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Pooja Ghar Vastu बना रहे हैं मकान में पूजा घर, तो इन बातों का रखें खास ध्यान, धन-धान्य से भर जाएगा घर

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Published : Jan 6, 2023, 3:45 PM IST

Pooja Ghar Vastu सभी अपने घरों पर पूजा घर बनाकर भगवान का भजन और पूजा-पाठ करते हैं लेकिन घर में पूजाघर बनाने से पहले भी कई विशेष बातों का ध्यान रखना होता है. अगर आप भी कुछ खास टिप्स को फॉलो करेंगे तो घर में क्लेश नहीं रहेगा साथ ही धन-धान्य की कमी भी नहीं रहेगी. पूरी जानकारी वास्तुशास्त्रविद से जानें.

pooja ghar kaha banaye
पूजा घर कहां बनाएं

शहडोल। अगर घर में पूजा घर बनाने की सोच रहे हैं तो उसमें वास्तु शास्त्र का भी ध्यान रखना जरूरी होता है. घर के किस कोने पर पूजा घर बनाना चाहिए, घर में किन जगहों पर बिल्कुल भी पूजा घर नहीं बनाना चाहिए, किस तरह की मूर्ति स्थापित करें और ऐसा करने से किस तरह का लाभ होगा. पूजा घर के लिए वास्तुशास्त्र को लेकर ज्योतिषाचार्य और वास्तुशास्त्रविद सूर्यकांत शुक्ला इन सभी बिंदुओं को विस्तार से बताया है. (Vastushastra Pooja Ghar) इस आर्टिकल में आपको मंदिर वास्तुशास्त्र से जुड़ी पूरी जानकतारी मिलेगी.

कहां बनाएं पूजा घर: वास्तुशास्त्रविद सूर्यकांत शुक्ला के अनुसार की वास्तु शास्त्र में मुख्य रूप से भूखंड और भूखंड में निर्मित होने वाले मनुष्य के रहने योग्य साधन संसाधन के विषय में विचार किया जाता है. पहले जो ऋषि मुनि हुआ करते थे वो वास्तु विचारण करके ही रुकते थे. वास्तु शास्त्र के अनुसार जलाशय, पूजा घर, भोजनालय, शिक्षा ग्रहण करने का कक्ष, इत्यादि पर विशेष रूप से विचार किया जाता है की इन्हें कहां बनाना चाहिए. घर में अक्सर वास्तु के मुताबिक मध्य स्थान को रिक्त रखा जाता है, वहीं प्रमुख रूप से वास्तु के विचारण में सर्वप्रथम देव मूर्ति की स्थापना स्थल का विचारण किया जाता है.

इसके विचारण के साथ ही गृह निर्माण या वास्तु इसके विचारण के साथ ही गृह निर्माण या वास्तु की स्थिति का विचारण करना चाहिए. वैसे शास्त्रोक्त दृष्टि से किसी भी घर में ईशान कोण पर ही पूजा घर का निर्माण होना चाहिए. पूजा घर बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पूजा घर बहुत ऊंचा नहीं होना चाहिए. पूजा घर को वैसे तो मंदिरनुमा बनाना निषेध है और न ही 5 से 6 फिट से बड़ा होना चाहिए. इसके अलावा घर के ईशान कोण पर बने कक्ष में ही पूजा घर का एक स्वरूप निर्मित करना चाहिए. जिसमें ऊंची मूर्ति नहीं रखनी चाहिए. 3 इंच के लगभग ही मूर्ति की लंबाई होनी चाहिए या यूं कहें कि एक अंगूठे के बराबर ही मूर्ति की लंबाई होनी चाहिए.

पूजा घर में ऐसा बिल्कुल न करें: ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि विशेषकर जिन देवताओं पर हमारी अटूट श्रद्धा है उन्हीं मूर्तियों को पूजा घर में रखना चाहिए. पूजा घर में अनेक तरह के चित्र कलाकारी स्थापित नहीं करनी चाहिए. पूजा घर में पंच देवता का निश्चित रूप से पूजा होनी चाहिए, ब्रह्मा विष्णु, महेश और मां भगवती और भगवान गणपति. सामान्य स्थापना करके मनुष्य को पूजा घर में पूजा करना चाहिए. जिससे घर में समस्त प्रकार के वास्तु से संबंधित दोषों का निवारण होता है. वहीं ईशान कोण में जिस घर पर पूजा घर है वहां पर बहुत भारी भरकम चीजों की स्थापना नहीं करनी चाहिए. बहुत ही सामान्य सरल कलर की पुताई करनी चाहिए. पूजा घर के पास किसी तरह का कचड़ा जमा न होने दें इसका वास्तु पर विपरीत असर पड़ता है. वहीं ईशान कोण में मंदिर के स्थल पर शयन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए.

