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Good Bye Lata Didi: संजय मोदी ने पन्नों पर उतारा लता दीदी का संघर्ष! 31 घंटे बात कर लिखी बॉयोग्राफी

उज्जैन के रहने वाले डॉ. संजय मोदी ने उनके जीवन पर आधारित एक किताब लिखी है. इस किताब का नाम संघर्ष सफलता और लता है. संजय मोदी ने कहा कि इस किताब का श्रेय लता दी को जाता है.

lata mangeshkar biography
लता मंगेशकर बायोग्राफी
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Published : Feb 6, 2022, 9:16 PM IST

उज्जैन। देश ही नहीं दुनिया भर में स्वर कोकिला लता दीदी के जाने से गहरा दुःख है. हर कोई मां सरस्वती के रूप में लता दीदी को याद कर रहा है. इंदौर में जन्मीं लता दीदी का महाकाल की नगरी उज्जैन से भी गहरा नाता रहा है. (lata mangeshkar ujjain connection)

क्या बोले लता मंगेशकर बायोग्राफी के लेखक

2012 में लिखा था लता दीदी को पत्र
उज्जैन के रहने वाले डॉ. संजय मोदी ने वर्ष 2012 सितंबर में लता दीदी से लेटर के माध्यम से संपर्क करना शुरू किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. एक वक्त बाद हारकर उन्होंने संपर्क करना छोड़ दिया था. फरवरी 2013 में उन्होंने 26 पन्नों का अंतिम लेटर पोस्ट किया. जब लता ने लेटर पढ़ा तो सप्ताह भर बाद 15 फरवरी को डॉ. मोदी को कॉल किया. इसके बाद डॉ. मोदी को कॉल कर मुम्बई बुलाया. (lata mangeshkar biography)

पत्र से किताब तक पहुंची कहानी
ये सिलसिला एक पुस्तक के विमोचन होने तक पहुंच गया. लता दीदी ने डॉ. मोदी से अपने जीवन के हर पल को खुलकर साझा किया. उन्होंने बहन आशा को पति द्वारा पीटने का जिक्र भी किया. बहन से बात बंद होने का राज उजागर किया. इंदौर को याद किया. स्कूल से लेकर सैनिकों के लिए लिखे गीत तक शुरुआती सफर साझा किया. (book written lata mageshkar)

संजय मोदी ने लिखी 750 पन्नों की किताब
डॉ. संजय मोदी बताते हैं काफी अच्छी पुरानी और खूबसूरत यादे हैं लता दी के साथ. मैं खुद को खुश किस्मत मानता हूं कि लता दी ने मुझे मिलने का समय दिया. पुस्तक लिखने की अनुमति भी दी. करीब डेढ़ वर्ष मैं उनके संपर्क में रहा. इन डेढ़ वर्षों में उनसे मेरी फोन पर लगभग 31 घंटे बात हुई. यह बातचीत रिकॉर्डेड है. लता दी ने जो मुझे बताया वह मैंने पुस्तक में लिखा. इस पुस्तक का श्रेय लता दी को ही जाता है. इस पुस्तक में 750 पन्ने हैं (lata mangeshkar biography writer)

इंदौर को बहुत याद करती थीं लता दी
डॉक्टर संजय मोदी ने कहा कि लता दी इंदौर में अपने परिवार को बहुत याद करती थीं. चूंकि खाने पीने की शौकीन थीं, तो सर्राफा बाजार की यादें भी साझा कीं. इस बात पर वे काफी खुश भी होती थीं कि उनका जन्म इंदौर में हुआ. संजय मोदी ने कहा कि मुझे इस बात का बेहद दुःख है कि आगामी 3 महीने में विमोचन होने वाली पुस्तक का विमोचन लता दी के हाथों नहीं हो सका. (lata mangeshkar indore connection)

