श्योपुर। लोकतंत्र के त्योहार में हर वर्ग हर जाती हर क्षेत्र के मतदाता को वोट करने का अधिकार है. इस साल प्रदेश की सरकार चुनने के लिए वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे. ये वो अधिकार हैं, जो उनके क्षेत्र को विकास की धारा में आगे बढ़ाने के साथ-साथ क्षेत्रवासियों के अधिकार और हितलाभ की रक्षा करता है. नवंबर में जब चुनाव होंगे तो मध्यप्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक-1 श्योपुर में भी जनता वोट करेगी. अब तक यहां बीजेपी और कांग्रेस को जनता ने बार बार मौका दिया, लेकिन फिर यह क्षेत्र पिछड़े जिलों में गिना जाता है. यहां जनता के प्रतिनिधि काम से ज्यादा बयानों के चलते चर्चा में रहते हैं. एक बार फिर चुनाव आ चुके हैं और नेता दरवाजे खटखटाने लगे हैं. ऐसे में जनता इस बार किसे वोट करेगी. अभी कहना मुश्किल है, लेकिन नेताओं ने अपने सियासी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिये हैं.
श्योपुर विधानसभा क्षेत्र की खासियत: यह क्षेत्र पर्यटन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. जिसकी बड़ी वजह यहां स्थित कूनो नेशनल पार्क है. जहां पिछले साल 17 सितंबर को पीएम मोदी के जन्मदिन पर भारत में चीतों को बसाने के लिए नामीबिया से लाए गए चीते छोड़े गये थे. बाद में अफ्रीका से लाए गए चीते यहां छोड़े गए. भारत सरकार के इस कदम ने इस क्षेत्र को एक नयी पहचान दी. इसके साथ ही यह क्षेत्र इतिहास और पुरातत्व संपदा से संपन्न है. ध्रुवकुण्ड से लेकर भगवान परशुराम की तपस्यास्थली तक विधानसभा में स्थित है.
विधानसभा के सियासी समीकरण: मध्यप्रदेश विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक एक श्योपुर एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. सरकार की तमाम योजनाओं के बावजूद यहां विकास का स्तर निम्न दिखायी देता है. मध्यप्रदेश और राजस्थान के बॉर्डर पर बसा श्योपुर जातिगत राजनीति में फंसा हुआ है, क्योंकि इस क्षेत्र में मीना समाज हमेशा निर्णायक भूमिका निभाते हैं. वैसे तो ये समाज अपनी जाती के लिए ही वोट करता है, लेकिन श्योपुर में बहुत कम ऐसा होता है की उनके अपने समाज का प्रत्याशी विधायक बन सके. ऐसे में 65 हज़ार वोटर वाले मीना समाज का जिस ओर झुकाव होता है, उस पार्टी के प्रत्याशी की जीत लगभग तय हो जाती है. श्योपुर विधानसभा क्षेत्र में अब तक जनता ने बीजेपी और कांग्रेस को ही मौका दिया है, लेकिन हर बार बसपा चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल देती है.
दावेदारों की फेहरिस्त: बात अगर 2023 के लिए दावेदारों की करें तो श्योपुर विधानसभा में बीजेपी से टिकट की दावेदारी करने वालों की लंबी फेहरिस्त है. जिसमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी महावीर सिंह टॉप पर हैं. वहीं सिंधिया समर्थक और पूर्व विधायक रघुराज सिंह भी इस बार चुनाव में टिकट की दावेदारी कर सकते हैं. इनके साथ-साथ पूर्व जिला जिला अध्यक्ष और वर्तमान में प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अशोक गर्ग भी इस लाइन में शामिल हैं. हालांकि कयास लगाए जा रहे हैं कि नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी के चलते महावीर सिंह का टिकट लगभग फाइनल माना जा रहा है. वहीं कांग्रेस में भी टिकट मांगने वालों की लंबी लाइन है. इनमें वर्तमान विधायक बाबूलाल जंडेल सबसे आगे हैं. इनके साथ ही कांग्रेस के जिला अध्यक्ष अतुल चौहान भी चुनाव लड़ने के मूड में हैं. वहीं कांग्रेस नेता रामलखन मीणा भी इस रेस में शामिल हो सकते हैं और टिकट पर प्रबल दावेदारी पेश कर सकते हैं. हालांकि पार्टी किसे टिकट देती और जनता को कौन सा नेता भाता है. ये फिलहाल कहना मुश्किल है.
