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यहां खेला जाता पड़वा के दिन छाबड़ा खेल, युवा से लेकर बुजुर्ग तक होते हैं खेल में शामिल

दीपावली के दूसरे दिन यानी पड़वा के अवसर पर मालवा में छेड़ा या छाबड़ा खिलाने की विशेष परंपरा है. लोग अपने पालतू जानवरों को सजाकर दिनभर छाबड़ा का खेल खेलते हैं.

मालवा के आंचल में खेला जाता पड़वा के दिन छाबड़ा खेल
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Published : Oct 28, 2019, 10:10 PM IST

Updated : Oct 28, 2019, 11:57 PM IST

शाजापुर। दीपावली के पड़वा के अवसर पर मालवा में छेड़ा या छाबड़ा खिलाने की विशेष परंपरा है. इस पर्व पर सुबह से लोग अपने पालतू जानवरों को सजाकर दिनभर छाबड़ा का खेल खेलते हैं. जिसमें बच्चों से लेकर बूढ़े सभी खेल का आनंद लेते हैं. प्रदेश के मालवा क्षेत्र में दीपावली की पड़वा के अवसर पर कई प्रकार की प्राचीन परंपराएं मनाई जाती है. दीपावली की पड़वा के एक दिन पहले घर के पालतू जानवरों को जिसमें गाय भैंस और बैल आते हैं को रात को मेहंदी लगाई जाती है.

मालवा के आंचल में खेला जाता पड़वा के दिन छाबड़ा खेल

पड़वा के दिन सभी पालतू जानवरों को पहले नहलाया जाता है. उसके बाद घर के सभी सदस्य पालतू जानवरों का श्रृंगार से तैयार किया जाता हैं. जिसमें प्लास्टिक और सूत की माला उनको पहनाई जाती है और पालतू जानवरों के सिंग को विभिन्न प्रकार के कलर में रंगा जाता है.

उसके बाद गांव में छेड़ा या छाबड़ा का पूजन किया जाता है. पूजन करने के बाद लगभग 11 बजे छाबड़ा खिलाने का कार्यक्रम गांव में शुरू हो जाता है. कार्यक्रम की शुरुआत में छाबड़ा खेल गांव के मुखिया के यहां से शुरू किया जाता है उसके बाद एक-एक करके गांव के सभी लोगों के यहां यह खेल खेला जाता है.
खेल में एक लकड़ी के डंडे में उसके एक सिरे पर कुछ खास तरह की वस्तु बांधते है जिसे धामणा कहते हैं और उसके ऊपर एक चमड़ा लपेट दिया जाता है और उसे बांध दिया जाता है जिसे छाबड़ा कहते हैं. इस खेल में युवा,बुजुर्ग सभी भाग लेते हैं .

शराब का सेवन होता है जमकर
इस खेल में शराब का सेवन जमकर किया जाता है. इसमें सभी लोग जो छाबड़ा खिलाते हैं. शराब पीकर इस खेल को खेलते हैं. इस खेल में छाबड़ा को बार-बार पालतू जानवरों के पास ले जाया जाता है, जिससे वह क्रोधित होकर बार-बार उसको पीछे धकेलता है. यह प्रक्रिया बार-बार चलती रहती है.


दिनभर चलता है छाबड़ा का खेल
छाबड़ा का खेल पूरे दिन चलता है और शाम होते-होते छाबड़ा का खेल अपने समापन पर चला जाता है. उसके बाद लोग गांव में इधर उधर बैठकर इस खेल के बारे में हंसी ठिठोली कर अपना समय व्यतीत करते हैं.

शाजापुर। दीपावली के पड़वा के अवसर पर मालवा में छेड़ा या छाबड़ा खिलाने की विशेष परंपरा है. इस पर्व पर सुबह से लोग अपने पालतू जानवरों को सजाकर दिनभर छाबड़ा का खेल खेलते हैं. जिसमें बच्चों से लेकर बूढ़े सभी खेल का आनंद लेते हैं. प्रदेश के मालवा क्षेत्र में दीपावली की पड़वा के अवसर पर कई प्रकार की प्राचीन परंपराएं मनाई जाती है. दीपावली की पड़वा के एक दिन पहले घर के पालतू जानवरों को जिसमें गाय भैंस और बैल आते हैं को रात को मेहंदी लगाई जाती है.

मालवा के आंचल में खेला जाता पड़वा के दिन छाबड़ा खेल

पड़वा के दिन सभी पालतू जानवरों को पहले नहलाया जाता है. उसके बाद घर के सभी सदस्य पालतू जानवरों का श्रृंगार से तैयार किया जाता हैं. जिसमें प्लास्टिक और सूत की माला उनको पहनाई जाती है और पालतू जानवरों के सिंग को विभिन्न प्रकार के कलर में रंगा जाता है.