अगर सही जगह पर न बना हो पूजा घर: ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के जानकार सूर्यकांत शुक्ला बताते हैं की अगर पूजा घर ईशान कोण या ईशान कोण उत्तर में स्थापना नहीं है किसी अन्य जगह पर है तो अनेक प्रकार से इसके दोष उत्पन्न होते हैं, जैसे घर में लक्ष्मी का वास नहीं होता है अनेक तरह की समस्याएं आती हैं. धन आदि में व्यवधान आना, समृद्ध ना होना, मानसिक शारीरिक कष्ट होना इस तरह के कष्ट होते हैं. ईशान कोण पर अगर पूजा घर स्थापित नहीं है तो ईशान्य उत्तर में भी उसकी स्थापना कर सकते हैं.

पूजा घर में टूटी मूर्ति न रखें: ज्योतिषाचार्य सूर्यकांत शुक्ला के मुताबिक पूजा घर में सबसे ज्यादा जरूरी है कि घर के पूजा घर में कभी भी खंडित मूर्ति नहीं रखनी चाहिए. जो मूर्ति खंडित हो चुकी है उसे तुरंत ही मंदिर से हटा देनी चाहिए या मूर्तियों को नदी में बहा दिया, तालाब में विसर्जन कर दें, या पीपल के पेड़ के नीचे रख दें टूटी मूर्ति को मंदिर में रखना अशुभ माना जाता है.

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घर से जुड़ा मंदिर बिल्कुल भी न बनाएं: मंदिर की बात करें तो जिन मंदिरों में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है उन मंदिरों को अपने आवास से सटाकर बिल्कुल भी नहीं बनाना चाहिए. विद्वानों का मानना है कि अगर ऐसा करते हैं तो उस स्थल पर चूंकि प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति में सदैव भगवान की स्थापना होती है जिस प्रकार से मनुष्य के दैनिक जीवन की अपनी क्रियाएं हैं जैसे उठना भोजन करना शयन करना पूरे दिन रात का एक रूटीन होता है. ऐसे ही मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति का भी एक रूटीन होता है, इसी प्रकार से प्रातः समय पर जगाया जाता है फिर स्नान आदि कराया जाता है. भोग लगाया जाता है फिर सयन कराया जाता है. ऐसे में अगर घर से मंदिर जुड़ा है तो मनुष्य हर समय एक पवित्र वातावरण के साथ नहीं रह पाता है. जैसे जीवन के अनेकों तरह के कार्य हैं जिसकी वजह से वह देवस्थल से घर गृहस्थ का मकान है और अगर वह पूजा स्थल से जुड़ा हुआ है तो उसके घर में मकान का दोष जैसे सुख भी होगा दुख भी होगा, मंदिर को प्रभावित करेगा इसलिए मंदिर को अपने निवास स्थल से या फिर घर से थोड़ी दूर बनाना चाहिए.

शहडोल। अगर घर में पूजा घर बनाने की सोच रहे हैं तो उसमें वास्तु शास्त्र का भी ध्यान रखना जरूरी होता है. घर के किस कोने पर पूजा घर बनाना चाहिए, घर में किन जगहों पर बिल्कुल भी पूजा घर नहीं बनाना चाहिए, किस तरह की मूर्ति स्थापित करें और ऐसा करने से किस तरह का लाभ होगा. पूजा घर के लिए वास्तुशास्त्र को लेकर ज्योतिषाचार्य और वास्तुशास्त्रविद सूर्यकांत शुक्ला इन सभी बिंदुओं को विस्तार से बताया है. (Vastushastra Pooja Ghar) इस आर्टिकल में आपको मंदिर वास्तुशास्त्र से जुड़ी पूरी जानकतारी मिलेगी.

कहां बनाएं पूजा घर: वास्तुशास्त्रविद सूर्यकांत शुक्ला के अनुसार की वास्तु शास्त्र में मुख्य रूप से भूखंड और भूखंड में निर्मित होने वाले मनुष्य के रहने योग्य साधन संसाधन के विषय में विचार किया जाता है. पहले जो ऋषि मुनि हुआ करते थे वो वास्तु विचारण करके ही रुकते थे. वास्तु शास्त्र के अनुसार जलाशय, पूजा घर, भोजनालय, शिक्षा ग्रहण करने का कक्ष, इत्यादि पर विशेष रूप से विचार किया जाता है की इन्हें कहां बनाना चाहिए. घर में अक्सर वास्तु के मुताबिक मध्य स्थान को रिक्त रखा जाता है, वहीं प्रमुख रूप से वास्तु के विचारण में सर्वप्रथम देव मूर्ति की स्थापना स्थल का विचारण किया जाता है.

