शहडोल। जिले में खरीफ सीजन में धान की फसल की बुवाई की जाती है, सबसे ज्यादा बड़े रकबे में धान की फसल की बुवाई की जाती है. इसके बाद रबी सीजन में सबसे ज्यादा बड़े रकबे में जिले में गेहूं की फसल लगाई जाती है. धान की फसल कई किसान देरी से लगाते हैं, जिसके चलते गेहूं की बुवाई में भी देरी हो जाती है. (Shahdol preparation for rabi season) ऐसे में किस तरह से गेहूं की बुवाई करें, किस तरह के बीज का इस्तेमाल करें, पानी खेतों पर कब लगाएं, खाद कब इस्तेमाल करें. ऐसे सभी सवालों के बारे में कृषि वैज्ञानिक ब्रजकिशोर प्रजापति ने सुझाव दिया है.
बुवाई में किस्मों का रखें विशेष ख्याल: कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापति बताते हैं कि, गेहूं की फसल लगाने में अगर देरी हो गई है तो किसानों को किस्मों का चयन बड़ी सावधानी से करना होगा, क्योंकि मार्च महीने में तापमान बढ़ जाएगा और गर्मी के अचानक से बढ़ने से बीज के दाने का भराव अच्छी तरह से नहीं हो पाता. इसके लिए जरूरी होता है कि किसान देरी से बुवाई करें और गेंहू के अनुशंसित किस्मों का ही चयन करें. (Shahdol preparation for rabi season farming begins). कृषि वैज्ञानिक के मुताबिक मध्य प्रदेश के अनुसार गेहूं की जो अनुशंसित किस्म है जैसे- एच आई 1544, एच आई 1634, एच आई 1633, एच आई 1636 और जेडब्ल्यू 3382, ये वे किस्में हैं जो मध्यप्रदेश के लिए अनुशंसित हैं.
बीजों को उपचारित करना न भूलें: कृषि वैज्ञानिक बीके प्रजापति बताते हैं कि, अगर आप देरी से बुवाई कर रहे हैं तो कोशिश करें कि पूरे नियमतः से बुवाई करें. लेट किस्म के अनुशंसित बीजों का चयन तो करें ही साथ ही बीजों को उपचारित करना तो बिल्कुल भी ना भूलें. जो किसान गेहूं की लेट बुवाई कर रहे हैं उनके लिए जरूरी है कि बीजों को उपचारित करने के लिए विटावैक्स पाउडर से 2 ग्राम प्रति केजी के दर से बीजों को उपचारित करना है.
ऐसे करें बीज की बुवाई: बुवाई के लिए जब खेत में उपयुक्त नमी हो तो कल्टीवेटर से जुताई कर लें, फिर रोटावेटर से बड़े डीले खेत के तोड़ लें. गेहूं के अनुशंसित किस्मों के बीज का चयन करके उन्हें उपचारित करके अगर संभव है तो सीडड्रिल से बुवाई करें, इससे बराबर मात्रा में खेतों में बीज पड़ते हैं.(wheat farming delay in MP) एक प्रारूप में बीज डालने पर बीज का अंकुरण और बीज की वृद्धि जो है प्रचुर मात्रा में हो पाएगी. बीजों को हवा पानी भी बराबर मिलती रहेगी.
बुवाई के लिए बीज की कितनी हो मात्रा: बीज की मात्रा पर हमें ध्यान रखना है. प्रति ढाई एकड़ 100 से 120 केजी का अनुशंसा हम समय से बुवाई पर करते हैं, लेकिन अगर लेट बुवाई करते हैं तो 125 केजी प्रति हेक्टेयर करना होगा.
खाद का ऐसे करें छिड़काव: कृषि वैज्ञानिक बीके प्रजापति बताते हैं कि, गेंहू की खेती में खाद का भी विशेष ध्यान रखें. खाद का छिड़काव जरूर करें, अगर गोबर की सड़ी हुई खाद हो तो निश्चित रूप से उसे उपयोग करें. इसकी मात्रा 10 टन प्रति ढाई एकड़ या प्रति हेक्टेयर में करना होता है, इसी तरह से हमें खेत में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा भी डालनी होती है. 120 केजी नाइट्रोजन 60 केजी फास्फोरस और 30 से 40 केजी पोटाश की मात्रा का उपयोग करना होता है. फास्फोरस और पोटाश की जो पूरी मात्रा होती है, वह बुवाई के समय ही खेतों में डालना होता है, लेकिन जो नाइट्रोजन की मात्रा होती है उसे 2 बार में डालना होता है. आधा नाइट्रोजन बुवाई के समय पर डालें और आधा एक महीने के बाद जब फसल में कल्ले निकलना शुरू हो जाए तब.
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पानी में ये विशेष ध्यान दें: अगर आपके पास पानी की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है तो हर 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी डाल दें. गेहूं की फसल में देखा जाए तो 5 से 6 लिटर पानी की जरूरत पड़ती है, अगर आपके पास पानी की कमी है तो एक बार 20 से 25 दिन के अंदर फसल में पानी दें, उसके बाद फसल गभोट की अवस्था में 75 से 80 दिन में पानी दें. अगर आप सही तरीके से समय-समय पर अपने फसल को पोषक तत्व देते रहे तो निश्चित तौर पर आप बंपर उत्पादन ले सकते हैं.
लेट बुवाई में बीज चयन इसलिए जरूरी: कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि, अगर आप गेहूं की लेट बुवाई कर रहे हैं और बीजों का सही चयन नहीं करते हैं, तो मार्च-अप्रैल में जो गर्मी पड़ती है उसके कारण जिन बीजों में ज्यादा गर्मी को सहन करने की क्षमता नहीं होती है, उसके दाने पौधे पर पूर्णरूपेण नहीं आ पाएंगे जिसके चलते दाने छोटे हो जाएंगे. ऐसे ही हजार दाने का वजन होता है, जब वह कम हो जाएगा तो निश्चित रूप से उत्पादकता में भी असर होगा.