उज्जैन । जिले की तराना तहसील कई मायनों में खास है. यहां पर बाबा तिलभांडेश्वर मंदिर में विराजित भगवान शिव का तिलभांडेश्वर रूप है. यहां पर सालभर दर्शन के लिए नगर और आसपास के इलाके से भी भक्त आते हैं. सावन महीने में तिलभांडेश्वर के दर्शन करना बड़ा ही खास रहता है. तराना में सावन महीने के हर सोमवार को निकलने वाली शाही सवारी सबसे खास रहती है. शाही सवारी में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग भारी तादात में यहां पहुंचते हैं, जिसको लेकर स्थानीय प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है. उज्जैन के बाबा तिलभांडेश्वर की शाही सवारी में आस्था और विश्वास का अनूठा संगम देखने को मिलता है.
प्रजा का हाल जानने निकलते हैं बाबा तिलभांडेश्वर
तराना में विराजित बाबा तिलभांडेश्वर के बारे में पुराणों में भी बताया गया है. आज भी बाबा तिलभांडेश्वर को तराना का राजा माना जाता है. कहा जाता है कि तराना शहर से कुछ ही दूरी पर मां करेली का वास है. बता दें कि यह मूर्ति कर्ण की आराध्य देवी मां कर्णावती की है. लोगों की मान्यता है कि मां कर्णावती दानवीर कर्ण को रोज सौ मन सोना देती थीं, जिसे कर्ण प्रजा की भलाई के लिए दान दे देता था. दूसरी तरफ मां अहिल्या राजघराने से तराना का एक अलग ही महत्व है. श्रावण महीने में आने वाले हर सोमवार को भगवान तिलभांडेश्वर पूरे शाही थाट-बांट के साथ तराना की प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं. तिलभांडेश्वर की शाही सवारी को निहारने के लिए सैकड़ों की तादात में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
ऐसा रहता है शाही सवारी का स्वरूप
शाही सवारी निकलने से पहले तराना शहर को पूरी तरह सजाया जाता है. शाही सवारी शाम 2 बजे से शुरू होती है. शाही सवारी में सबसे आगे की पालकी में भगवान तिलभांडेश्वर विराजित रहते हैं. सवारी शुरू होते ही तराना के SDM और SDOP आरती करते हैं, जिसके बाद तिलभांडेश्वर को गार्ड ऑफ ऑर्नर दिया जाता है. यह सवारी तराना के प्रमुख रास्तों से होकर मंदिर प्रांगण पहुंचती है.