इसके विचारण के साथ ही गृह निर्माण या वास्तु इसके विचारण के साथ ही गृह निर्माण या वास्तु की स्थिति का विचारण करना चाहिए. वैसे शास्त्रोक्त दृष्टि से किसी भी घर में ईशान कोण पर ही पूजा घर का निर्माण होना चाहिए. पूजा घर बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पूजा घर बहुत ऊंचा नहीं होना चाहिए. पूजा घर को वैसे तो मंदिरनुमा बनाना निषेध है और न ही 5 से 6 फिट से बड़ा होना चाहिए. इसके अलावा घर के ईशान कोण पर बने कक्ष में ही पूजा घर का एक स्वरूप निर्मित करना चाहिए. जिसमें ऊंची मूर्ति नहीं रखनी चाहिए. 3 इंच के लगभग ही मूर्ति की लंबाई होनी चाहिए या यूं कहें कि एक अंगूठे के बराबर ही मूर्ति की लंबाई होनी चाहिए.

पूजा घर में ऐसा बिल्कुल न करें: ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि विशेषकर जिन देवताओं पर हमारी अटूट श्रद्धा है उन्हीं मूर्तियों को पूजा घर में रखना चाहिए. पूजा घर में अनेक तरह के चित्र कलाकारी स्थापित नहीं करनी चाहिए. पूजा घर में पंच देवता का निश्चित रूप से पूजा होनी चाहिए, ब्रह्मा विष्णु, महेश और मां भगवती और भगवान गणपति. सामान्य स्थापना करके मनुष्य को पूजा घर में पूजा करना चाहिए. जिससे घर में समस्त प्रकार के वास्तु से संबंधित दोषों का निवारण होता है. वहीं ईशान कोण में जिस घर पर पूजा घर है वहां पर बहुत भारी भरकम चीजों की स्थापना नहीं करनी चाहिए. बहुत ही सामान्य सरल कलर की पुताई करनी चाहिए. पूजा घर के पास किसी तरह का कचड़ा जमा न होने दें इसका वास्तु पर विपरीत असर पड़ता है. वहीं ईशान कोण में मंदिर के स्थल पर शयन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए.

अगर सही जगह पर न बना हो पूजा घर: ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के जानकार सूर्यकांत शुक्ला बताते हैं की अगर पूजा घर ईशान कोण या ईशान कोण उत्तर में स्थापना नहीं है किसी अन्य जगह पर है तो अनेक प्रकार से इसके दोष उत्पन्न होते हैं, जैसे घर में लक्ष्मी का वास नहीं होता है अनेक तरह की समस्याएं आती हैं. धन आदि में व्यवधान आना, समृद्ध ना होना, मानसिक शारीरिक कष्ट होना इस तरह के कष्ट होते हैं. ईशान कोण पर अगर पूजा घर स्थापित नहीं है तो ईशान्य उत्तर में भी उसकी स्थापना कर सकते हैं.

पूजा घर में टूटी मूर्ति न रखें: ज्योतिषाचार्य सूर्यकांत शुक्ला के मुताबिक पूजा घर में सबसे ज्यादा जरूरी है कि घर के पूजा घर में कभी भी खंडित मूर्ति नहीं रखनी चाहिए. जो मूर्ति खंडित हो चुकी है उसे तुरंत ही मंदिर से हटा देनी चाहिए या मूर्तियों को नदी में बहा दिया, तालाब में विसर्जन कर दें, या पीपल के पेड़ के नीचे रख दें टूटी मूर्ति को मंदिर में रखना अशुभ माना जाता है.

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घर से जुड़ा मंदिर बिल्कुल भी न बनाएं: मंदिर की बात करें तो जिन मंदिरों में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है उन मंदिरों को अपने आवास से सटाकर बिल्कुल भी नहीं बनाना चाहिए. विद्वानों का मानना है कि अगर ऐसा करते हैं तो उस स्थल पर चूंकि प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति में सदैव भगवान की स्थापना होती है जिस प्रकार से मनुष्य के दैनिक जीवन की अपनी क्रियाएं हैं जैसे उठना भोजन करना शयन करना पूरे दिन रात का एक रूटीन होता है. ऐसे ही मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति का भी एक रूटीन होता है, इसी प्रकार से प्रातः समय पर जगाया जाता है फिर स्नान आदि कराया जाता है. भोग लगाया जाता है फिर सयन कराया जाता है. ऐसे में अगर घर से मंदिर जुड़ा है तो मनुष्य हर समय एक पवित्र वातावरण के साथ नहीं रह पाता है. जैसे जीवन के अनेकों तरह के कार्य हैं जिसकी वजह से वह देवस्थल से घर गृहस्थ का मकान है और अगर वह पूजा स्थल से जुड़ा हुआ है तो उसके घर में मकान का दोष जैसे सुख भी होगा दुख भी होगा, मंदिर को प्रभावित करेगा इसलिए मंदिर को अपने निवास स्थल से या फिर घर से थोड़ी दूर बनाना चाहिए.

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