शहडोल। शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां आपको कुदरत के अनेक उपहार नजर आएंगे. जिले में महुआ के पेड़ की भी काफी बहुलता है. आप जहां भी जाएंगे वहीं महुआ के पेड़ पा जाएंगे. महुआ के फूल यहां के लोगों के लिए बहुमूल्य होते हैं. इसे संभालकर रखने के लिए लोग दिन-रात पेड़ की रखवाली करते हैं. फूल के सीजन से समय आदिवासी समुदाय के लोग पेड़ के पास ही देखे जा सकते हैं. फूल के सीजन को यहां के आदिवासी बड़ी ही उत्सुकता और एक त्यौहार की तरह लेते हैं और जमकर महुआ बटोरने का काम करते हैं.
महुआ आया, बहार लाया: महुआ का पेड़ शहडोल के ग्रामीणों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. जिले में इन दिनों प्रचंड गर्मी पड़ रही है सुबह के 8-9 बजे के बाद बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, उसके बाद भी चिलचिलाती धूप में आदिवासी समाज के लोग कड़ी मेहनत करके महुआ के फूल को सहेजने का काम करते है. ग्रामीणों का कहना है कि मौजूदा साल महुआ की फसल अच्छी है. हालांकि कभी-कभी बदली भी देखने को मिलती है. अगर ज्यादा बादल और पानी आ गया तो महुआ चला जाएगा. आदिवासी लोग मौजूदा साल महुआ की फसल को लेकर काफी खुश हैं, क्योंकि कोरोना काल की मुश्किल घड़ी के बाद इस साल उन लोगों में उत्साह है.
संकट की घड़ी का साथी है महुआ: ग्रामीणों का कहना है कि महुआ मुश्किल घड़ी का साथी है, यह एक ऐसा पेड़ है जो हर तरह से उपयोगी है. इसके फूल से उनका खर्च चल जाता है. गर्मी के सीजन के बाद बरसात आती है और खेती शुरू हो जाती है. ऐसे में महुआ के फूल को इकट्ठा करके अपनी खेती की तैयारी के लिए पूंजी भी आदिवासी समाज के लोग जोड़ लेते हैं. गर्मी के सीजन में आदिवासी समाज में शादियां भी ज्यादा होती हैं, मांगलिक कार्य के वक्त भी उनके लिए महुआ के फूल बहुत काम आते हैं. एक बुजुर्ग का कहना है कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में महुआ के सीजन में फूलों को सहेजा है. क्योंकि यह उनके लिए किसी पूंजी से कम नहीं होता. महुआ अच्छे दामों में बिकता भी है.
जबलपुर में उगाया जा रहा लखटकिया 'मियाजाकी आम', कीमत जानकर उड़ जाएंगे होश
बिना लागत, बंपर कमाई: ग्रामीण का कहना है कि महुआ एक ऐसा पेड़ है जो एक बार अगर तैयार हो जाए तो बंपर कमाई का साधन बन जाता है. हालांकि इसे तैयार करने में कई साल लग जाते हैं. महुआ के पत्तों से और इसके छाल और फूल से कई आयुर्वेदिक दवाइयां बनती हैं. पत्तों से दोना पत्तल बनाया जाता है जो शादी ब्याह में काम आता है. इसके अलावा इसके फल (जिसे लोकल भाषा में डोरी कहा जाता है) से तेल निकाला जाता है, वह भी काफी काम का होता है. महुआ के फूल और फल की इतनी ज्यादा डिमांड है कि यह काफी महंगा बिकता है. इसमें ना कोई कीटनाशक डालना पड़ती है ना कोई खाद. एक बार पेड़ तैयार हो जाये तो सालों तक बंपर कमाई करके देता है.
महिलाओं का एकाधिकार: महुआ को लेकर आदिवासी समाज और ग्रामीणों में पुराने समय से यह परंपरा चली आ रही है कि पुरुष फूल की रखवाली करते हैं. जबकि इसे सहेजना, सुखाना, सुरक्षित करना और बेचने पर मिले पैसे को भी ज्यादातर महिलाएं ही रखती हैं. एक तरह से कहा जाए तो महुआ की फसल पर पूरी तरह से महिलाओं का एकाधिकार होता है और इस पैसे को वे अपनी मुश्किल घड़ी में खर्च करती हैं. देखा जाए तो आदिवासी बहुल जिले के ग्रामीण अंचलों में यह महुआ का पेड़ महिला सशक्तिकरण का भी काम कर रहा है. इसके अलावा महुआ के फूल से आदिवासी समाज के लोग तरह-तरह के लजीज व्यंजन भी तैयार करते हैं. इसे अलग-अलग तरह से खाया भी जाता है.
(Mahua tree in shahdol) (Mahua flowers valuable for tribals)