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दृष्टिबाधित छात्रों के सामने समस्याओं का अंबार, क्या ऐसे संवरेगी जिंदगी? - मधुश्री रॉय प्रेरणा फाउंडेशन शहडोल

कोरोना महामारी की वजह से दृष्टिबाधित छात्रों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. अगर ऐसा ही रहा, तो उनकी जिंदगी संवरने के बजाए और खराब हो जायेगी. पढ़िए पूरी खबर..

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दृष्टिबाधित छात्रों के सामने कई समस्या
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Published : Dec 28, 2020, 5:39 PM IST

शहडोल। वैसे तो कोरोना महामारी ने हर वर्ग को प्रभावित किया है, लेकिन कुछ वर्ग ऐसे भी हैं जिन्हें इस महामारी की वजह से ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ा है. या यूं कहें कि पूरी जिंदगी ही दांव पर लग गई है. दृष्टिबाधित छात्र जैसे-तैसे ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ाई करना सीख रहे थे, लेकिन कोरोना का कहर इतना भयंकर रहा कि इनका भविष्य मानो थम सा गया. इतना ही नहीं पढ़ाई के अलावा उन्हें दैनिक दिनचर्या में भी कई तरह की समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है.

दृष्टिबाधित छात्रों के सामने कई समस्या
पढ़ाई पर लगा ब्रेक
कोरोना काल से पहले इन दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई अच्छे से चल रही थी, लेकिन अचानक महामारी ने इनकी पढ़ाई पर ब्रेक लगा दिया. हालात ऐसे है कि जो बच्चे पिछले कई सालों में पढ़ना-लिखना सीख चुके थे, वह अब सब कुछ भूल गए है.

छात्रा ग्रसिका सिंह कहती हैं कि उन्होंने ब्रेल लिपि से पढ़ना शुरू किया था. बहुत कुछ सीख भी लिया था, लेकिन कोरोना काल ने उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाया. छात्रा का कहना है कि वह पढ़ाई तो करना चाहती हैं, लेकिन पढ़ नहीं पा रही हैं.

दृष्टिबाधित बच्चों के लिए कठिन समय

मधुश्री रॉय प्रेरणा फाउंडेशन की सचिव हैं. फाउंडेशन की मदद से वो दिव्यांगों का छात्रावास चलाती हैं, जहां करीब 50 बच्चे रहते हैं. 50 में से 23 बच्चे दृष्टिबाधित हैं. दिव्यांग बच्चों की हमेशा मदद के लिए तैयार रहने वाली मधुश्री रॉय कहती हैं कि कोरोना काल के शुरू होते ही सभी बच्चों की छुट्टी कर दी गई थी. इतना लंबा समय हो जाने से उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा. इसके लिए बीच में ऑनलाइन के जरीए कुछ मदद करने के प्रयास भी किए गए, लेकिन ये कारगर नहीं हो सका.

मोबाइल फोन बना बाधक

अधिकतर बच्चों के पास मोबाइल नहीं है. वहीं जिनके पास मोबाइल है, उनमें अधिकता फीचर फोन की है ना कि एंड्रॉयड फोन्स की. उन्होंने कहा कि ब्रेल लिपि सिखना आसान नहीं है. इसे सीखने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है. जो पहली कक्षा में आते हैं, उन्हें गिनती याद कराना पड़ता है. गौरतलब है कि इस कोरोना काल ने दृष्टिबाधित बच्चों के लिए बड़ी समस्याएं खड़ी कर दी हैं. इस दौरान जहां दृष्टिबाधित बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है, तो वहीं पिछले कई महीने से जो कुछ उन्होंने सीखा था वह भी भूल रहे हैं. इसलिए अब दृष्टिबाधित बच्चे कोई ऐसा माध्यम चाहते हैं, जिसमें सुरक्षित तरीके से वह अपनी पढ़ाई जारी रख सकें.

शहडोल। वैसे तो कोरोना महामारी ने हर वर्ग को प्रभावित किया है, लेकिन कुछ वर्ग ऐसे भी हैं जिन्हें इस महामारी की वजह से ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ा है. या यूं कहें कि पूरी जिंदगी ही दांव पर लग गई है. दृष्टिबाधित छात्र जैसे-तैसे ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ाई करना सीख रहे थे, लेकिन कोरोना का कहर इतना भयंकर रहा कि इनका भविष्य मानो थम सा गया. इतना ही नहीं पढ़ाई के अलावा उन्हें दैनिक दिनचर्या में भी कई तरह की समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है.

दृष्टिबाधित छात्रों के सामने कई समस्या
पढ़ाई पर लगा ब्रेककोरोना काल से पहले इन दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई अच्छे से चल रही थी, लेकिन अचानक महामारी ने इनकी पढ़ाई पर ब्रेक लगा दिया. हालात ऐसे है कि जो बच्चे पिछले कई सालों में पढ़ना-लिखना सीख चुके थे, वह अब सब कुछ भूल गए है.

छात्रा ग्रसिका सिंह कहती हैं कि उन्होंने ब्रेल लिपि से पढ़ना शुरू किया था. बहुत कुछ सीख भी लिया था, लेकिन कोरोना काल ने उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाया. छात्रा का कहना है कि वह पढ़ाई तो करना चाहती हैं, लेकिन पढ़ नहीं पा रही हैं.

दृष्टिबाधित बच्चों के लिए कठिन समय

मधुश्री रॉय प्रेरणा फाउंडेशन की सचिव हैं. फाउंडेशन की मदद से वो दिव्यांगों का छात्रावास चलाती हैं, जहां करीब 50 बच्चे रहते हैं. 50 में से 23 बच्चे दृष्टिबाधित हैं. दिव्यांग बच्चों की हमेशा मदद के लिए तैयार रहने वाली मधुश्री रॉय कहती हैं कि कोरोना काल के शुरू होते ही सभी बच्चों की छुट्टी कर दी गई थी. इतना लंबा समय हो जाने से उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा. इसके लिए बीच में ऑनलाइन के जरीए कुछ मदद करने के प्रयास भी किए गए, लेकिन ये कारगर नहीं हो सका.

मोबाइल फोन बना बाधक

अधिकतर बच्चों के पास मोबाइल नहीं है. वहीं जिनके पास मोबाइल है, उनमें अधिकता फीचर फोन की है ना कि एंड्रॉयड फोन्स की. उन्होंने कहा कि ब्रेल लिपि सिखना आसान नहीं है. इसे सीखने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है. जो पहली कक्षा में आते हैं, उन्हें गिनती याद कराना पड़ता है. गौरतलब है कि इस कोरोना काल ने दृष्टिबाधित बच्चों के लिए बड़ी समस्याएं खड़ी कर दी हैं. इस दौरान जहां दृष्टिबाधित बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है, तो वहीं पिछले कई महीने से जो कुछ उन्होंने सीखा था वह भी भूल रहे हैं. इसलिए अब दृष्टिबाधित बच्चे कोई ऐसा माध्यम चाहते हैं, जिसमें सुरक्षित तरीके से वह अपनी पढ़ाई जारी रख सकें.

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