उमरिया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का नाम सुनते ही बाघों की तस्वीर मन में छप जाती है. बाघों की संख्या के कारण मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट कहलाता है. बांधवगढ़ एक बार फिर सुर्खियों में है. इस बार बाघ नहीं बल्कि प्रोजेक्ट बारहसिंगा के रूप में बारहसिंगा की घर वापसी चर्चा का विषय बनी हुई है. मध्यप्रदेश ने जैसे बाघों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में काम करके पूरे विश्वभर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. वैसे ही प्रदेश सरकार की प्रोजेक्ट बारहसिंगा भी एक महत्वपूर्ण योजना है. कान्हा से बारहसिंगा बांधवगढ़ लाए जाने की योजना को मूर्त रूप दिया जा चुका है, सिर्फ शिफ्टिंग होना बाकी है.
बारहसिंग को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में शिफ्टिंग: बहुत पहले एक ऐसा समय भी था जब बारहसिंगा की यह प्रजाति कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में सिर्फ 66 की संख्या में बचे थी. लेकिन प्रोजक्ट बारहसिंगा के तहत बेहतरीन संरक्षण और संवर्धन की बदौलत आज कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में 1 हजार से ज्यादा बारहसिंगा मौजूद हैं. अब NTCA से अनुमोदित बोमा कैथरीन तकनीकी से कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से बारहसिंगा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान आज रविवार को लाए जाएंगे. आपको बता दें कि बोमा कैप्चरिंग तकनीकी अफ्रीका में काफी लोकप्रिय है. इस तकनीकी में फनल जैसे बाड़ के माध्यम से वन्यजीवों का पीछा कर एक बड़े बाड़े में पहुंचाया जाता हैं. इसे अपारदर्शी बनाने के लिए घास की चटाई और हरे रंग के जाल से ढंका जाता है. इस पूरे सिस्टम को एक बड़े वाहन में रखकर परिवहन किया जाता है.
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बोमा तकनीकी से बारहसिंगा की शिफ्टिंग: बोमा कैप्चरिंग की इस स्थानान्तरण तकनीकी को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने अनुमोदित किया है. इस तकनीकी में वन्यजीव की न तो हैंडलिंग की जाती है और न ही ट्रेंकुलाइज किया जाता है. वन्यजीव को सिर्फ कैप्चर कर एक जगह से दूसरे जगह शिफ्ट किया जाता है. बारहसिंगा 26 मार्च को वनमंत्री विजय शाह की मौजूदगी में बांधवगढ़ के मगधी कोर जोन में बने बाड़े में शिफ्ट किये जाएंगे. बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन ने 100 बारहसिंगों को बांधवगढ़ में लाए जाने की केंद्र सरकार से परमिशन ली है. इस साल 50 और अगले 2 वर्षों में 25-25 बारहसिंगों को लाए जाने की योजना बनी है.
बांधवगढ़ प्रबंधन ने क्या कहा: बांधवगढ़ प्रबंधन ने बताया कि "बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के धमोखर वन परिक्षेत्र के मगधी कोर जोन में 50 हैक्टेयर में बाड़ा बनाया गया है. भविष्य में इसे 100 हैक्टेयर तक बढ़ाया जाएगा. कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से लाए गए बारहसिंगा 3 वर्षों तक इस बड़े में रहेंगे. इस बाड़े को ऐसा बनाया गया है कि कोई भी मांसाहारी वन्यजीव इसमें प्रवेश न कर सके. 3 साल बाद जब बारहसिंगा स्थानीय वातवरण के अनुकूल हो जाएंगे तब उन्हें स्वछंद रूप से विचरण करने के लिए बांधवगढ़ के खुले जंगल में छोड़ा जाएगा."