार जाना है. लेकिन ये सब अपने पुस्तैनी विरासत की ओर सफर कर रहे हैं. इस सफर में इन्हें कहीं ट्रक तो कहीं साइकिल तो कहीं ऑटो मिल जाता है. और अगर कुछ नहीं मिलता तो पैदल ही इनका सफर तय करते हैं. इस उम्मीद से कि हम रुकेंगे नहीं...हम हारेंगे नहीं... हम थकेंगे नहीं...हम अपनी मंजिल तक जरूर पहुंचेंगे.

साहब हम बहुत परेशान है

मौसम मई का है और तापमान 43 डिग्री. इस हालात में जब मजदूरों के एक जत्थे ने अपनी हिम्मत तोड़ दी तो पेड़ का सहारा ले लिया. लेकिन इस बीच इन मजदूरों को कैमरा देखकर एक उम्मीद जागी और कहने लगे कि साहब बहुत परेशान हैं, हम लोग जहां काम करते थे, वहां से पैसा भी नहीं मिला और अब तो मुझे मेरे घर किसी तरह पहुंचा दिया जाये. मेरा ये संदेश आप सरकार तक पहुंचा देना प्लीज.

सरकार से मदद की उम्मीद

कहने को तो इन दिनों लॉकडाउन के चलते सड़के सूनी दिखती है. लेकिन इन सड़कों पर तपती धूप पर हर वक्त मायूस मजदूरों का सैलाब चलता नजर आता है और इन मजदूरों की तस्वीरें देखकर लगता है कि क्या ये महामारी बेचारे इन्हीं के लिए धरती पर टूट पड़ी है. लिहाजा ये केंद्र और राज्य सरकारों की दावों पर कहीं न कहीं पलीता लगा रही है. लेकिन फिर भी इनमें कैमरा देखकर सरकार से एक उम्मीद की किरण इनके जब्जे को मजबूत कर दिया है और इन्हें ये उम्मीद हुई कि सरकार हमारी मदद करेगी.

भगवान भरोसे भोजन

वहीं कुछ मजदूर जो मध्य प्रदेश की सड़कों पर दौड़ रहे हैं, इनमें एक ऑटो में 7 से 8 लोग भरे हैं. इनके घर पहुंचने का खर्च आठ हजार रुपये आ रहा है वो भी तब जब घर का ऑटो है. वहीं कुछ मजदूरों का कहना है कि शहर में आसपास के लोगों से मांग-मांग कर दिन काटे जब तक कटा और जब कोई सहारा नहीं मिला तो साइकिल से अपने गांव निकल पड़े. हालांकि साइकिल से निकलने वाले एक नहीं सैकड़ों की संख्या में मजदूर है, और ये सब बिहार के हैं. जहां कोई खाना खिला देता है तो खा लेता है वरना भूखे ही सफर पर निकल जाते हैं.

Last Updated : May 17, 2020, 4:03 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.