लता दी के पास थीं 9 पीएचडी की उपाधि
डॉक्टर संजय मोदी ने बताया कि लता दी अपने जीवन काल में सिर्फ एक दिन ही स्कूल गईं, लेकिन उन्हें देश विदेश की 9 बड़ी यूनिवर्सिटी से पीएचडी उपाधि प्राप्त हुईं. उन्होंने शिक्षा का क्रम घर से ही जारी रखा. ये बड़ा रोचक किस्सा है- पहले दिन के बाद जब वह दूसरे दिन स्कूल जानें लगीं तब उनकी उम्र 6 वर्ष की थी. जब स्कूल गईं तो अपनी बहन आशा को साथ ले गईं. इस पर उनकी टीचर ने बहुत डांट लगाई. यह बात उन्हें बहुत बुरी लगी. इसके बाद वह कभी स्कूल नहीं गई.

सैनिकों के लिए थी गहरी संवेदना
लता दी ने सैनिकों के सम्मान में चाइना वॉर के बाद गाना गाया था. इसे सुनकर पंडित जवाहरलाल नेहरु की आंखों में भी आंसू आ गए थे. ये गाना रिकॉर्डेड नहीं था. सैनिकों को श्रद्धांजलि के लिए पहली बार गाया गया था. इसके बाद यह गाना मुंबई में अच्छी तरह से रिकॉर्ड किया गया. इस गाने के गीतकार पंडित प्रदीप है. पंडित प्रदीप उज्जैन के बडनगर तहसील निवासी हैं. खास बात यह है कि तीनों की सहमति से इस गाने की रॉयल्टी आज भी सैनिकों के खाते में जाती है.

फैन ने दी अनोखी श्रद्धांजलि! स्वर कोकिला लता मंगेशकर की 1436 तस्वीरों से बना डाली पेंटिंग

डॉ. संजय मोदी ने बताया कि लता दीदी हर गुरुवार रात 8 बजे कॉल करती थीं. करीब 30 मिनट की हर बार बातचीत होती थी. उन्होंने बताया कि लता दीदी ने मुझे यह मौका सिर्फ पिता के बारे में जिक्र करने पर दिया. उनका मानना था कि मेरे अलावा उनके पिता को इतनी गहराई से कोई नहीं जानता. उनकी बहन आशा की शादी उनके गणपत राव भोसले से हुई. गणपत राव भोसले आशा को बहुत पीटते थे.

उज्जैन। देश ही नहीं दुनिया भर में स्वर कोकिला लता दीदी के जाने से गहरा दुःख है. हर कोई मां सरस्वती के रूप में लता दीदी को याद कर रहा है. इंदौर में जन्मीं लता दीदी का महाकाल की नगरी उज्जैन से भी गहरा नाता रहा है. (lata mangeshkar ujjain connection)

क्या बोले लता मंगेशकर बायोग्राफी के लेखक

2012 में लिखा था लता दीदी को पत्र
उज्जैन के रहने वाले डॉ. संजय मोदी ने वर्ष 2012 सितंबर में लता दीदी से लेटर के माध्यम से संपर्क करना शुरू किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. एक वक्त बाद हारकर उन्होंने संपर्क करना छोड़ दिया था. फरवरी 2013 में उन्होंने 26 पन्नों का अंतिम लेटर पोस्ट किया. जब लता ने लेटर पढ़ा तो सप्ताह भर बाद 15 फरवरी को डॉ. मोदी को कॉल किया. इसके बाद डॉ. मोदी को कॉल कर मुम्बई बुलाया. (lata mangeshkar biography)

पत्र से किताब तक पहुंची कहानी
ये सिलसिला एक पुस्तक के विमोचन होने तक पहुंच गया. लता दीदी ने डॉ. मोदी से अपने जीवन के हर पल को खुलकर साझा किया. उन्होंने बहन आशा को पति द्वारा पीटने का जिक्र भी किया. बहन से बात बंद होने का राज उजागर किया. इंदौर को याद किया. स्कूल से लेकर सैनिकों के लिए लिखे गीत तक शुरुआती सफर साझा किया. (book written lata mageshkar)

