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शहडोल: मशरुम की खेती का बढ़ा रुझान, मालामाल हो रहे किसान

शहडोल में मशरुम की खेती करने का रुझान बढ़ने लगा है. किसान आधुनिक खेती को अपनाते हुए मशरुम की खेती कर रहे है. और मालामाल हो रहे है. खाद्य वैज्ञानिक भी इसकी खेती को फायदे की खेती बता रहे है. अपने पौष्टिक तत्वों के साथ-साथ मशरुम लोगों की कमाई का भी अच्छा सोर्स बन रहा है.

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मशरुम की खेती का बढ़ा रुझान
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Published : Apr 17, 2021, 10:58 PM IST

Updated : Apr 18, 2021, 5:44 PM IST

शहडोल। खेती किसानी में समय के साथ काफी बदलाव देखने को मिल रहे है. किसान पारंपरिक खेती से इतर आधुनिक खेती की ओर बढ़ने लगे है. जिससे वे अच्छा मुनाफा भी कमा रहे है. वहीं खेती में युवा किसान नए नए प्रयोग कर रहे हैं. शहडोल जिले में इन दिनों युवाओं के बीच में मशरूम की खेती का अच्छा खासा प्रचलन है और काफी उत्साह के साथ मशरूम की खेती कुछ युवा किसान यहां कर रहे हैं. मशरुम की डिमांड बढ़ने से इसकी खेती किसानों को नया बाजार दे रही है. और मालामाल भी कर रही है.

मशरुम की खेती का बढ़ा रुझान
  • मशरूम की खेती में युवा किसानों का रुझान

पिछले कुछ समय से शहडोल जिले में कई युवा किसान मशरूम की खेती काफी उत्साह के साथ कर रहे हैं और इससे अच्छा पैसा भी कमा रहे हैं. जिसे लेकर वह काफी खुश भी हैं और उन्हें देखकर कई युवा किसान मशरूम की खेती से जुड़ रहे हैं. जिला मुख्यालय से लगभग 25 से 30 किलोमीटर दूर भमरहा गांव के रहने वाले युवा किसान लालबाबू सिंह सेंगर अभी हाल ही में जनवरी महीने से मशरूम की खेती फिर से शुरू की है और अपने खेत में ही मशरूम का एक सेट तैयार किया है. जिसमें करीब 1040 बैग लगा कर रखे हैं. जिसमें वो मशरूम का उत्पादन करते हैं और उसे खुद बाजार में ले जाकर बेचते हैं. मशरूम की खेती को लेकर लालबाबू सिंह सेंगर बताते हैं कि वह खुद का कुछ काम करना चाह रहे थे और इसीलिए खेती में भाग्य आजमाया, शुरुआत में साल 2002 में पहली बार उन्होंने मशरूम की खेती करने का प्रयास किया था लेकिन उस समय उनको मशरूम का इतना ज्यादा मार्केट नहीं मिला था जिसके चलते उन्होंने मशरूम की खेती बंद कर दी थी और फिर नई तकनीक से बागवानी सब्जी की खेती में अपना भाग्य आजमाया, लेकिन उन्हें जितनी मेहनत पड़ रही थी और लागत लग रही थी उतना मुनाफा नहीं मिल रहा था इसलिए वो सब्जियों की खेती से ज्यादा खुश नहीं थे.

लालबाबू सिंह सेंगर बताते हैं कि पिछले कुछ समय से उन्होंने देखा कि उनके गांव में ही एक युवा किसान मशरूम की खेती कर रहा है और इन दिनों मशरूम की काफी डिमांड है लोगों के बीच में, जिसे देखकर उन्होंने एक बार फिर से अपना भाग्य आजमाया और मशरूम की खेती जनवरी महीने से ही फिर से शुरू कर दी, और इस बार मशरूम की खेती करके वो काफी खुश हैं लाल बाबू सिंह सेंगर कहते हैं कि अब तो लोगों के बीच में अच्छी खासी डिमांड है बाजार जाते ही उनका पूरा मशरूम बिक जाता है. उनके ग्राहक फिक्स हो चुके हैं और वह तो उनका इंतजार करते रहते हैं लालबाबू सिंह सेंगर कहते हैं कि वह भी कोशिश करते हैं कि ग्राहकों को असंतुष्ट ना होने दें और उनकी डिमांड को पूरी करते हैं यहां तक कि उनके मशरूम सेड को देखने के लिए भी जगह जगह से लोग पहुंचते हैं.

  • फेसम हो गया 'भमरहा मशरूम फार्मिंग'

लालबाबू सिंह सेंगर कहते हैं कि महज दो-तीन महीने में ही वो पूरे शहडोल जिले में भमरहा मशरूम फार्मिंग वाले के नाम से पहचाने जाने लगे हैं. वे जहां जाते हैं लोग उन्हें भमरहा मशरूम के नाम से आवाज देने लगते हैं उनका डब्बा ही उनकी एक पहचान हो गई है. लालबाबू सिंह बाताते है कि हर दिन वह अपने मशरूम सेड से करीब 70 से 80 किलो तक मशरूम का उत्पादन करते हैं और बाजार में ले जाकर के शहडोल जिला मुख्यालय पर महज 3 घंटे शाम 5 बजे से 8 बजे तक ही अपनी दुकान लगाते हैं जितना बिक गया बिक गया नहीं बिका तो कोई दिक्कत नहीं मशरूम को लाकर सुखा देते हैं और सूखा मशरूम भी करीब 700 रुपए प्रति किलो बिकता है. उनका मानना है कि मशरूम की खेती में तो फायदा ही फायदा है क्योंकि उनका सामान भी बर्बाद नहीं होता है फसल का जितना उत्पादन होता है सब कुछ इस्तेमाल हो जाता है और अब तो लोगों के बीच में अच्छी डिमांड भी बढ़ गई है.

