उमरिया। पलाश के पेड़ो में लदे टेसू के फूलों ने जंगलों की खूबसूरती से लेकर सड़कों की रौनक बढ़ा दी है. शहर से लेकर गांव तक सड़क किनारे से लेकर जंगलों तक चारों ओर धधकते अंगार की तरह टेसू के पेड़ो पर पलाश के फूलों की बहार आ गई है, जिससे वातावरण की सुंदरता देखते ही बनती. सड़क किनारे लगे पलाश के पेड़ में आए फूलों ने सड़कों की रौनक बढ़ा दी है, तो वहीं जंगल में फूले टेसू से ऐसा प्रतीत होता है मानो जंगल में आग लग गई हो. वातावरण इन दिनों ऐसा लगने लगा है, मानो पेड़ को किसी ने दहकते अंगारे लगा रखे हों.
वसंत काल में पलाश: टेसू के फूल अत्यंत आकर्षक होते हैं. इसके आकर्षक फूलों के कारण इसे जंगल की आग की संज्ञा से भी अभिहित किया गया है. जंगलों में इस समय टेसू के फूल इठला और इतरा रहे हैं. जंगल की खूबसूरती पर चार चांद लगा रहे हैं. उमरिया सहित पूरे विन्ध्य क्षेत्र में टेसू पेड़ों की मात्रा बहुतायत हैं. आमतौर पर इसके फूल को टेसू कहा जाता है. वसंत काल में पलाश का पत्रहीन परन्तु लाल फूलों से लदा हुआ वृक्ष अत्यंत नेत्रसुखद होते ही हैं. इसीलिए संस्कृत, हिन्दी, बंगला सहित अन्य भाषाओं के कवि व साहित्यकारों ने वसंत काल में इसकी सौंदर्यता के वर्णन में वृहत पद्य व गद्य साहित्य का निर्माण किया है. टेसू के फूल अत्यंत सुंदर होने के बावजूद गंधहीन होते हैं. इस वृक्ष को पलास, छूल, छुउल, परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, अदि नामों से भी जाना जाता है. संस्कृत में यह किंशुक नाम से जाना जाता है.
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टेसू के फूलों से प्रकृति का श्रृंगार: अप्रतिम सुंदरता की मूर्ति सरीखे पलाश के रक्ताभ फूल बसंत के आगमन होते ही खिलना शुरू हो जाते हैं. पेड़ों पर लदे टेसू के फूलों की ओर नजर पड़ते ही लोगों का मन मोह रहे हैं. वसंत काल में वायु के झोंकों से हिलती हुई पलाश की शाखाएं वन की ज्वाला के समान लग रहीं हैं और इनसे ढकी हुई धरती लाल साड़ी में सजी हुई कोई नववधू के समान लग रही हैं. छोटे अर्द्ध चंद्राकार गहरे लाल पलाश पुष्प मध्य फाल्गुन से ही जंगलों में दिखाई देने लगते हैं, जो चैत्र मास के अंत तक दिखाई देंगे.