शहडोल। आदिवासी बाहुल्य शहडोल जिला कृषि-ग्रामीण प्रधान जिला है, यहां पर धान की सबसे अधिक खेती होती है, ऐसे में काले धान (Shahdol Black Paddy Crop) की खेती यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है क्योंकि यह धान सेहत के लिए पोषणयुक्त तो है ही, साथ ही इसकी कीमत भी बाजार में दूसरे धान से कई गुना (farmers profit will increased by black paddy crop) अधिक है और पैदावार भी अच्छी होती है. शहडोल में लगभग एक लाख 10 हजार हेक्टेयर रकबे में धान की फसल लगाई जाती है, अगर यहां के किसान काले धान की खेती करते हैं तो उनकी आमदनी बढ़ सकती है, खरीफ के मौजूदा सीजन में कृषि विज्ञान केंद्र ने कई किसानों से काले धान की खेती का ट्रायल करवाया है, फसल तैयार होने के बाद किसानों ने अच्छा फीडबैक दिया है.
अब बदलेगी किस्मत! छींद का झाड़ू करेगा कमाल, आदिवासी होंगे मालामाल
कमाल का होता है काला धान
जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर पठरा गांव निवासी निरंजना सिंह महिला किसान हैं, जिसने महज आधा किलो काले धान के बीज से खेती की थी, मौजूदा साल उस आधे किलो बीज से करीब 50 किलो काले धान का उत्पादन हुआ है, निरंजना सिंह बताती हैं कि इस बीज से उन्होंने अगले साल के लिए भी बीज तैयार कर लिया है, साथ ही कुछ चावल भी मिल जाएगा, जो उनके खाने के काम आ जाएगा, वह बताती हैं कि जैसे आम धान की खेती करते आए हैं, ठीक उसी तरह इसकी भी खेती करनी होती है, कोई ज्यादा बदलाव नहीं है और अच्छा उत्पादन भी हो रहा है. अगर बड़े पैमाने पर काले धान की खेती की जाए तो यह किसानों के लिए फायदेमंद हो सकता है. उन्हें बताया गया है कि काले धान के सेवन से सेहत भी दुरुस्त रहता है, ऐसे में इसकी खेती किसानों की किस्मत बदल सकती है.
कुपोषण मिटाएगा मणिपुर का चकाव!
कृषि वैज्ञानिक डॉ. मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि खेती-किसानी में पोषण संबंधी फसलों को लेकर जागरूकता आई है, पोषण के लिहाज से काले धान को यहां इंट्रोड्यूज करने का काम (Black Paddy Crop best for shahdol farmers) किया गया है, मुख्य रूप से काले धान की जो ये वैरायटी है, वो हिली रीजन में होती है, इसे मणिपुर का चकाव कहते हैं, इसका जो चावल होता है वह भी काला होता है, ये जो धान की वैरायटी प्रोड्यूस की गई है, पोषण की दृष्टि से की गई है, अधिक पौष्टिक जो किस्में होती हैं, उसमें काला धान भी है. शहडोल की मुख्य फसल धान ही है, जोकि करीब एक लाख दस हजार हेक्टेयर में लगाई जाती है, शुरुआती दौर में कुपोषण वाले क्षेत्रों के छोटे किसानों को काले धान की खेती के लिए प्रोत्साहित किया गया है, ताकि कुपोषण को दूर किया जा सके, किसानों का फीडबैक यहां के लिए काफी सूट करता है.
जानिए सेहत के लिए क्यों है खास ?
खाद्य वैज्ञानिक अल्पना शर्मा बताती हैं कि काले धान का बेसिक नाम चकाव है, यह मणिपुर की ट्रेडिशनल वैरायटी है, जोकि दिखने में पूरी तरह से काला है, जब इसे पकाते हैं तो पर्पल रंग में बदल जाता है. पोषण विशेषज्ञ के तौर पर सभी जानते हैं कि किसी भी चीज में अगर नेचुरल कलर है तो वो एंथ्रोसायनिन रिच है, काला धान भी एंटीऑक्सीडेंट और एंथ्रोसायनिन रिच है, इसको सरल भाषा में समझें तो अगर कोई चीज एंथ्रोसायनिन रिच है तो उसको खाने से कोलेस्ट्रॉल लेवल नहीं बढ़ेगा, हृदय संबंधी बीमारियों की संभावना बिल्कुल कम रहेगी, जबकि एंटीऑक्सीडेंट कई तरह की इम्युनिटी प्रदान करता है, जोकि शरीर को कई तरह के रोगों से बचाएगा. काला धान सारे गुणों से परिपूर्ण है.
काला धान मिटाएगा कुपोषण का कलंक!
काले रंग के इस गुणकारी चावल को पकाने में अन्य चावल की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा समय लगता है, उसके लिए ये भी हो सकता है कि पहले चावल भिगोकर पानी में रख दें, फिर उसे पकाएं, कुकिंग टाइम थोड़ा कम हो जाएगा, पकने के बाद इसका थोड़ा सा टेस्ट नटी टाइप में होता है तो ये दलिया और खीर के लिए हाईली रिकमेंडेड है, शहडोल में कुपोषण बड़ी विकट समस्या है और चावल यहां का दैनिक और मुख्य आहार है, चावल के बिना यहां पूरा भोजन कंप्लीट नहीं होता है, ऐसे में काले रंग का ये चावल किसानों की किस्मत बदलने के साथ-साथ कुपोषण का कलंक (Malnutrition will be prevented by black paddy crop)भी मिटा सकता है.
200 रुपये किलो तक बिकता है काला धान
काले रंग के इस धान की खेती किसानों के सेहत को तो दुरुस्त रखेगी, साथ ही उन्हें आर्थिक तौर पर भी मजबूत कर सकती है, एक्सपर्ट्स की मानें तो काले रंग के इस धान की कीमत बाजार में करीब 150 से 200 रुपए प्रति किलो तक है, कहीं-कहीं तो इससे ज्यादा दाम में भी यह धान बिक रहा है, ऐसे में अगर बड़े लेवल पर इस धान की खेती की जाती है तो किसान मालामाल हो सकता है, साथ ही इसके सेवन से सेहत तो उसका हमेशा दुरुस्त रहेगा ही और कई बीमारियों से भी वो दूर रहेगा.