शहडोल। खरीफ सीजन की शुरूआत बस कुछ ही दिनों में हो जाएगी. क्योंकि जैसे ही बारिश होगी किसान खेती किसानी भी शुरू कर देगा. ऐसे में किसान अब अपने खरीफ सीजन की खेती की तैयारी में भी जुटा हुआ है. जिसके लिए जरूरत के हिसाब से किसान रासायनिक खाद भी अपने घरों में लाकर रख रहा है. ऐसे में जो खाद किसान घर ला रहा है वह असली है या नकली इसकी पहचान किसान कैसे करें, यह बड़ी समस्या है (Fertilizer Tips for Farmers). तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं वो आसान उपाय जिन्हें महज कुछ मिनट में ही करके ये जान सकते हैं कि खाद असली हैं या नकली.
असली और नकली खाद की ऐसे करें पहचान: पूर्व कृषि विस्तार अधिकारी अखिलेश नामदेव बताते हैं कि ''आज के समय में रासायनिक खाद में भी मिलावट की संभावनाएं बनने लगी हैं. ऐसे में किसानों के लिए बहुत जरूरी हो गया है कि वह भी जानें कि कैसे वह अपने घरों पर ही आसानी से इसकी पहचान कर सकते हैं.''
यूरिया: यूरिया को वैसे तो लगभग सभी किसान अच्छी तरह से पहचानते हैं. यूरिया एक सफेद रंग का दानेदार मोती की तरह चमकता हुआ पदार्थ है. अगर उसकी जांच करनी है, इसमें मिलावट है या नहीं, यूरिया नकली है या असली. तो उसके लिए पहले यूरिया को पानी में घोलेंगे और देखेंगे कि पानी में यूरिया अच्छी तरह से घुल जाए और जब यूरिया घुले हुए पानी को छूते हैं तो उसमें बहुत ज्यादा ठंडक महसूस होती है, बड़ी शीतलता होती है. इस कंडीशन में यूरिया असली मानी जाती है.
गर्म तवे से यूरिया की जांच: यूरिया की दूसरी जांच में गर्म तवे पर यूरिया के दानों को रखते हैं. कुछ देर बाद देखते हैं वह दाने पिघलने लगते हैं, अगर तवे का तापक्रम तेज कर दिया जाए तो उसमें से सारा यूरिया ही उड़ जाता है, उसमें अवशेष कुछ भी नहीं बचता है. अगर गर्म तवे से यूरिया पूरी तरह से उड़ जाए तो वो असली है, यह यूरिया की प्रमुख जांच है कि यूरिया असली है या नकली है.
डीएपी की जांच: आजकल खेती में डीएपी का इस्तेमाल भी ज्यादातर किसान करते हैं और ज्यादा इस्तेमाल होने की वजह से इसमें मिलावट की संभावना भी सबसे ज्यादा बनती है. डीएपी खाद को खरीदने से पहले किसानों को इसकी अच्छी तरह से जांच पड़ताल कर लेनी चाहिए.
डीएपी को नाखून से खुर्चा नहीं जा सकता: डीएपी की प्रमुख पहचान यही है कि डीएपी काला और भूरे रंग का होता है. किसान जानता है कि डीएपी काला, बादामी, भूरा दानेदार होता है. इसकी जांच पड़ताल करने के लिए सबसे पहले किसान को यह देखना है कि डीएपी उर्वरक को नाखून से खुर्चा नहीं जा सकता है. अगर डीएपी असली है तो उसे नाखून से नहीं खुर्चा जा सकता, इस कंडीशन में डीएपी असली होती है.
डीएपी को चूने के साथ हथेली पर रगड़ें: दूसरी पहचान यह है कि डीएपी के कुछ दाने किसान भाई अपनी हथेली पर लें और उसमें चूना मिलाकर उसे तंबाकू की तरह रगड़ें. जब रगड़ेंगे तो उसमें तीक्ष्ण गंध आएगी अगर बहुत ही तीक्ष्ण गंध आती है तो वह असली डीएपी है. डीएपी की एक और पहचान ये है कि गर्म तवा लेते हैं और गर्म तवे में डीएपी के कुछ दाने भी रख देते हैं. तब आप देखेंगे कि कुछ देर बाद डीएपी के दाने फूलने लग जाएंगे अगर डीएपी का दाना फूलने लग जाता है, इससे सिद्ध होता है कि यह डीएपी शुद्ध है इसमें कोई मिलावट नहीं है.
सुपर फास्फेट: सुपर फास्फेट का इस्तेमाल भी किसान भाई बहुत ज्यादा करते हैं. सुपर फास्फेट को किसान जानता है कि कुछ भूरे रंग का, काले रंग का दानेदार पदार्थ होता है, चूर्ण भी होता है. तो उस चूर्ण या दाने को अगर हम तवे पर रखकर गर्म करते हैं तो दाने उसी स्थिति में रहे आते हैं, उसमें कोई और विपरीत स्थिति नहीं बनती है. अगर डीएपी और एनपीके के दाने मिले हैं तो वह जरूर फूलने लग जाते हैं. इससे पता चल जाता है कि सुपर फास्फेट मिलावटी है. सुपर फास्फेट में डीएपी एनपीके के मिलावट की संभावना ज्यादा रहती है.
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पोटाश: पोटाश सफेद या लाल मिर्ची के रंग की तरह होता है. इसकी जांच के लिए आसान उपाय ये है कि पोटाश को जब थोड़ा नम करते हैं उसके जो कड हैं वह एक दूसरे से चिपकने लग जाते हैं. इसके अलावा उसको अगर हम पानी में घोलते हैं तो उसमें जो उसका लाल वाला भाग है वह ऊपर आ जाता है और जो बाकी का भाग है वो नीचे चला जाता है. इससे यह सिद्ध होता है कि पोटाश शुद्ध है.
जिंक सल्फेट: धान की ज्यादातर खेती करने वाले किसान अधिकतर जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करते हैं. जिंक सल्फेट के उपयोग से उनका उत्पादन तो बढ़ता ही है और किसानों के लिए कहा भी जाता है कि 3 वर्ष में एक बार किसानों को अपने खेत में जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए. इसकी जांच करने के लिए एक बाल्टी में हम जिंक सल्फेट को घोल लेते हैं और एक बाल्टी में हम डीएपी को घोल लें और जब हम डीएपी के घोल को जिंक सल्फेट में मिलाते हैं तो उसमें थक्के के आकार बनने लगते हैं. इससे सिद्ध होता है कि इसमें मिलावट नहीं है. अगर और कोई जांच करनी है तो उसमें पतला कास्टिक घोल मिलाते हैं पतला कास्टिक घोल मिलाने से उसमें मटमैला जैसा रंग आ जाता है. जब कास्टिक सोडा मिलाते हैं तो इससे थक्के बनने लगते हैं तो इससे साफ हो जाता है कि जिंक सल्फेट शुद्ध है.