उमरिया। आजादी के सात दशक बाद भी विकास की मुख्य धारा से अलग है. जिले के बैगा बाहुल्य क्षेत्र अतरिया गांव में मुख्य मार्ग नहीं होने से ग्रामीण परेशान हैं. जहां बारिश के दिनों में सड़क नहीं होने से लोगों को दलदल से होकर गुजरना पड़ रहा है. आजादी के 70 साल बाद भी गांव के लोग स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं.
गांव में नहीं है मुख्य मार्ग
आजाद भारत के 70 साल के बोझ को संभाले ये आदिवासी वैसे तो कागजों में विशेष संरक्षित जनजाति के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन व्यवस्था के नाम पर ढाक के तीन पात ही है. गांव में करीब सौ घरों की बैगा बस्ती है, संरक्षित जनजाति बैगा समुदाय में करीब एक हजार लोग सात दशक से गुजर बसर कर रहे हैं, लेकिन आज तक यहां आवागमन के लिए मुख्य मार्ग नहीं बन पाया है. जिसका कारण दस साल पहले बने मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क मार्ग के दो पुलों का क्षतिग्रस्त होना है.
आज तक नहीं पहुंची जननी एक्सप्रेस
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में आज तक एमरजेंसी स्वास्थ्य सेवाएं जननी एक्सप्रेस का वाहन नहीं पहुंचा है. नदी-नालों का जलस्तर कम रहने पर गांव के लोग महिलाओं को प्रसव पीड़ा के दौरान खाट में लेटाकर 2-3 किलोमीटर पैदल चलकर कटनी और उमरिया जिला स्वास्थ्य केंद्र लेकर जाते हैं. बारिश के समय में बुनियादी सुविधाएं जैसी शिक्षा और रोजगार के काम बंद रहते हैं. जहां कब तेज बारिश हो जाए और नदी-नाले उफान पर आ जाएं, इसका कोई भरोसा नहीं रहता है. कई बार ऐसी स्थिति में ग्रामीणों को घने जंगल के बीच रात काटनी पड़ चुकी है.
शासन प्रशासन नहीं ले रहा सुध
गांव की महिलाओं ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर है, जिसके लिए कई आज तक प्रशासन द्वारा कुछ नहीं किया गया है. बारिश के दिनों में सबसे ज्यादा दिक्कतें आती हैं. इसके बाद भी शासन प्रशासन कोई सुध लेने वाला नहीं है.
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सरकार से गुहार के बाद बनी सड़क
सरकार गरीबों के लिए हर सुविधा मुहैया कराने का दाव करती है, वहीं जनजाति वर्ग को विशेष संरक्षित जनजाति माना जाता है. इसके बाद भी जनजाति बाहुल्य क्षेत्र अतरिया गांव में आज तक पहुंच मार्ग नहीं है. सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधि भी आज तक इस समस्या का हल नहीं निकाल पाया है. मांग और ज्ञापन के माध्यम से ग्रामीणों ने कई बार जिम्मेदारों तक अपनी व्यथा बता चुके हैं, लेकिन आज तक केवल आश्वासन के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगा है.