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विश्व पर्यटन दिवस: विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप सांची, मोर्य काल की प्रचीन धरोहर - बेदिसगिरि

सांची का स्तूप विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है. इसका निर्माण अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद सबसे पहले किया था. इस स्तूप की शैल संरचना भारत की सबसे पुरानी संरचना है.

विश्व प्रसिद्ध सांची स्तूप
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Published : Sep 26, 2019, 4:03 PM IST

विदिशा। जिले से मात्र 10 किमी दूर स्थित सांची अपने बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है. यह यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में शामिल है. विश्व प्रसिद्ध सांची स्तूप प्रदेश के मुख्य पर्यटन स्थलों में से एक है. इन स्तूपों को शांति, प्रेम और विश्वास का प्रतीक कहा जाता है. जिसका निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था. इस स्तूप पर बनी कलाकृतियों को देखने देश- विदेश से पर्यटक आते हैं. सांची से मिलने वाले अभिलेखों में इस स्थान को काकनादबोट नाम से दर्शाया गया है.

विश्व प्रसिद्ध सांची स्तूप


सांची स्तूप का निर्माण मौर्य सम्राट ने तीसरी सदी के मध्य में करवाया था. इस स्तूप को लेकर ऐसा माना जाता है, कि इसका निर्माण अशोक ने अपनी पत्नी के सांची में रहने की वजह से करवाया था. कहा जाता है कि चौदहवीं सदी से लेकर 1818 तक जनरल टेलर के इस स्तूप के खोजे जाने तक सांची लोगों की जानकारी से दूर था. जिसके बाद सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में 1912 से लेकर 1919 तक सांची की मरम्मत कराई गई थी, साथ ही संग्रहालय का निर्माण कराया गया था.


सांची स्तूप की मुख्य बातें-

  • स्तूप संख्या-1 भारत की सबसे पुरानी शैल संरचना है.
  • सांची स्तूप में बुद्ध के अवशेष मिलते हैं.
  • स्तूप संख्या एक में ब्राम्ही लिपि के शिलालेख मिलते हैं.
  • स्तूप का व्यास 36.5 मीटर और ऊंचाई लगभग 21.64 मीटर है.
  • बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सबसे पहले अशोक ने इस स्तूप का निर्माण कराया था.
  • बौद्ध धर्म में सांची महत्वपूर्ण स्थल है.
  • इसका निर्माण बौद्ध अध्ययन एवं शिक्षा केंद्र के रूप में किया गया था.
  • सांची का स्तूप बुद्ध के महापरिनिर्वाण का प्रतीक है.
  • अशोक स्तम्भ का निर्माण ग्रीको-बौद्ध शैली में किया गया था.
  • यूनेस्को द्वारा 1989 में इसे विश्व विरासत का दर्जा दिया गया.

सांची को काकनाय, बेदिसगिरि, चैतियागिरि नाम से भी जाना जाता है. भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से कुछ मंदिर भी यहां पर है.

विदिशा। जिले से मात्र 10 किमी दूर स्थित सांची अपने बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है. यह यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में शामिल है. विश्व प्रसिद्ध सांची स्तूप प्रदेश के मुख्य पर्यटन स्थलों में से एक है. इन स्तूपों को शांति, प्रेम और विश्वास का प्रतीक कहा जाता है. जिसका निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था. इस स्तूप पर बनी कलाकृतियों को देखने देश- विदेश से पर्यटक आते हैं. सांची से मिलने वाले अभिलेखों में इस स्थान को काकनादबोट नाम से दर्शाया गया है.

विश्व प्रसिद्ध सांची स्तूप


सांची स्तूप का निर्माण मौर्य सम्राट ने तीसरी सदी के मध्य में करवाया था. इस स्तूप को लेकर ऐसा माना जाता है, कि इसका निर्माण अशोक ने अपनी पत्नी के सांची में रहने की वजह से करवाया था. कहा जाता है कि चौदहवीं सदी से लेकर 1818 तक जनरल टेलर के इस स्तूप के खोजे जाने तक सांची लोगों की जानकारी से दूर था. जिसके बाद सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में 1912 से लेकर 1919 तक सांची की मरम्मत कराई गई थी, साथ ही संग्रहालय का निर्माण कराया गया था.


