ग्वालियर: हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के एक आदेश से सैकड़ों किसानों को राहत मिली है. कोर्ट ने भारत विभाजन के समय पाकिस्तान गए लोगों की जमीनों पर दशकों से काबिज लोगों को ही जमीन का असली हकदार माना है. हाई कोर्ट ने 2009 में सरकार के पूर्व फैसले को सही ठहराते हुए विदिशा कलेक्टर को निर्देशित किया है कि वह कई सालों से जमीन पर काबिज किसानों को जमीन का असली हकदार माने और राजस्व रिकॉर्ड में उनके नाम अंकित करे.
ये है पूरा मामला
विदिशा जिले के गुलाबगंज तहसील के मुंगवारा में ऐसी करीब 100 एकड़ से ज्यादा जमीन है, जो शत्रु भूमि मानी जाती है. हालांकि जमीन पर विभाजन के बाद स्थानीय लोगों ने कब्जा कर वहां खेती-बाड़ी शुरू कर दी थी. प्रदेश सरकार ने 1990 में स्थानीय किसानों को ही जमीन का असली हकदार माना था और उनके नाम जमीन का आवंटन कर दिया था, लेकिन इसके खिलाफ सरकार के 2005 के एक आदेश का हवाला देते हुए इन आवंटनों को 2012 में रद्द कर दिया था और कहा गया था कि 2009 में जो निष्कांत भूमि यानी शत्रु की जमीन का आवंटन किया गया था, वह कानून 2005 में केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया था.
इसलिए किसानों को जिस कानून के तहत कृषि भूमि आवंटित की गई थी, उसे रद्द कर दिया गया. इसको लेकर विदिशा जिले के गुलाबगंज तहसील के मुंगवारा गांव के करीब 12 किसानों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
2012 का आदेश अवैध
किसानों के अधिवक्ता पवन रघुवंशी ने न्यायालय को बताया कि निरसन कानून 1954 इन प्रभावित किसानों पर लागू नहीं होता, क्योंकि यह कार्रवाई पहले से ही प्रचलनशील थी. इसलिए 2012 का आदेश सरकार का अवैध था. हाई कोर्ट ने भी किसानों के अधिवक्ता पवन रघुवंशी की दलील को सही माना और 2012 में निरस्त आवंटन को बहाल करने के निर्देश दिया.
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100 एकड़ से ज्यादा जमीन शत्रु भूमि
एडवोकेट पवन रघुवंशी ने बताया कि "विदिशा जिले में करीब 100 एकड़ निष्कांत भूमि है, जो लोग विभाजन के समय देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे. इनमें हिंदू और मुसलमान दोनों ही थे. बाद में स्थानीय लोगों ने इस शत्रु भूमि पर कब्जा कर वहां खेती-बाड़ी शुरू कर दी थी. उनका कहना है कि उनके लगभग कई याचिकाकर्ता किसानों की जमीन 8 हेक्टेयर थी, जबकि जिले में ऐसी शत्रु भूमि करीब 100 हेक्टेयर है. हाई कोर्ट के इस आदेश से अब पूर्व से काबिज किसानों को बड़ी राहत मिली है."