शहडोल। मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी लगातार अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं. वे विंध्य प्रदेश बनाने की मांग को लेकर क्षेत्रीय नेताओं को जोड़ने की कवायद कर रहे हैं. इसी सिलसिले में उन्होंने कुछ दिनों पहले ही अपने निवास पर बैठक बुलाई थी. इस संबंध में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने उन्हें तलब भी किया था. लेकिन इन तमाम राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच एक बात तो साफ है कि एक बार फिर विंध्य प्रदेश की मांग जो पकड़ रही है. इस संबंध में ईटीवी भारत की टीम ने अलग-अलग तबके के लोगों से बातचीत की और उनसे विंध्य प्रदेश को लेकर उनकी राय जानी.
'छोटे राज्य बनने से होता है विकास'
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अजय अवस्थी कहते हैं कि विंध्य प्रदेश की मांग समय-समय पर सामने आती रही है.पंडित शंभूनाथ शुक्ल उस के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. छोटे-छोटे राज्य बनने से उन राज्यों का विकास तो होता है. पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ एक ही थे. लेकिन जब छत्तीसगढ़ अलग हुआ, तो आप खुद देख सकते हैं छत्तीसगढ़ का विकास मध्यप्रदेश की अपेक्षा ज्यादा हुआ है. ऐसे में अगर विंध्य प्रदेश बनता है तो निश्चित ही विन्ध्य के लोगों को लाभ होगा. मुझे ऐसा लगता है छोटे प्रदेश ज्यादा ग्रोथ करते हैं, और वहां विकास की ज्यादा संभावना होती है.
विकास में पिछड़ा है विंध्य क्षेत्र, प्रदेश बनने से होगा विकास होगा'
समाजसेवी सुशील सिंघल का कहना है कि हमारा मध्य प्रदेश बहुत बड़ा प्रदेश है. प्रदेश का विकास तो हुआ है. लेकिन ये सिर्फ भोपाल और इंदौर के आस-पास के क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया है. विंध्य क्षेत्र विकास की दौड़ में पिछड़ गया है. मेरा मानना है कि जब बड़ा प्रदेश होता है, तो तो विकास नहीं हो पाता है. विंध्य प्रदेश की डिमांड बिलकुल सही है. सांस्कृतिक तौर पर भी विंध्य क्षेत्र का कल्चर महाकौशल और अन्य क्षेत्रों से अलग है. प्रदेश बनेगा तो इस क्षेत्र का विकास हो सकेगा.
क्या कहते हैं किसान ?
भारतीय किसान संघ के जिलाध्यक्ष भानुप्रताप सिंह भी कहीं ना कहीं विंध्य प्रदेश की मांग के पक्षधर हैं. उन्होंने कहा कि वैसे हम तो किसान संघ के कार्यकर्ता हैं. हमको राजनीति से ज्यादा कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन ये जरूर है कि क्षेत्र की इकाई जितनी छोटी होती है, उसकी व्यवस्था करना उतना ही सरल होता है. जिससे उसका विकास भी तेजी से होता है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण छत्तीसगढ है.
विकास के साथ क्षेत्र को मिलेगी नई पहचान
वरिष्ठ पत्रकर सुभाष मिश्रा बताते हैं कि विंध्य प्रदेश की मांग की मुख्य वजह है क्षेत्र का पिछड़ापन. विकास की मुख्यधारा से कटा हुआ होना. विंध्य प्रदेश से मध्य प्रदेश तक का सफर तय करने में जिस तरह की विकास की गति आम जनता को मिलनी चाहिए थी, वह अभी तक नहीं मिल पाई है. छत्तीसगढ़ में जिस तेजी से विकास हुआ है उतना विंध्य क्षेत्र के लोगों का विकास नहीं हो पा रहा है. वर्तमान में चाहे कांग्रेस हो या भाजपा हो या यहां के क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों को जिस तरीके से हतोत्साहित किया जा रहा है, इससे क्षेत्रीय जनता का वर्चस्व कम हो रहा है. यहां के नेताओं की शक्तियों को कम किया जा रहा है. इससे क्षेत्रीय जनता में आक्रोश है. अगर विंध्य प्रदेश बनता है, विकास के रास्ते खुलेंगे.
लंबे समय से चल रही है विंध्य प्रदेश की मांग
दरअसल, 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद से ही अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग चल रही है. मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी भी अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने के पक्षधर थे. श्रीनिवास तिवारी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर विधानसभा में एक राजनीतिक प्रस्ताव भी रखा था. जिसमें उन्होंने कहा था कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र को मिलाकर अलग विंध्य प्रदेश बनाया जाए. हालांकि इस मुद्दे पर ज्यादा विचार नहीं हुआ. लेकिन विधानसभा में प्रस्ताव आने के बाद गाहे-बगाहे कई नेता अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग समय-समय पर उठाते रहते हैं. कई बार विंध्य प्रदेश को लेकर छोटे-मोटे आंदोलन भी हुए हैं.
केंद्र सरकार को भी भेजा गया था पत्र
खास बात यह है कि साल 2000 में केंद्र की एनडीए सरकार ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांखड राज्यों के गठन को स्वीकृति थी. उस वक्त पूर्व कांग्रेस विधायक-सांसद रहे श्रीनिवास तिवारी के पुत्र सुंदरलाल तिवारी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर साल 2000 में केंद्र सरकार को पत्र लिखा था. इसके लिए मध्य प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा से एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था. लेकिन तब केंद्र सरकार ने इसे खारिज करते हुए मध्य प्रदेश से अलग केवल छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना को हरी झंडी दी थी.
कितना बड़ा है मध्य प्रदेश का विंध्य अंचल ?
विंध्य क्षेत्र में रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया और शहडोल जिले आते हैं. जबकि कटनी जिले का कुछ हिस्सा भी विंध्य क्षेत्र का माना जाता है. इसके अलावा यूपी के कई जिले भी विंध्य क्षेत्र का हिस्सा माने जाते हैं. मध्यप्रदेश के गठन से पहले विंध्य अलग प्रदेश था, जिसकी राजधानी रीवा थी. आजादी के बाद सेंट्रल इंडिया एंजेसी ने पूर्वी भाग की रियासतों को मिलाकर 1948 में विंध्य राज्य का गठन किया था. विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का पठारी भाग माना जाता है. एक ऐसा प्रदेश जो प्राकृतिक और ऐतिहासिक संपदाओं से परिपूर्ण था. इतना ही नहीं विंध्य प्रदेश में 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन भी किया गया था. विंध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पंडित शंभुनाथ शुक्ला थे, जो शहडोल के रहने वाले थे. वर्तमान में जिस इमारत में रीवा नगर-निगम संचालित किया जाता है, वह इमारत उस वक्त विंध्य प्रदेश की विधानसभा थी. विंध्य प्रदेश करीब चार साल तक अस्तित्व में रहा. लेकिन 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के साथ ही विंध्य प्रदेश को भी मध्य प्रदेश में मिला दिया गया.
कहीं ये दबाव की राजनीति तो नहीं ?
दरअसल कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव बीजेपी ने विंध्य अंचल की 30 विधानसभा सीटों में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 2020 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद शिवराज मंत्रिमंडल में विंध्य अंचल के कई वरिष्ठ विधायकों को जगह नहीं दी गयी. ऐसे में नारायण त्रिपाठी की विंध्य प्रदेश को अलग राज्य बनाए जाने की मांग सरकार पर दबाव की राजनीति का एक हिस्सा भी माना जा रहा है.