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MP में प्रचंड जीत के बाद भी बीजेपी को क्यों है कसक, आदिवासी वोट बैंक के लिए कहां रह गई कसर - बीजेपी ने झोंकी थी पूरी ताकत

Tribal votebank in MP : मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार देशभर की नजरें थीं. बीजेपी ने 163 सीटों के साथ बड़ी जीत दर्ज की. बीजेपी की इस आंधी में कांग्रेस के कई बड़े नेता उड़ गए. लेकिन जिस आदिवासी वोट बैंक के लिए बीजेपी ने पूरी रणनीति बनाई. वहां उसे सफलता तो मिली लेकिन जैसी उम्मीद थी वैसी नहीं. कांग्रेस पर आदिवासियों का अभी भी विश्वास बना हुआ है. ये बीजेपी के लिए चिंता का सबब है.

MP assembly election 2023
एमपी में प्रचंड जीत के बाद बीजेपी को क्यों है कस
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 16, 2023, 3:48 PM IST

शहडोल। मध्यप्रदेश में बीजेपी को जिन 47 आदिवासी सीटों पर ज्यादा भरोसा था वहां उसे झटका लगा है. इन 47 आदिवासी सीटों में बीजेपी केवल 24 सीटें जीतने में कामयाब रही. वहीं कांग्रेस की सीटें इस बार घटी है. कांग्रेस 22 आदिवासी सीटें ही जीत पाई. इस तरह से पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस को 9 सीटों का नुकसान हुआ. 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने जहां 15 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी, इस बार 9 सीट ज्यादा आईं. आदिवासी आरक्षित सीटों में एक सीट पर रतलाम जिले में सैलाना सीट पर भारत आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली है.

बीजेपी ने झोंकी थी पूरी ताकत : आदिवासी वोट बैंक साधने के लिए बीजेपी हो या कांग्रेस. दोनों दलों ने पूरी ताकत लगाई. खासकर बीजेपी ने इस बार कुछ ज्यादा ताकत लगाई. आदिवासियों को साधने सतना में कोल समाज का महाकुम्भ आयोजित किया गया. जिसमें खुद अमित शाह भी शामिल हुए. महाकुम्भ से कोल समाज को साधने की कोशिश की गई. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव से पहले शहडोल जिले के पकरिया गांव में पहुंचे थे, जहां उन्होंने आदिवासी समाज के लोगों के साथ खाना खाया था. अलग-अलग वर्ग के लोगों के साथ आम के बगीचे में परिचर्चा की थी.

बीजेपी की कसक बाकी है : मध्य प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए बीजेपी कांग्रेस दोनों प्रयास करती रहती हैं. आदिवासी वोट बैंक को कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक माना जाता है. बीजेपी इसे अपने पाले में लाने के लिए काफी प्रयास भी करती रही है. लेकिन जिस तरह से कांग्रेस ने यहां बीजेपी की इस आंधी में भी 22 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की है, उससे तो यही लगता है कि अभी भी आदिवासियों का एक बड़ा तबका कांग्रेस के साथ है, जो बीजेपी के मन में एक कसक छोड़ जाती है. इतनी मेहनत और रणनीति के बाद भी बीजेपी के लिए चिंतन का विषय भी है.

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बीजेपी के बड़े आदिवासी नेता की हार : भारतीय जनता पार्टी ने आदिवासी सीटों को साधने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इस बार आदिवासी सीट पर अपने केंद्रीय मंत्री और सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते को भी विधानसभा के चुनाव पर उतार दिया था. कुलस्ते को आदिवासी बहुल इलाका मंडला जिले के निवास सीट से टिकट भी दिया, लेकिन कुलस्ते चुनाव हार गए. आखिर मध्य प्रदेश में आदिवासियों को साधने की इतनी कोशिश सभी पार्टियों क्यों करती हैं और भारतीय जनता पार्टी इतनी बड़ी रणनीति क्यों बनाती है. क्योंकि आदिवासी सीटें सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाती हैं.

शहडोल। मध्यप्रदेश में बीजेपी को जिन 47 आदिवासी सीटों पर ज्यादा भरोसा था वहां उसे झटका लगा है. इन 47 आदिवासी सीटों में बीजेपी केवल 24 सीटें जीतने में कामयाब रही. वहीं कांग्रेस की सीटें इस बार घटी है. कांग्रेस 22 आदिवासी सीटें ही जीत पाई. इस तरह से पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस को 9 सीटों का नुकसान हुआ. 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने जहां 15 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी, इस बार 9 सीट ज्यादा आईं. आदिवासी आरक्षित सीटों में एक सीट पर रतलाम जिले में सैलाना सीट पर भारत आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली है.

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बीजेपी की कसक बाकी है : मध्य प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए बीजेपी कांग्रेस दोनों प्रयास करती रहती हैं. आदिवासी वोट बैंक को कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक माना जाता है. बीजेपी इसे अपने पाले में लाने के लिए काफी प्रयास भी करती रही है. लेकिन जिस तरह से कांग्रेस ने यहां बीजेपी की इस आंधी में भी 22 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की है, उससे तो यही लगता है कि अभी भी आदिवासियों का एक बड़ा तबका कांग्रेस के साथ है, जो बीजेपी के मन में एक कसक छोड़ जाती है. इतनी मेहनत और रणनीति के बाद भी बीजेपी के लिए चिंतन का विषय भी है.

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