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लॉकडाउन ने थामे आटो और रिक्शों के पहिए, लोगों को मंजिल तक पहुंचाने वालों का खुद नहीं रहा ठिकाना - शहडोल

लॉकडाउन के चलते ऑटो और रिक्शा चालकों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है.

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लॉककडाउ से ऑटोचालकों के लिए बढ़ी परेशानी
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Published : Apr 7, 2020, 7:10 PM IST

शहडोल। देश इन दिनों कोरोना वायरस से जंग लड़ रहा है और इसके लिए देश में 21 दिन का लॉकडाउन किया गया है. लोगों को बिना वजह अपने घरों से निकलना मना है, ऐसे में जो ऑटो-रिक्शा चलाकर परिवार का गुजारा करता थे, आज वो अपने घर में बैठे हैं और एक-एक पैसे के लिए मोहताज हैं. कमाई का एक ही साधन था, जो अब बंद हो चुका है.

लॉककडाउ से ऑटो चालकों के लिए बढ़ी परेशानी

लॉकडाउन इन पर कहर बनकर टूटा है. आलम ये है कि इन्हें दो वक्त की रोटी मिलना भी दूभर हो गया है. संकट की इस घड़ी में इन्हें एक और चिंता खाए जा रही कि जैसे-तैसे अगर पेट की आग शांत कर लेंगे लेकिन धंधा चौपट हो जाने पर वाहन की किश्त कैसे भरेंगे.

ऑटो चलाने वाले साजन बैगा, रामप्रसाद चर्मकार कहते हैं क्या करें बड़ी मुश्किल है. जो कमाते थे, उससे घर का गुजारा होता था. जो बचत होती उससे ऑटो की किस्त भरते थे. लेकिन अब परिवार चलाने में परेशानी हो रही है. इनका कहना है कि लॉकडाउन भी जरूरी है, लेकिन इससे परेशानी भी बहुत है अब हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा है.

कैसे हो दो वक्त की रोटी का इंतजाम ?

जिला मुख्यालय में साइकल रिक्शा का चलन भी एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए बहुत है. गांव से हर दिन लोग जाते हैं और पूरे दिन शहर में रिक्शा चलाते हैं. दिनभर में 100 से 150 रुपये कमाकर लौटते थे. जो पैसा लाते थे, उससे नमक-तेल राशन लेते. लेकिन अब वो भी मुश्किल हो गया है. प्रभु बैगा और राजेंद्र बैगा बताते हैं कि वो कई साल से रिक्शा चलाकर गुजारा कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन और इस कोरोना वायरस ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

lockdown livelihood crisis in front of auto operators in shahdol
रिक्शा भी बंद, कैसे होगा गुजारा ?

कब वापस पटरी पर लौटेगी जिंदगी ?
जिस तरह से देश में कोरोना वायरस लगातार अपने पैर पसारता जा रहा है. उसे देखते हुए ये लोग भी अब चिंतित हैं कि लॉकडाउन को लेकर सरकार आगे क्या फैसला करती है. ऐसे में अगर छूट मिल भी जाती है तो क्या कोरोना वायरस के डर से उनके ऑटो और रिक्शा में बैठने वाले लोग मिलेंगे. अब बस एक ही आस है जल्द ये संकट खत्म हो जाए और फिर से जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ जाए.

शहडोल। देश इन दिनों कोरोना वायरस से जंग लड़ रहा है और इसके लिए देश में 21 दिन का लॉकडाउन किया गया है. लोगों को बिना वजह अपने घरों से निकलना मना है, ऐसे में जो ऑटो-रिक्शा चलाकर परिवार का गुजारा करता थे, आज वो अपने घर में बैठे हैं और एक-एक पैसे के लिए मोहताज हैं. कमाई का एक ही साधन था, जो अब बंद हो चुका है.

लॉककडाउ से ऑटो चालकों के लिए बढ़ी परेशानी

लॉकडाउन इन पर कहर बनकर टूटा है. आलम ये है कि इन्हें दो वक्त की रोटी मिलना भी दूभर हो गया है. संकट की इस घड़ी में इन्हें एक और चिंता खाए जा रही कि जैसे-तैसे अगर पेट की आग शांत कर लेंगे लेकिन धंधा चौपट हो जाने पर वाहन की किश्त कैसे भरेंगे.

ऑटो चलाने वाले साजन बैगा, रामप्रसाद चर्मकार कहते हैं क्या करें बड़ी मुश्किल है. जो कमाते थे, उससे घर का गुजारा होता था. जो बचत होती उससे ऑटो की किस्त भरते थे. लेकिन अब परिवार चलाने में परेशानी हो रही है. इनका कहना है कि लॉकडाउन भी जरूरी है, लेकिन इससे परेशानी भी बहुत है अब हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा है.

कैसे हो दो वक्त की रोटी का इंतजाम ?

जिला मुख्यालय में साइकल रिक्शा का चलन भी एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए बहुत है. गांव से हर दिन लोग जाते हैं और पूरे दिन शहर में रिक्शा चलाते हैं. दिनभर में 100 से 150 रुपये कमाकर लौटते थे. जो पैसा लाते थे, उससे नमक-तेल राशन लेते. लेकिन अब वो भी मुश्किल हो गया है. प्रभु बैगा और राजेंद्र बैगा बताते हैं कि वो कई साल से रिक्शा चलाकर गुजारा कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन और इस कोरोना वायरस ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

lockdown livelihood crisis in front of auto operators in shahdol
रिक्शा भी बंद, कैसे होगा गुजारा ?

कब वापस पटरी पर लौटेगी जिंदगी ?
जिस तरह से देश में कोरोना वायरस लगातार अपने पैर पसारता जा रहा है. उसे देखते हुए ये लोग भी अब चिंतित हैं कि लॉकडाउन को लेकर सरकार आगे क्या फैसला करती है. ऐसे में अगर छूट मिल भी जाती है तो क्या कोरोना वायरस के डर से उनके ऑटो और रिक्शा में बैठने वाले लोग मिलेंगे. अब बस एक ही आस है जल्द ये संकट खत्म हो जाए और फिर से जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ जाए.

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