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शनिचरी अमावस्या के दिन लोग दान करते हैं जूते-चप्पल, नीलामी करेगा प्रशासन

शनिचरी अमावस्या के दिन हजारों श्रद्धालुओं ने क्षिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर पहुंचकर स्नान किया. श्रद्धालु परंपरा के मुताबिक अपने जूते-चप्पल यहीं छोड़कर चले जाते हैं, जिन्हें प्रशासन नीलाम करता है.

श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब
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Published : May 4, 2019, 3:23 PM IST

उज्जैन। शनिचरी अमावस्या के दिन हजारों श्रद्धालु क्षिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर पहुंचे. यहां श्रद्धालुओं ने स्नान कर शनि मंदिर के दर्शन किए. खास बात ये है कि इस मौके पर बड़ी संख्या में पंचकोशी यात्री दान-पुण्य करते हैं. नहाने आये श्रद्धालु अपने जूते-चप्पल भी दान के रूप में यहीं छोड़ जाते हैं. दान में छोड़े गये जूते-चप्पलों को प्रशासन नीलाम करता है.

श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब

शनिश्चरी अमावस्या पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु इस प्राचीन शनि मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. बता दें कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने मंदिर की स्थापना की थी. ये देश का पहला ऐसा शनि मंदिर है, जहां शिव के रूप में शनि की पूजा की जाती है और लोग शनि की कृपा पाने के लिए तेल चढ़ाते हैं.

मान्यता है कि शनिचरी अमावस्या के दिन अपने जूते-चप्पल मंदिर के बाहर दान करने से शनि की बुरी दशा से मुक्ति मिलती है. इस कारण हजारों की तादाद में जूते-चप्पल इकट्ठे हो जाते हैं, जिनकी प्रशासन नीलामी करता है.

उज्जैन। शनिचरी अमावस्या के दिन हजारों श्रद्धालु क्षिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर पहुंचे. यहां श्रद्धालुओं ने स्नान कर शनि मंदिर के दर्शन किए. खास बात ये है कि इस मौके पर बड़ी संख्या में पंचकोशी यात्री दान-पुण्य करते हैं. नहाने आये श्रद्धालु अपने जूते-चप्पल भी दान के रूप में यहीं छोड़ जाते हैं. दान में छोड़े गये जूते-चप्पलों को प्रशासन नीलाम करता है.

श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब

शनिश्चरी अमावस्या पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु इस प्राचीन शनि मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. बता दें कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने मंदिर की स्थापना की थी. ये देश का पहला ऐसा शनि मंदिर है, जहां शिव के रूप में शनि की पूजा की जाती है और लोग शनि की कृपा पाने के लिए तेल चढ़ाते हैं.

मान्यता है कि शनिचरी अमावस्या के दिन अपने जूते-चप्पल मंदिर के बाहर दान करने से शनि की बुरी दशा से मुक्ति मिलती है. इस कारण हजारों की तादाद में जूते-चप्पल इकट्ठे हो जाते हैं, जिनकी प्रशासन नीलामी करता है.

Intro:उज्जैन शनिचरी अमावस्या कान्हा आन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे त्रिवेणी पंचकोशी यात्री भी पहुंचे नहान मैं अनोखी परंपरा जूते चप्पल छोड़ जाते हैं श्रद्धालु जिसकी नीलामी करता है प्रशासन


Body:उज्जैन शिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर श्रद्धालुओं का सैलाब दिखाई दिया दरअसल आज शनिश्चरी अमावस होने पर देर रात से ही दूर दूर से आए श्रद्धालु शिप्रा नदी में स्नान कर पुण्य कमाते नजर आए सुबह से ही लंबी लंबी लाइनों में लगकर स्नान कर शनि मंदिर के दर्शन कर भक्तों निहाल हो गए इसी मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने दान पूर्ण किया बड़ी संख्या में पंचकोशी यात्री भी आज नहाने आए साथी अपने अपने जूते चप्पल भी दान के रूप में छोड़ गए हालांकि परंपरा है कि बाद में यह सब दान में छोड़े गए जूते चप्पल को प्रशासन नीलाम कर देता है


Conclusion:उज्जैन शनिश्चरी अमावस पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु और चीन के इस प्राचीन शनि मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ ते दिखाई दिए उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने मंदिर की स्थापना की थी यहां देश का पहला ऐसा शनि मंदिर है यहां शिव के रूप में शनि की पूजा की जाती है और लोक मनोकामना कर शनि की कृपा पाने के लिए तेल चढ़ाते है श्रद्धालुओं ने रात 12:00 बजे बात से फव्वारा में नहान भी शुरू कर दिए लेकिन मुख्य नहान सुबह सूर्योदय के बाद अमावस पर्व काल नहीं किया गया प्रशासन ने रात से ही उमर ने वाली भीड़ को देखते हुए अधिकारियों की ड्यूटी लगा दी नदी में जलभराव होने के कारण अधिकतर श्रद्धालुओं को नदी में नहीं जाने दिया गया इसी लिए मेरी बेरिकेड्स से होकर पहले फव्वारों में नाहन करवाया गया फिर शनि मंदिर दर्शन बेरिकेड्स से होकर श्रद्धालु लाइन में लगकर पहले त्रिवेणी संगम पर स्नान करने गए इसके बाद शनि मंदिर में आकर दर्शन पूजन किया मान्यता है कि आज के दिन अपने जूते चप्पल मंदिर के बाहर दान की करने से सनी की बुरी दशा से मुक्ति मिलती है इस कारण हजारों की तादाद में जूते चप्पल इकट्ठे हो जाते हैं जिसकी प्रशासन नीलामी करेगा



बाइट---जितेंद्र बैरागी (शनि मंदिर पुजारी)

बाइट---श्रद्धालु
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