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शहडोल में नहीं थम रही दगना कुप्रथा, मासूम बच्चे को गर्म सलाखों से दागा, गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती - Child Burnt With Hot Bars In Shahdol

शहडोल में दगना कुप्रथा कम होने का नाम नहीं ले रही है. एक के बाद एक बच्चे इन कुप्रथाओं का शिकार हो रहे हैं. वहीं एक बार फिर आदिवासी जिला शहडोल से बच्चे को दागने की खबर आई है. जिसके बाद बच्चे को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

Shahdol News
मासूम बच्चा
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 19, 2023, 10:01 PM IST

शहडोल में नहीं थम रही दगना कुप्रथा

शहडोल। शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है और यहां आज भी ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं. जहां झाड़-फूंक, अंधविश्वास और दगना जैसी कुप्रथा के शिकार लोग जिंदगी और मौत से जूझते रहते हैं. एक ऐसा ही मामला दगना कुप्रथा को लेकर आया है. जहां एक मासूम बच्चा अब जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है. फिलहाल शहडोल मेडिकल कॉलेज में मासूम का इलाज चल रहा है. जहां स्थिति में पहले से कुछ सुधार बताई जा रही है.

मासूम को गर्म सलाखों से दागा: ये पूरा मामला शहडोल जिले के जनपद पंचायत सोहागपुर अंतर्गत हरदी गांव का है. जहां डेढ़ माह का एक मासूम बच्चे को सांस लेने और पेट फूलने की दिक्कत आ रही थी. जिसके बाद उसके पिता प्रदीप बैगा ने 51 बार गर्म सलाखों से शरीर के हर एक अंग को दगवाया. जिससे मासूम की हालत ज्यादा बिगड़ गई और जब गंभीर अवस्था में मासूम बच्चा पहुंच गया, तो उसे आनन-फानन में उपचार के लिए शहडोल मेडिकल कॉलेज लाया गया. जहां शहडोल मेडिकल कॉलेज में उसे भर्ती किया गया. यहां मासूम जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है.

मासूम की स्थिति गंभीर: मासूम को शहडोल मेडिकल कॉलेज लाया गया, तब मासूम की स्थिति गंभीर बताई जा रही थी. उसका उपचार किया जा रहा है. मासूम जब मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था तो बहुत ही गंभीर अवस्था में था, फिलहाल डॉक्टर उसे अब पहले से बेहतर बता रहे हैं, लेकिन फिर भी अभी ऑक्सीजन पर रखा गया है. बताया जा रहा है कि महज डेढ़ माह के अंदर ही परिजनों ने अंधविश्वास के चलते दूसरी बार उस मासूम बच्चे को गर्म सलाखों से दगवाया है. जब उसकी स्थिति गंभीर अवस्था में पहुंच गई, तब उसे शहडोल मेडिकल कॉलेज लाया गया.

Shahdol Dagna Kupratha
अस्पताल में एडमिट मासूम

अभी ऑक्सीजन पर मासूम: इस पूरे मामले को लेकर मासूम के पिता का कहना है कि बच्चे की तबीयत खराब हुई, तो घर के बड़े बुजुर्ग पुरानी सोच रखने वालों ने बच्चे को गर्म सलाखों से दगवाया था. जिससे बच्चे की हालत बिगड़ने पर उसे उपचार के लिए मेडिकल कॉलेज लाया गया. फिलहाल इस पूरे मामले को लेकर शहडोल मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक डॉक्टर नागेंद्र सिंह का कहना है कि 12-15 दिन पहले एक मासूम बच्चे को दागा गया था. 8 तारीख को मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया. जहां उसे सांस लेने में तकलीफ थी और उसे ऑक्सीजन पर रखा गया था. उसे पेट में दागा गया था और चेहरे के आसपास भी कुछ निशान हैं, लेकिन ज्यादातर पेट में दागा गया है. बच्चा डेढ़ महीने का है. अभी भी ऑक्सीजन पर रखा गया है, लेकिन पहले से उसमें सुधार है.

यहां पढ़ें...

अक्सर आती है कुप्रथा की घटनाएं: गौरतलब है कि शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां आज भी अंधविश्वास के चक्कर में ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं, जो लोगों को हैरान कर दे. जिस तरह से मासूम को गर्म सलाखों से दागा गया है. उसे आदिवासी बहुल इलाके में अंकना कुप्रथा कहा जाता है. इसे लेकर ग्रामीणों को भ्रम है, कि इस कुप्रथा से वो मर्ज ठीक हो जाता है, लेकिन जब वही मासूम गंभीर अवस्था में पहुंच जाते है, और जिंदगी और मौत से जूझने लगते हैं, तब फिर वो अस्पताल पहुंचते हैं. फिर अस्पतालों पर ही ठीक होते हैं, तो वहीं कुछ सही समय पर इलाज न मिलने की वजह से अपनी जान भी गंवा देते हैं. फिर भी इस कुप्रथा को लेकर लोगों के विचार नहीं बदल रहे हैं, और इस तरह की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं, जो हमारे स्वास्थ्य सिस्टम पर कई सवाल भी खड़े कर रहा है.