संजय मोदी ने लिखी 750 पन्नों की किताब
डॉ. संजय मोदी बताते हैं काफी अच्छी पुरानी और खूबसूरत यादे हैं लता दी के साथ. मैं खुद को खुश किस्मत मानता हूं कि लता दी ने मुझे मिलने का समय दिया. पुस्तक लिखने की अनुमति भी दी. करीब डेढ़ वर्ष मैं उनके संपर्क में रहा. इन डेढ़ वर्षों में उनसे मेरी फोन पर लगभग 31 घंटे बात हुई. यह बातचीत रिकॉर्डेड है. लता दी ने जो मुझे बताया वह मैंने पुस्तक में लिखा. इस पुस्तक का श्रेय लता दी को ही जाता है. इस पुस्तक में 750 पन्ने हैं (lata mangeshkar biography writer)

इंदौर को बहुत याद करती थीं लता दी
डॉक्टर संजय मोदी ने कहा कि लता दी इंदौर में अपने परिवार को बहुत याद करती थीं. चूंकि खाने पीने की शौकीन थीं, तो सर्राफा बाजार की यादें भी साझा कीं. इस बात पर वे काफी खुश भी होती थीं कि उनका जन्म इंदौर में हुआ. संजय मोदी ने कहा कि मुझे इस बात का बेहद दुःख है कि आगामी 3 महीने में विमोचन होने वाली पुस्तक का विमोचन लता दी के हाथों नहीं हो सका. (lata mangeshkar indore connection)

लता दी के पास थीं 9 पीएचडी की उपाधि
डॉक्टर संजय मोदी ने बताया कि लता दी अपने जीवन काल में सिर्फ एक दिन ही स्कूल गईं, लेकिन उन्हें देश विदेश की 9 बड़ी यूनिवर्सिटी से पीएचडी उपाधि प्राप्त हुईं. उन्होंने शिक्षा का क्रम घर से ही जारी रखा. ये बड़ा रोचक किस्सा है- पहले दिन के बाद जब वह दूसरे दिन स्कूल जानें लगीं तब उनकी उम्र 6 वर्ष की थी. जब स्कूल गईं तो अपनी बहन आशा को साथ ले गईं. इस पर उनकी टीचर ने बहुत डांट लगाई. यह बात उन्हें बहुत बुरी लगी. इसके बाद वह कभी स्कूल नहीं गई.

सैनिकों के लिए थी गहरी संवेदना
लता दी ने सैनिकों के सम्मान में चाइना वॉर के बाद गाना गाया था. इसे सुनकर पंडित जवाहरलाल नेहरु की आंखों में भी आंसू आ गए थे. ये गाना रिकॉर्डेड नहीं था. सैनिकों को श्रद्धांजलि के लिए पहली बार गाया गया था. इसके बाद यह गाना मुंबई में अच्छी तरह से रिकॉर्ड किया गया. इस गाने के गीतकार पंडित प्रदीप है. पंडित प्रदीप उज्जैन के बडनगर तहसील निवासी हैं. खास बात यह है कि तीनों की सहमति से इस गाने की रॉयल्टी आज भी सैनिकों के खाते में जाती है.

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डॉ. संजय मोदी ने बताया कि लता दीदी हर गुरुवार रात 8 बजे कॉल करती थीं. करीब 30 मिनट की हर बार बातचीत होती थी. उन्होंने बताया कि लता दीदी ने मुझे यह मौका सिर्फ पिता के बारे में जिक्र करने पर दिया. उनका मानना था कि मेरे अलावा उनके पिता को इतनी गहराई से कोई नहीं जानता. उनकी बहन आशा की शादी उनके गणपत राव भोसले से हुई. गणपत राव भोसले आशा को बहुत पीटते थे.

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