उसके बाद गांव में छेड़ा या छाबड़ा का पूजन किया जाता है. पूजन करने के बाद लगभग 11 बजे छाबड़ा खिलाने का कार्यक्रम गांव में शुरू हो जाता है. कार्यक्रम की शुरुआत में छाबड़ा खेल गांव के मुखिया के यहां से शुरू किया जाता है उसके बाद एक-एक करके गांव के सभी लोगों के यहां यह खेल खेला जाता है.
खेल में एक लकड़ी के डंडे में उसके एक सिरे पर कुछ खास तरह की वस्तु बांधते है जिसे धामणा कहते हैं और उसके ऊपर एक चमड़ा लपेट दिया जाता है और उसे बांध दिया जाता है जिसे छाबड़ा कहते हैं. इस खेल में युवा,बुजुर्ग सभी भाग लेते हैं .

शराब का सेवन होता है जमकर
इस खेल में शराब का सेवन जमकर किया जाता है. इसमें सभी लोग जो छाबड़ा खिलाते हैं. शराब पीकर इस खेल को खेलते हैं. इस खेल में छाबड़ा को बार-बार पालतू जानवरों के पास ले जाया जाता है, जिससे वह क्रोधित होकर बार-बार उसको पीछे धकेलता है. यह प्रक्रिया बार-बार चलती रहती है.


दिनभर चलता है छाबड़ा का खेल
छाबड़ा का खेल पूरे दिन चलता है और शाम होते-होते छाबड़ा का खेल अपने समापन पर चला जाता है. उसके बाद लोग गांव में इधर उधर बैठकर इस खेल के बारे में हंसी ठिठोली कर अपना समय व्यतीत करते हैं.

Intro:शाजापुर। दीपावली की पड़वा के अवसर पर मालवा में छेड़ा या छाबड़ा खिलाने की विशेष परंपरा है .इस पर्व पर सुबह से लोग अपने पालतू जानवरों को सजाकर दिनभर छाबड़ा का खेल खेलते हैं. जिसमें बच्चे बूढ़े जवान और औरतें सभी खेल का आनंद लेते हैं.Body:



मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में दीपावली की पड़वा के अवसर पर कई प्रकार की परंपराओं का निर्वहन होता है. ऐसी ही परंपरा है मालवा के गांव में छेड़ा या छाबड़ा खेल की.

दीपावली की पड़वा के एक दिन पहले घर के पालतू जानवरों को जिसमें गाय भैंस और बैल आते हैं को रात को मेहंदी लगाई जाती है.

सुबह पड़वा के दिन सभी पालतू जानवरों को पहले नहलाया जाता है उसके बाद घर के सभी सदस्य पालतू जानवरों का श्रृंगार करते हैं.

जिसमें प्लास्टिक और सूत की माला उनको पहनाई जाती है ,और पालतू जानवरों के सिंग को विभिन्न प्रकार के कलर में रंगा जाता है.
उसके बाद गांव में छेड़ा या छाबड़ा का पूजन किया जाता है. पूजन करने के बाद लगभग 11 बजे छाबड़ा खिलाने का कार्यक्रम गांव में शुरू हो जाता है.
कार्यक्रम की शुरुआत में छाबड़ा खेल गांव के मुखिया के यहां से शुरू किया जाता है उसके बाद एक-एक करके गांव के सभी लोगों के यहां यह खेल खेला जाता है.

इस खेल में एक लकड़ी के डंडे में उसके एक सिरे पर कुछ खास जिसे धामणा कहते हैं ,और उसके ऊपर एक चमड़ा लपेट दिया जाता है और उनको बांध दिया जाता है जिसे छाबड़ा कहते हैं.

इस खेल में युवा ,बुजुर्ग सभी भाग लेते हैं और इसका आनंद गांव के सभी लोग एवं महिलाएं अपनी छतों पर चढ़कर उठाते हैं.
इस खेल में शराब का सेवन जमकर किया जाता है. इसमें सभी लोग जो छाबड़ा खिलाते हैं. शराब पीकर इस खेल को खेलते हैं.
इस खेल में छाबड़ा को बार-बार पालतू जानवरों के पास ले जाया जाता है, जिससे वह क्रोधित होकर बार-बार उसको पीछे धकेलता है. यह प्रक्रिया बार-बार चलती रहती है.
छाबड़ा का खेल दिन भर चलता है ,और शाम होते-होते छाबड़ा का खेल अपने समापन पर चला जाता है.
उसके बाद लोग गांव में इधर उधर बैठकर इस खेल के बारे में हंसी ठिठोली कर अपना समय व्यतीत करते हैं.
Conclusion:






मालवा में दीपावली की पड़वा पर एक विशेष प्रकार का खेल होता है जिसे छेड़ा है छाबड़ा कहते हैं.
Last Updated : Oct 28, 2019, 11:57 PM IST
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