शहडोल में नहीं थम रही दगना कुप्रथा

शहडोल। शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है और यहां आज भी ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं. जहां झाड़-फूंक, अंधविश्वास और दगना जैसी कुप्रथा के शिकार लोग जिंदगी और मौत से जूझते रहते हैं. एक ऐसा ही मामला दगना कुप्रथा को लेकर आया है. जहां एक मासूम बच्चा अब जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है. फिलहाल शहडोल मेडिकल कॉलेज में मासूम का इलाज चल रहा है. जहां स्थिति में पहले से कुछ सुधार बताई जा रही है.

मासूम को गर्म सलाखों से दागा: ये पूरा मामला शहडोल जिले के जनपद पंचायत सोहागपुर अंतर्गत हरदी गांव का है. जहां डेढ़ माह का एक मासूम बच्चे को सांस लेने और पेट फूलने की दिक्कत आ रही थी. जिसके बाद उसके पिता प्रदीप बैगा ने 51 बार गर्म सलाखों से शरीर के हर एक अंग को दगवाया. जिससे मासूम की हालत ज्यादा बिगड़ गई और जब गंभीर अवस्था में मासूम बच्चा पहुंच गया, तो उसे आनन-फानन में उपचार के लिए शहडोल मेडिकल कॉलेज लाया गया. जहां शहडोल मेडिकल कॉलेज में उसे भर्ती किया गया. यहां मासूम जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है.

मासूम की स्थिति गंभीर: मासूम को शहडोल मेडिकल कॉलेज लाया गया, तब मासूम की स्थिति गंभीर बताई जा रही थी. उसका उपचार किया जा रहा है. मासूम जब मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था तो बहुत ही गंभीर अवस्था में था, फिलहाल डॉक्टर उसे अब पहले से बेहतर बता रहे हैं, लेकिन फिर भी अभी ऑक्सीजन पर रखा गया है. बताया जा रहा है कि महज डेढ़ माह के अंदर ही परिजनों ने अंधविश्वास के चलते दूसरी बार उस मासूम बच्चे को गर्म सलाखों से दगवाया है. जब उसकी स्थिति गंभीर अवस्था में पहुंच गई, तब उसे शहडोल मेडिकल कॉलेज लाया गया.

Shahdol Dagna Kupratha
अस्पताल में एडमिट मासूम

अभी ऑक्सीजन पर मासूम: इस पूरे मामले को लेकर मासूम के पिता का कहना है कि बच्चे की तबीयत खराब हुई, तो घर के बड़े बुजुर्ग पुरानी सोच रखने वालों ने बच्चे को गर्म सलाखों से दगवाया था. जिससे बच्चे की हालत बिगड़ने पर उसे उपचार के लिए मेडिकल कॉलेज लाया गया. फिलहाल इस पूरे मामले को लेकर शहडोल मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक डॉक्टर नागेंद्र सिंह का कहना है कि 12-15 दिन पहले एक मासूम बच्चे को दागा गया था. 8 तारीख को मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया. जहां उसे सांस लेने में तकलीफ थी और उसे ऑक्सीजन पर रखा गया था. उसे पेट में दागा गया था और चेहरे के आसपास भी कुछ निशान हैं, लेकिन ज्यादातर पेट में दागा गया है. बच्चा डेढ़ महीने का है. अभी भी ऑक्सीजन पर रखा गया है, लेकिन पहले से उसमें सुधार है.

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अक्सर आती है कुप्रथा की घटनाएं: गौरतलब है कि शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां आज भी अंधविश्वास के चक्कर में ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं, जो लोगों को हैरान कर दे. जिस तरह से मासूम को गर्म सलाखों से दागा गया है. उसे आदिवासी बहुल इलाके में अंकना कुप्रथा कहा जाता है. इसे लेकर ग्रामीणों को भ्रम है, कि इस कुप्रथा से वो मर्ज ठीक हो जाता है, लेकिन जब वही मासूम गंभीर अवस्था में पहुंच जाते है, और जिंदगी और मौत से जूझने लगते हैं, तब फिर वो अस्पताल पहुंचते हैं. फिर अस्पतालों पर ही ठीक होते हैं, तो वहीं कुछ सही समय पर इलाज न मिलने की वजह से अपनी जान भी गंवा देते हैं. फिर भी इस कुप्रथा को लेकर लोगों के विचार नहीं बदल रहे हैं, और इस तरह की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं, जो हमारे स्वास्थ्य सिस्टम पर कई सवाल भी खड़े कर रहा है.

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