उज्जैन। किसी भी शहर का इतिहास उस शहर की पहचान होती है. उसी इतिहास को महिदपुर के अश्विनी शोघ संस्थान में संजोकर रखा गया है. जहां प्राचीन काल की वस्तुओं और सिक्कों का संग्रह किया गया है.
जिले से 50 किमी दूर महिदपुर शहर के अश्विनी शोघ संस्थान में करीब ढाई हजार साल पुरानी मुद्राओं को देखा जा सकता है. इस संग्रहालय में मौर्य, मुगल साम्राज्य, अशोक, सात वाहनों, कुषाणों, गुप्त, परमार कालीन युग की मुद्राएं एवं वस्तुएं देखी जा सकती हैं. साथ ही अंग्रेजी शासन और स्वतंत्र भारत की प्राचीन मुद्राएं भी यहां देखने को मिल जाती हैं.
इस संग्रहालय में रखे सामान बता रहे हजारों साल पुराना इतिहास
महिदपुर तहसील में एक ऐसा संग्रहालय है, जहां करीब ढाई हजार साल पुरानी मुद्राओं और वस्तुओं को देखा जा सकता है. जिनमें मुगलकाल से लेकर आजादी की लड़ाई के समय तक की वस्तुएं संजोकर रखी गई हैं.
उज्जैन। किसी भी शहर का इतिहास उस शहर की पहचान होती है. उसी इतिहास को महिदपुर के अश्विनी शोघ संस्थान में संजोकर रखा गया है. जहां प्राचीन काल की वस्तुओं और सिक्कों का संग्रह किया गया है.
जिले से 50 किमी दूर महिदपुर शहर के अश्विनी शोघ संस्थान में करीब ढाई हजार साल पुरानी मुद्राओं को देखा जा सकता है. इस संग्रहालय में मौर्य, मुगल साम्राज्य, अशोक, सात वाहनों, कुषाणों, गुप्त, परमार कालीन युग की मुद्राएं एवं वस्तुएं देखी जा सकती हैं. साथ ही अंग्रेजी शासन और स्वतंत्र भारत की प्राचीन मुद्राएं भी यहां देखने को मिल जाती हैं.
एंकर: मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले से 50 किमी दूर महिदपुर शहर बसां है, जो इतिहास की घटनाओं से जुडा हुआ है। चाहे 1857 की क्रांति हो या फिर देश की आजादी लडाई। हर पुरानी घटनाओं में इस शहर का अमूल्य योगदान रहा है। इतिहास की उन पुरानी याद्दाशत को संजोना काफी मुश्किल होता है, मगर महिदपुर में एक संस्थान ऐसी भी है जो सिक्कों और पुरानी वस्तुओं को एकत्रित कर एक अनुठे संग्रहालय का रूप धारण कर चुकी है। जी हां हम बात कर रहे है महिदपुर के अश्विनी शोघ संस्थान की... जहां देश के छोटे शहरों के इतिहास से संबंधी राज छुपे हुए है। जिन्हें जानने के लिए अब लोगों का रूझान बढने लगा है।Body:
विओ 1: अश्विनी शोघ संस्थान में सिक्कों और प्राचीन काल की वस्तुओं का एक अजब-गजब कलेक्शन है। ढाई हजार साल पुरानी मुद्राओं से लेकर देश के आजादी तक और उसे बाद से अब तक की हर मुद्रा इस अनुठे कलेक्शन में देखी जा सकती है। खासकर मोर्य, मुगल साम्राज्य, अशोक, सातवाहनों, कुशाणों, गुप्त, गोतक, परमार कालीन युग की मुद्राएं एवं वस्तुओं देखी जा सकती है। यहीं नहीं मुस्लिम शासक मोहम्मद गजनबी, मोहम्मद गौरी, अकबर, शाहजहां, औरंगजैब की मुद्राओं के अलावा अंग्रेजी हुकमत और स्वतंत्र भारत की प्राचीन मुद्रा भी जहां देखने को मिलती है।Conclusion: इस प्राचीन संग्रहालय में जो प्राचीन साम्राग्रियां संग्रहित है, उसमें प्राचीन समय में उपयोग किए जाने वाले बर्तन, पानदान, स्याही की दवात, लोहे की कलम, घंटिया, पुराने रथ, ताले-चाबी, बच्चों के खेलने के खिलौने, पूरानी मुर्तियां शामिल है। आजादी के समय बच्चों और युवाओं में वीरता का जोश भरने के लिए धातु की तोप, बंदूकें, हाथी, घोडे, शेर दिए जाते थे, वह भी यहां मौजूद है। बारूददानी, इत्रदानी यहां आसानी से देखी जा सकती है।
विओ 3: इतिहास के झरोखों को खंगाला जाए तो महिदपुर शहर किसी न किसी विरासत से जुडा मिलेगा। शिप्रा तट पर बसे इस शहर की सभ्यता सिंघु घाटी सभ्यता के समकालीन 4 हजार वर्षो पुरानी है। यहां मौजूद भस्मा टेकरी की खूदाई में निकले प्राचीन बतनों ने इसे और पुख्ता कर दिया। साढे तीन हजार साल पहले महिदपुर के लोगों ने नए बर्तनों का निर्माण किया और नई कला को विकसित किया। मध्यभारत क्षैत्र में सबसे पहले सोने की प्राप्ति हुई। जिसका ऋगवेद में वर्णन है। मुगलकालीन यहां किले बने हुए है। मालवा के सुल्तानों के यहां महल बनवाएं थे, तालाकुची की बावडी और नया किला यहां के प्राचीन स्मारक है। महिदपुर जिला था लेकिन आजादी के बाद तहसील में परिवर्तित हो गया।
बाईट 01: डाॅ.आरसी ठाकुर, इतिहासकार एवं पुरातत्वविद्