शहडोल। मध्यप्रदेश का शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. लेकिन जिले ने पिछले कुछ सालों में क्रिकेट को लेकर खास पहचान बनाई है. जिले की क्रिकेटर पूजा वस्त्रकार भारतीय महिला टीम (Pooja Vastrakar Cricketer Indian Women Team) की परमानेंट खिलाड़ी हैं, और वर्ल्ड क्रिकेट में धूम मचा रही हैं. वहीं, मध्य प्रदेश की टीम अगर रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) में 23 साल बाद फाइनल खेल रही है, तो उस टीम में भी शहडोल से खेलने वाले कई क्रिकेटर शामिल हैं और बेहतर प्रदर्शन भी कर रहे हैं. यह अपने आप में शहडोल क्रिकेट के लिए एक बड़ा अचीवमेंट है. माना जा रहा है कि शहडोल क्रिकेट का गढ़ बनता जा रहा है.
यहां के खिलाड़ियों में कुछ तो है खास: मध्यप्रदेश के अंतिम छोर छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे शहडोल संभाग के खिलाड़ियों में कुछ तो खास बात है, तभी तो क्रिकेट में यहां के खिलाड़ी लगातार कमाल कर रहे हैं. पूजा वस्त्रकार भारतीय महिला टीम में गेंदबाजी और बल्लेबाजी दोनों से कमाल कर रही हैं. रणजी क्रिकेट में भी इन दिनों शहडोल से खेलने वाले खिलाड़ियों का जलवा कायम है. अभी हाल ही में मध्य प्रदेश (MP Ranji Trophy) की टीम 23 साल बाद रणजी ट्रॉफी के फाइनल में पहुंची तो सेमीफाइनल मुकाबले में शहडोल के खिलाड़ी काफी सुर्खियों में रहे.
क्रिकेट के मैदान में हिमांशु मंत्री का जलवा: हिमांशु मंत्री विकेटकीपर और बल्लेबाज (Himanshu Mantri wicketkeeper and batsman) के तौर पर मध्य प्रदेश की टीम में प्लेइंग इलेवन में शामिल हुए और सेमीफाइनल मुकाबले में मैन ऑफ द मैच बने. हिमांशु मंत्री ने उस समय 165 रन की शानदार पारी खेली जब मध्य प्रदेश की पहली पारी लड़खड़ा रही थी. शुरुआती बल्लेबाज आउट हो चुके थे. इस दौरान हिमांशु मंत्री का साथ दिया अक्षत रघुवंशी ने. जिन्होंने मिडिल ऑर्डर में बल्लेबाजी की और हिमांशु मंत्री के साथ एक अच्छी साझेदारी की. अक्षत ने बचपन से शहडोल से ही क्रिकेट खेला है और अब प्रदेश की रणजी टीम में खेल रहे हैं. वहीं, कुमार कार्तिकेय (Shahdol cricketer kumar karthikeya) ने गेंदबाजी से मैच का रुख बदल दिया और पश्चिम बंगाल जैसी मजबूत टीम को सेमीफाइनल में हराने में अहम रोल अदा किया. कुमार कार्तिकेय भी शहडोल से ही खेलते हैं. जिस तरह से साल दर साल यहां के खिलाड़ी कमाल कर रहे हैं और रणजी ट्रॉफी से लेकर भारतीय टीम तक अपनी धमक दिखा रहे हैं, उससे यही लग रहा है कि यहां क्रिकेट में जुनून का लेवल कुछ अलग ही है.
ये तो अभी झांकी है, असली पिक्चर बाकी है: शहडोल संभागीय क्रिकेट संघ (Shahdol Divisional Cricket Association) के सचिव अजय द्विवेदी बताते हैं की शहडोल के खिलाड़ियों में पहले से ही कुछ अलग बात रही है. जिले के जफर अली कई साल पहले ही रणजी ट्रॉफी खेल चुके हैं और अब हिमांशु मंत्री कमाल कर रहे हैं. कुमार कार्तिकेय भी शहडोल टीम से खेलते हैं. इसके अलावा अक्षत रघुवंशी भी बचपन से ही यहां क्रिकेट खेले हैं, वह काफी कम उम्र से रणजी ट्रॉफी खेल रहे हैं. यहां के खिलाड़ी मौका मिलने पर हर मंच पर बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, उससे इन खिलाड़ियों का भविष्य बहुत उज्ज्वल लगता है. जब जिले के क्रिकेटर बड़े लेवल पर पहुंचते हैं तो जाहिर सी बात है यहां के जूनियर क्रिकेटर्स का भी उत्साह बढ़ता है. इसी का नतीजा है कि एमपी की अलग-अलग एज ग्रुप की टीम में शहडोल संभाग के कई युवा खिलाड़ी हर साल शामिल होते हैं. साल दर साल यहां का क्रिकेट एक अलग लेवल पर जा रहा है.
