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Bandhavgarh Tiger Reserve : पर्यटकों के साथ ही गाइड व फोटोग्राफर्स को भी साइबेरियन पक्षियों का इंतजार

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (Bandhavgarh Tiger Reserve) में अमूमन अक्टूबर माह के अंत तक ठंड के मौसम में साइबेरियन पक्षियों का आना शुरू हो जाता है. लेकिन इस साल नवम्बर आ गया और अभी तक साइबेरियन पक्षियों का आना नहीं (Waiting Siberian birds) हुआ. ये पक्षी रूस के साइबेरिया इलाके से आते हैं. ये आपको हर साल यहां हजारों की संख्या में नजर आ जाएंगे. ये ऐसे पक्षी हैं जो हवा में उड़ते हैं और पानी में भी तैरते हैं. सफेद रंग के इन पक्षियों की चोंच और पैर नारंगी रंग के होते हैं. साइबेरिया बहुत ही ठंडी जगह है, जहां नवंबर से लेकर मार्च तक तापमान जीरो से 50 से 60 डिग्री नीचे चला जाता है. इस तापमान में इन पक्षियों का जिंदा रह पाना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसीलिए ये पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी करके भारत आते हैं.

Bandhavgarh wait Siberian birds
बांधवगढ़ में पर्यटकों को इंतजार साइबेरियन पक्षियों का
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Published : Nov 8, 2022, 7:00 PM IST

उमरिया। मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में साइबेरिया की तुलना में बहुत कम ठंड पड़ती है और यहां के जंगलों का माहौल इन पक्षियों के जीवित रहने के लिए अच्छा है. लेकिन इनका सफर इतना आसान नहीं होता. रास्ते में बहुत सी मुश्किलें आती हैं. आंधी, तूफान और तेज हवाओं से कई पक्षी अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं. लेकिन फिर भी हर साल भयानक ठंड से भागते हुए वो भारत की ओर रुख करते हैं. जीवों में माइग्रेशन यानी प्रवास एक बहुत आम प्रक्रिया है. एक ही प्रजाति के जीवों में मौसम की वजह से बहुत बड़ी संख्या में एक साथ दूसरे स्थान पर चले जाने की प्रक्रिया को माइग्रेशन कहते हैं.

माइग्रेशन करते हैं पक्षी : यह माइग्रेशन अक्सर एक तय तरीके से बार-बार हर साल किया जाता है. यानी जैसे ही मौसम खराब हुआ ये जीव अपना घर छोड़कर किसी दूसरी जगह चले गए और मौसम ठीक होते ही वापस अपने घर आ जाते हैं. साइबेरियन पक्षियों के अलावा भी इसके बहुत से उदाहरण हैं. अधिकतर यही होता है कि जिन इलाकों में बहुत अधिक ठंड पड़ती है, वहां के जीव दूसरी जगह बेहतर भोजन, प्रजनन और सुरक्षा के लिए चले जाते हैं. दरअसल, साइबेरियन पक्षियों के क्षेत्र में इस मौसम में बर्फ जम जाती है जिसकी वजह से उनके सामने खाने पीने की समस्या उत्पन्ना होने लगती है. इसलिए यह पक्षी बर्फ जमने से पहले ही अपना क्षेत्र छोड़ देते हैं और भारत का रुख कर लेते हैं.

वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर को इंतजार : इस बारे में वन्य पक्षियों की जानकारी रखने वाले नरेन्द्र बगड़िया ने बताया कि भारत के जंगलों में ठंड के दौरान भी इन पक्षियों को अच्छा भोजन मिल जाता है. दूर देश से आने वाले इन पक्षियों का बांधवगढ़ में लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं. बांधवगढ़ में इन पक्षियों के चाहने वालों की कमी नहीं है. बहुत से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर जो सिर्फ पक्षियों के ही फोटो लेते हैं, उन्हें इनका सबसे ज्यादा बेसब्री से इंतजार रहता है. दुनिया भर के कई फोटोग्राफर सर्दियों की छुट्टी में यहां पहुंचते हैं और बाहर से आने वाले इन पक्षियों का फोटो लेते हैं.

साइबेरियन पक्षियों को बेसन के सेव खिलाने पर लगा प्रतिबंध, बिगड़ने लगी थी पक्षियों की सेहत

बांधवगढ़ में 254 प्रकार के पक्षी : बांधवगढ़ में 254 प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं. इनमें से कुछ सामान्य हैं- ग्रेब, अगरेट, लेसर एडजुटेंट, सारस, क्रेन, ब्लैक आइबिस, लैसर विसलिंग टीज, सफेद आँखों वाले बजार्ड, ब्लैक काइट, क्रेस्टेड सर्पेंट इंगल, काला गीध, इजिप्शन गीध, सामान्य पी फाउल, लाल जंगली फाउल, डव, पाराकिट, किंगफिशर और इंडियन रोलर. विदेश से आने वाले पक्षीवन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यहां हर साल ठंड के मौसम में प्रवासी पक्षी आते हैं. इसमें साइबेरियन क्रेन, गे्रट फलेनिंगों, ब्लैकविंग, कॉमनटील, नार्दन पिनटेल, सारस, क्रेन, सोवलर गीज, छोटी मुर्गाबी एवं एशियन स्टार्क जैसे परिंदे शामिल हैं. ये पक्षी पूर्वी साइबेरिया, रूस व कजाकिस्तान सहित अन्य स्थानों से आते हैं. इस समय इन पक्षियों के क्षेत्र में बर्फ जम जाती है. कंपकंपाने वाली ठंडी में पक्षियों को भोजन का संकट उत्पन्न हो जाता है. इस कारण ये पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर भारत आते हैं.

