बस्तर। अनोखी परंपराओ के लिये दुनिया भर में मशहूर बस्तर दशहरा की शुरुआत काछनदेवी की अनुमति के साथ ही हो गया. दशहरा पर्व शुरु करने की अनुमति लेने की यह रस्म काफी अनुठी है (bastar dussehra rituals). इसमें काछन देवी एक कुंवारी कन्या पर सवार होती हैं. वह बच्ची ही काछन गादी की रस्म को पूरा करती है और बस्तर राज परिवार को बस्तर दशहरा शुरु करने की आज्ञा देती है. इस बार 6 साल की बच्ची पीहू ने बेल के कांटों से बने झूले में लेटकर दशहरा शुरू करने की अनुमति दी. पिछले 2 साल से कोरोना की वजह से इस रस्म में केवल बस्तर राजपरिवार ही शामिल हो रहा था. मगर अबकी बार आम जनता के साथ ही देवी देवताओं को निमंत्रण दिया गया है. लिहाजा काछन गादी की रस्म निभाते वक्त हजारों की तादाद में लोग जुटे और 610 साल पुरानी परंपरा को निभाते देखा. (Bastar Dussehra 2022 Started)
सैंकड़ों साल पुरानी काछन गादी परंपरा: तकरीबन 610 सालों से चली आ रही इस परंपरा की मान्यता बेल के कांटों के झूलने वाली कन्या है जिसके भीतर साक्षात देवी आती हैं. उन्ही के निर्देश पर बस्तर दशहरा की शुरुआत होती है. बस्तर का सबसे बड़ा लोकपर्व निर्विघ्न संपन्न हो इसी उम्मीद के साथ मन्नत मांगी जाती है और देवी काछन का आशीर्वाद लिया जाता है. काछन देवी का रूप मिर्घान जनजाति की कुंआरी कन्या पीहू ने निभाया. पीहू देवी स्वरुप में बेल के कांटों के लेटी और महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिए अनुमति दी. यह रस्म पितृमोक्ष अमावस्या को निभाई जाती है. बस्तर राज परिवार यह अनुमति देवी से लेने इस बार भी काछन गुडी पहुंचे. (Bastar Dussehra 2022 Started) (Navratri 2022 Ghatasthapana) (Kachan Gaadi ritual Bastar Dussehra)
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जानें क्या है बस्तर दशहरे की खासियत
- दशहरे के दौरान पूरा देश जहां रावणदहन कर विजयादशमी का पर्व मनाता है. इन सबसे अलग कभी रावण की नगरी रहे बस्तर में आज भी रावणदहन नहीं किया जाता है.
- बस्तर में एतिहासिक विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व की पहली और मुख्य रस्म पाटजात्रा होती है, हरियाली के अमावस्या के दिन यह रस्म अदायगी के साथ बस्तर में दशहरा पर्व की शुरुआत होती है.
बस्तर दशहरे की पहली रस्म
परंपरा के मुताबिक इस रस्म में बिंरिगपाल गांव से दशहरा पर्व के रथ निर्माण के लिए लकड़ी लाई जाती है, जिससे रथ के चक्के का निर्माण किया जाता है.
हरियाली के दिन विधि विधान से पूजा के बाद इसी लकड़ी से विशाल रथ का निर्माण किया जाता है.
बस्तर दशहरे की दूसरी रस्म
- बस्तर दशहरा की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म डेरी गड़ाई होती है. मान्यताओं के अनुसार इस रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरे के लिए रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है.
- सैकड़ों सालों से चली आ रही इस परंपरा के मुताबिक बिरिंगपाल से लाई गई सरई पेड़ की टहनियों को एक विशेष स्थान पर स्थापित किया जाता है.
- विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना कर इस रस्म कि अदायगी के साथ ही रथ निर्माण के लिए माई दंतेश्वरी से आज्ञा ली जाती है. (bastar raj parivar) (Maa Danteshwari)
बस्तर दशहरे की तीसरी रस्म:
- 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरे की तीसरी प्रमुख पंरपरा है रथ परिक्रमा. रथ परिक्रमा के लिए रथ का निर्माण किया जाता है, इसी रथ पर मां दंतेश्वरी देवी को बिठकार शहर की परिक्रमा कराई जाती है.