यहां क्रिकेट का अब अलग ही मूड है: लड़के हों या लड़कियां क्रिकेट का असली जुनून देखना है तो शहडोल स्टेडियम में देखिए. यहां पर सुबह हो या शाम आपको 30 से 40 लड़के-लड़कियां क्रिकेट की बारीकियां सीखते मिल जाएंगे. यहां क्रिकेट की ट्रेनिंग देखकर यही लगता है कि शहडोल जिला भले ही आदिवासी बाहुल्य जिला है लेकिन यहां क्रिकेट का मूड बदल गया है. खिलाड़ियों में क्रिकेट को लेकर एक अलग ही जुनून देखने को मिल रहा है.
क्रिकेट को लेकर गजब का जुनून: एमपीसीए के शहडोल सब सेंटर में बतौर कोच काम करने वाले सोनू रॉबिन्सन कई सालों से शहडोल क्रिकेट से जुड़े हुए हैं. वह युवाओं को क्रिकेट की बारीकियां सिखाते हैं. सोनू रॉबिन्सन बताते हैं कि जिस तरह से यहां के कुछ खिलाड़ी सफल हुए हैं उसके बाद से यहां क्रिकेट का लेवल बदल गया है. खिलाड़ियों में एक अलग ही जुनून है. सुबह हो या शाम, कितने भी घंटे मेहनत करने को खिलाड़ी तैयार रहते हैं. इनकी तकनीक की बात की जाए तो ये खिलाड़ी काफी साउंड हैं. बस इन्हें एक प्लेटफार्म का इंतजार रहता है. चाहे डिविजनल मैच खेलने हों या डिस्ट्रिक्ट मैच, खिलाड़ी पसीना बहाने के लिए तैयार रहते हैं. जब ट्रायल चलते हैं तो मैच में अपना सब कुछ झोंक देते हैं.
ट्रेनिंग के लिए 40-50 किमी दूर से भी आते हैं बच्चे: खिलाड़ियों का क्रिकेट के प्रति जुनून ऐसा है कि 40-50 किलोमीटर दूर से भी बच्चे ट्रेनिंग करने आते हैं. अब तो अलग-अलग जिलों से भी बच्चे ट्रेनिंग करने पहुंच रहे हैं. सोनू रॉबिंसन बताते हैं की पहले पेरेंट्स क्रिकेट में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं लेते थे. लेकिन अब वो भी अपने बच्चों को क्रिकेट में दाखिला दिलाने के बारे में सोचते हैं और क्रिकेट की बारीकियां सिखाने के लिए यहां भेज रहे हैं. इसी का नतीजा है कि अब यहां नई-नई प्रतिभाएं निकलकर सामने आ रही हैं, जो आगे चलकर और नाम कमाएंगी.
खिलाड़ी बढ़ा रहे जिले की शान: आदिवासी बाहुल्य जिले के तौर पर पहचान रखने वाले शहडोल की पहचान अब क्रिकेट के गढ़ के रूप में भी होने लगी है. यहां के खिलाड़ी जिले का नाम रोशन कर रहे हैं. मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि देश दुनिया में अब शहडोल का नाम इन क्रिकेटर्स की वजह से लोग जान रहे हैं. शहडोल जिला भले ही छोटी सी जगह है. लेकिन अगर कड़ी मेहनत की जाए तो सफलता जरूर मिलती है. उसी का नतीजा है कि अब यहां के क्रिकेटर सफल हो रहे हैं.
(Shahdol Became Stronghold of cricket) (Many cricketer selected in competition from Shahdol) (Cricket players are increasing pride of Shahdol) (Cricket passion in Shahdol) (Shahdol cricketers selected in Indian team)