सांची स्तूप की मुख्य बातें-

  • स्तूप संख्या-1 भारत की सबसे पुरानी शैल संरचना है.
  • सांची स्तूप में बुद्ध के अवशेष मिलते हैं.
  • स्तूप संख्या एक में ब्राम्ही लिपि के शिलालेख मिलते हैं.
  • स्तूप का व्यास 36.5 मीटर और ऊंचाई लगभग 21.64 मीटर है.
  • बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सबसे पहले अशोक ने इस स्तूप का निर्माण कराया था.
  • बौद्ध धर्म में सांची महत्वपूर्ण स्थल है.
  • इसका निर्माण बौद्ध अध्ययन एवं शिक्षा केंद्र के रूप में किया गया था.
  • सांची का स्तूप बुद्ध के महापरिनिर्वाण का प्रतीक है.
  • अशोक स्तम्भ का निर्माण ग्रीको-बौद्ध शैली में किया गया था.
  • यूनेस्को द्वारा 1989 में इसे विश्व विरासत का दर्जा दिया गया.

सांची को काकनाय, बेदिसगिरि, चैतियागिरि नाम से भी जाना जाता है. भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से कुछ मंदिर भी यहां पर है.

Intro: विश्व दिवस पर विशेष
विदिशा से महज 8 किमी.. की दूरी पर स्थित सांची मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले में स्थित एक छोटा सा गाँव है। यहाँ स्थित सांची स्तूप प्रेम, शांति, विश्वास और साहस का प्रतीक है। सांची स्तूप और उसके चारों तरफ बने भव्य तोरण द्वार तथा उन पर की गई मूर्तिकारी भारत की प्राचीन वास्तुकला तथा मूर्तिकला के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक है। सांची से मिलने वाले अभिलेखों में इस स्थान को 'काकनादबोट' नाम से अभिहित किया गया है। सांची की कीर्ति राजपूत काल तक तो बनी रही, किन्तु बाद में यह गुमनामी में खो गया|Body:सांची के स्तूप का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी शती ई.पू में करवाया था |
 ऐसा माना जाता है अशोक ने यहीं इस स्तूप का निर्माण इसलिये कराया क्योंकि उसकी पत्नी देवी, जो विदिशा के एक व्यापारी की बेटी थी, उसका संबंध सांची से था |. चौदहवीं सदी से लेकर वर्ष 1818 में जनरल टेलर द्वारा पुनः खोजे जाने तक सांची सामान्य जन की जानकारी से दूर बना रहा |
 सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में 1912 से लेकर 1919 तक सांची के स्तूप की मरम्मत कराई गयी ।
सर जॉन मार्शल ने 1919 में सांची में पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना की, जिसे बाद में वर्ष 1986 में सांची की पहाड़ी के आधार पर नए संग्रहालय भवन में स्थानांतरित कर दिया गया।. सांची में स्थित स्तूप संख्या-1 या ‘महान स्तूप’ भारत की सबसे पुरानी शैल संरचना है |Conclusion:सांची में स्तूप संख्या-1 या ‘महान स्तूप’ सबसे महत्वपूर्ण स्मारक है |
सांची स्तूप में बुद्ध के अवशेष पाये जाते हैं |
 सांची, विशेष रूप से स्तूप संख्या-1, में ब्राह्मी लिपि के शिलालेख उत्कीर्ण हैं |
. सांची के स्तूप का व्यास 36.5 मी. और ऊँचाई लगभग 21.64 मी. है |

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सबसे पहले जिस स्तूप का निर्माण कराया वह सांची का स्तूप ही था|
. बौद्ध धर्म में सांची ऐतिहासिक महत्व का स्थल है,जबकि बुद्ध ने कभी भी सांची की यात्रा नहीं की थी |
. सांची का निर्माण बौद्ध अध्ययन एवं शिक्षा केंद्र के रूप में किया गया था |
. सारनाथ से मिले अशोक स्तम्भ, जिस पर चार सिंह बने हुये हैं, जैसा ही एक अशोक स्तम्भ सांची से भी मिला है| इन स्तंभों का निर्माण ग्रीको-बौद्ध शैली में किया गया था |
. सांची का स्तूप बुद्ध के ‘महापरिनिर्वाण’ का प्रतीक है|
 वर्ष 1989 में इसे युनेस्को द्वारा ‘विश्व विरासत स्थल’ का दर्जा प्रदान किया गया |
ऐंसा भी कहा जाता है सम्राट अशोक ने दुनिया भर में 84हजार स्तुपो का निर्माण कराया पहले नंबर का स्तूप साँची का माना जाता है बौद्ध धर्म मे आस्था रखने वालों का साँची बड़ा केंद्र है ।
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