- लगभग 30 फीट ऊंचे इस विशालकाय रथ को परिक्रमा कराने के लिए 400 से अधिक आदिवासी ग्रामीणों की जरूरत पड़ती है.
- रथ निर्माण में प्रयुक्त सरई की लकड़ियों को एक विशेष वर्ग के लोगों द्वारा लाया जाता है. बेड़ाउमर और झाडउमर गांव के ग्रामीण आदिवासियों द्वारा 14 दिनों में इन लकड़ियों से रथ का निर्माण किया जाता है.
काछनगादी की रस्म (Kachan Gaadi ritual)
- बस्तर दशहरा का आरंभ देवी की अनुमति के बाद होता है. दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति लेने की यह परंपरा भी अपने आप में अनूठी है, काछन गादी नामक इस रस्म में एक नाबालिग कुंवारी कन्या कांटों के झूले पर लेटकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है.
- इस परंपरा की मान्यता अनुसार कांटों के झूले पर लेटी कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती हैं. अनुसूचित जाति के एक विशेष परिवार की कुंआरी कन्या विशाखा बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है, 15 वर्षीय विशाखा पिछले सात साल से काछनदेवी के रूप में कांटों के झूले पर लेटकर सदियों पुरानी इस परंपरा को निभाती आ रही हैं.
- नवरात्र के पहले दिन बस्तर की अराध्य देवी माई दंतेश्वरी के दर्शन के लिए हजारों की संख्या मंदिर पहुंचते हैं और मनोकामना दीप जलाते हैं.
बस्तर जोगी बिठाई की रस्म: (Bastar Jogi Bithai Tradition) बस्तर दशहरा की एक और अनूठी और महत्वपूर्ण रस्म जोगी बिठाई है, जिसे शहर के सिरहासार भवन में पूर्ण विधि विधान के साथ संपन्न किया जाता है. इस रस्म में एक विशेष जाति का युवक प्रति वर्ष नौ दिनों तक निर्जल उपवास रख सिरहासारभवन स्थित एक निश्चित स्थान पर तपस्या के लिए बैठता है.
बस्तर रथ परिक्रमा: इसके बाद होती है बस्तर दशहरे की अनूठी रस्म रथ परिक्रमा. इस रस्म में बस्तर के आदिवासियों द्वारा पारंपरिक तरीके से लकड़ियों से बनाए लगभग 40 फीट ऊंचे रख पर माई दंतेश्वरी के छत्र को बिठाकर शहर में घुमाया जाता है. 40 फीट ऊंचे और 30 टन वजनी इस रथ को सैंकड़ों ग्रामीण मिलकर खींचते हैं.
बस्तर निशा जात्रा की रस्म: (Bastar Nisha Jatra)
- बस्तर दशहरे की सबसे अद्भुत रस्म निशा जात्रा होती है. इस रस्म को काले जादू की रस्म भी कहा जाता है. प्राचीन काल में इस रस्म को राजा महाराजा बुरी प्रेत आत्माओं से अपने राज्य की रक्षा के लिए निभाते थे. निशा जात्रा कि यह रस्म बहुत मायने रखती है.
- दशहरा में विजयादशमी के दिन जहां एक तरफ पूरे देश में रावण के पुतले का दहन किया जाता है, वहीं बस्तर में विजयादशमी के दिन दशहरे की प्रमुख रस्म भीतर रैनी मनाई जाती है. मान्यताओं के अनुसार आदिकाल में बस्तर रावण की नगरी हुआ करती थी और यही वजह है कि शांति, अंहिसा और सद्भाव के प्रतीक बस्तर दशहरा पर्व में रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है.
- विदाई से पहले माई जी की डोली और छत्र को दंतेश्वरी मंदिर के सामने बनाए गए मंच पर आसीन कर महाआरती की जाती है. यहां सशस्त्र सलामी बल देवी दंतेश्वरी को सलामी देता है और भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. विदाई के साथ ही 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा पर्व का समापन होता है.