उमरिया। मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में साइबेरिया की तुलना में बहुत कम ठंड पड़ती है और यहां के जंगलों का माहौल इन पक्षियों के जीवित रहने के लिए अच्छा है. लेकिन इनका सफर इतना आसान नहीं होता. रास्ते में बहुत सी मुश्किलें आती हैं. आंधी, तूफान और तेज हवाओं से कई पक्षी अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं. लेकिन फिर भी हर साल भयानक ठंड से भागते हुए वो भारत की ओर रुख करते हैं. जीवों में माइग्रेशन यानी प्रवास एक बहुत आम प्रक्रिया है. एक ही प्रजाति के जीवों में मौसम की वजह से बहुत बड़ी संख्या में एक साथ दूसरे स्थान पर चले जाने की प्रक्रिया को माइग्रेशन कहते हैं.

माइग्रेशन करते हैं पक्षी : यह माइग्रेशन अक्सर एक तय तरीके से बार-बार हर साल किया जाता है. यानी जैसे ही मौसम खराब हुआ ये जीव अपना घर छोड़कर किसी दूसरी जगह चले गए और मौसम ठीक होते ही वापस अपने घर आ जाते हैं. साइबेरियन पक्षियों के अलावा भी इसके बहुत से उदाहरण हैं. अधिकतर यही होता है कि जिन इलाकों में बहुत अधिक ठंड पड़ती है, वहां के जीव दूसरी जगह बेहतर भोजन, प्रजनन और सुरक्षा के लिए चले जाते हैं. दरअसल, साइबेरियन पक्षियों के क्षेत्र में इस मौसम में बर्फ जम जाती है जिसकी वजह से उनके सामने खाने पीने की समस्या उत्पन्ना होने लगती है. इसलिए यह पक्षी बर्फ जमने से पहले ही अपना क्षेत्र छोड़ देते हैं और भारत का रुख कर लेते हैं.

वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर को इंतजार : इस बारे में वन्य पक्षियों की जानकारी रखने वाले नरेन्द्र बगड़िया ने बताया कि भारत के जंगलों में ठंड के दौरान भी इन पक्षियों को अच्छा भोजन मिल जाता है. दूर देश से आने वाले इन पक्षियों का बांधवगढ़ में लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं. बांधवगढ़ में इन पक्षियों के चाहने वालों की कमी नहीं है. बहुत से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर जो सिर्फ पक्षियों के ही फोटो लेते हैं, उन्हें इनका सबसे ज्यादा बेसब्री से इंतजार रहता है. दुनिया भर के कई फोटोग्राफर सर्दियों की छुट्टी में यहां पहुंचते हैं और बाहर से आने वाले इन पक्षियों का फोटो लेते हैं.

साइबेरियन पक्षियों को बेसन के सेव खिलाने पर लगा प्रतिबंध, बिगड़ने लगी थी पक्षियों की सेहत

बांधवगढ़ में 254 प्रकार के पक्षी : बांधवगढ़ में 254 प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं. इनमें से कुछ सामान्य हैं- ग्रेब, अगरेट, लेसर एडजुटेंट, सारस, क्रेन, ब्लैक आइबिस, लैसर विसलिंग टीज, सफेद आँखों वाले बजार्ड, ब्लैक काइट, क्रेस्टेड सर्पेंट इंगल, काला गीध, इजिप्शन गीध, सामान्य पी फाउल, लाल जंगली फाउल, डव, पाराकिट, किंगफिशर और इंडियन रोलर. विदेश से आने वाले पक्षीवन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यहां हर साल ठंड के मौसम में प्रवासी पक्षी आते हैं. इसमें साइबेरियन क्रेन, गे्रट फलेनिंगों, ब्लैकविंग, कॉमनटील, नार्दन पिनटेल, सारस, क्रेन, सोवलर गीज, छोटी मुर्गाबी एवं एशियन स्टार्क जैसे परिंदे शामिल हैं. ये पक्षी पूर्वी साइबेरिया, रूस व कजाकिस्तान सहित अन्य स्थानों से आते हैं. इस समय इन पक्षियों के क्षेत्र में बर्फ जम जाती है. कंपकंपाने वाली ठंडी में पक्षियों को भोजन का संकट उत्पन्न हो जाता है. इस कारण ये पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर भारत आते हैं.

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