बीते विधानसभा चुनाव के नतीजे:
विधानसभा उपचुनाव 2018 के आंकड़े: साल 2018 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो जनता ने इस बार कांग्रेस पर भरोसा जताया था. पिछली बार जो बसपा प्रत्याशी बाबूलाल जंडेल पीछे रह गये थे. उन्हें इस साल कांग्रेस से टिकट और जनता का आशीर्वाद मिला. माई के लालो ने जंडेल को 98,580 वोट देकर विधायक चुना. जबकि बीजेपी से चुनाव लड़े तत्कालीन विधायक दुर्गालाल विजय को हार का सामना करना पड़ा. उन्हें जनता से महज 56870 वोट ही मिले. नतीजा श्योपुर विधानभवन की कमान बीजेपी से फिसल कर कांग्रेस के हाथ में पहुंच गई. चुनाव में जीत का अंतर 41,710 वोटों का था.
विधानसभा उपचुनाव 2013 के आंकड़े: मोदी लहर में जिसको भी भाजपा का टिकट में मिला वो लगभग विधायक बन गया. यही फैक्टर 2013 के चुनाव में श्योपुर सीट पर भी चला. यहां भारतीय जानता पार्टी ने अपने पूर्व में हारे प्रत्याशी पूर्व विधायक दुर्गालाल विजय पर दांव लगाया था. जनता का समर्थन मिला और चुनाव के नतीजों ने बताया कि बीजेपी प्रत्याशी दुर्गालाल विजय को 65211 वोट मिले. जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बहुजन समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी बाबूलाल जंडेल को 48,784 वोट हासिल हुए. इस चुनाव में कांग्रेस को भी हर का सामना करना पड़ा, लेकिन जमानत जब्त होने से बच गई थी. चुनाव में जीत का अंतर 16,427 मतों का रहा था.
विधानसभा उपचुनाव 2008 के आंकड़े: परिसीमन के बाद जब श्योपुर में चुनाव हुए तो बीजेपी और कांग्रेस ने दमदार प्रत्याशी उतारे. चुनाव में जनता ने कांग्रेस प्रत्याशी रहे बृजराज सिंह को चुना उन्हें 39,472 वोट मिले. वहीं जबकि बीजेपी के पूर्व विधायक दुर्गालाल विजय को 9,452 वोट के मार्जिन से हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि जनता ने उन्हें सिर्फ 30,020 वोट दिए थे.
विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय मुद्दे: श्योपुर विधानसभा क्षेत्र आज भी कई अहम समस्याओं से ग्रसित है. भले ही सरकार योजनाओं के जरिए हालातों में सुधार का दावा करे, लेकिन यहां कई ऐसी समस्याएं हैं, जो हर बार चुनावी मुद्दे बनते हैं. चम्बल और सहायक नदियों में बाढ़ अब हर साल की व्यापक समस्या बन चुकी है. शहर में जल निकासी की बड़ी समस्या हल ना होने से बरसात होने पर जलभराव की स्थिति नगरीय क्षेत्रों में देखने को मिलती है. वहीं जिस जोर-शोर से कूनो नेशनल पार्क को पहचान मिली, लेकिन दूरस्थ होने से यहां तक पर्यटकों की पहुंच सीमित है. सबसे बड़ी समस्या क्षेत्र में कुपोषण की है. ग्रामीण अंचलों में जागरूकता की कमी के चलते क्षेत्र में बच्चों में कुपोषण हावी है. यहां ग्रामीण और आदिवासी बाहुल्य इलाका होने और अंधविश्वास के चलते लोग चिकित्सा पद्दति की जगह झाड़-फूंक पर बड़ा विश्वास करते हैं. कुपोषण के साथ विकास और रोजगार की कमी क्षेत्र से युवाओं को पलायन पर मजबूर करती है.