  • कोरोनाकाल के बाद से और बढ़ी डिमांड

लालबाबू सिंह सेंगर कहते हैं कि कोरोना काल से इसकी और ज्यादा डिमांड लोगों के बीच बढ़ गई है, उसके बाद से मशरूम खरीदने वालों की संख्या लगातार बढ़ी है । कुल मिलाकर लाल बाबू सिंह सेंगर मशरूम की खेती करके काफी खुश हैं वह कहते हैं कि जितना फायदा उन्हें बागवानी की खेती से नहीं मिलता था महज थोड़ी सी जमीन पर थोड़ी सी मेहनत करके अलग तरह की खेती करके वह अच्छा खासा कमा ले रहे हैं.

अच्छी खबर: लॉकडाउन में गई गार्ड की नौकरी, तो घर की छत पर ही उगा दी मशरूम

  • ये दंपत्ति 3 साल से कर रहे मशरुम की खेती

भमरहा गांव के ही भगतराम कोल और उनकी पत्नी संजू कोल दोनों ही मशरूम की खेती करने में व्यस्त हैं भगतराम कोल बाजार में लेकर मशरूम बेचते हैं और उनकी पत्नी संजू कोल मशरूम की खेती में घर में ही व्यस्त रहती है भगतराम कोल कहते हैं कि वह लगभग 3 साल से लगातार मशरूम की खेती कर रहे हैं और उन्हें अच्छा फायदा भी हो रहा है वह कहते हैं कि वह एक गरीब घर से हैं जमीन भी उनके पास बहुत कम है इसकी खेती करने के लिए ज्यादा जमीन की भी जरूरत नहीं होती इस काम के लिए उनकी पत्नी हाथ बटाती हैं और दोनों मिलकर थोड़ी सी जमीन पर मशरूम की खेती करते हैं और उसी से अपना घर चलाते हैं। मशरूम की खेती करके दोनों खुश हैं। भगत राम कोल बताते हैं कि 30 से 32 दिन में पहली हार्वेस्टिंग इसकी हो जाती है और एक बैग से तीन बार हार्वेस्टिंग कर सकते हैं मशरूम लगाने तक के लिए एक बैग पूरा जो तैयार करते हैं उसकी लागत लगभग 30 रुपये पड़ती है.

  • मशरुम की खेती में महिला-पुरुष की बराबर भागीदारी

खाद्य वैज्ञानिक कल्पना शर्मा बताती हैं कि हमारे शहडोल जिले में जितना पुरुष वर्ग मशरूम की खेती के लिए आगे आ रहा है उतनी महिलाएं भी आगे आ रही है मशरूम की खेती करने के लिए अपने घर का काम करने के बाद महिलाएं मशरूम की खेती घर पर ही कुछ बैग लगा कर कर लेती हैं और उससे कुछ पैसे भी कमा ले रही हैं. इसलिए उन्हें यह फायदे का सौदा लग रहा है और अपने जिले का क्लाइमेट भी मशरूम की खेती के लिए बेहतर है.

  • मशरूम की खेती बना सकती है मालामाल

खाद्य वैज्ञानिक कल्पना शर्मा कहती हैं कि मशरूम की कीमत भी किसानों को अच्छी मिलती है फ्रेश मशरूम करीब 200-250 रुपये प्रति किलो के लगभग मार्केट में बिकता है और अगर आपका मशरूम बच जाता है तो सुखा लें और सुखाकर मशरूम बेचते हैं तो 400-600 रुपए प्रति किलो तक बिकता है. इसलिए इसमें युवाओं को फायदा हो रहा है जिससे युवाओं का इसमें अच्छा खासा रुझान भी है क्योंकि मशरूम की खेती कम लागत कम जगह और बेहतर कमाई का माध्यम बन रही है. इसीलिए कहा जा सकता है कि मशरूम की खेती किसानों को मालामाल बना सकती है.

  • सेहत के लिए फायदेमंद

खाद्य वैज्ञानिक कल्पना शर्मा का मानना है कि आज के समय में देखा जाए तो लोग हेल्थ को लेकर काफी सजग रहते हैं कई लोग शुगर की बीमारी से भी पीड़ित रहते हैं उनके लिए बेहतर पोषक तत्व मशरूम में मिलता है. हार्ट वाले पेशेंट के लिए ये काफी उपयोगी है, यह बहुत ज्यादा फाइबर रिच है तो अगर किसी को पेट की समस्या है तो जैसे पाचन क्रिया में कोई समस्या है तो ऐसे रोगियों के लिए भी यह फायदेमंद रहता है इसमें जो है प्रचुर मात्रा में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स भी पाए जाते हैं. मशरूम के सेवन से आपको माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी नहीं होती है और इंसान के शरीर का पूरा सिस्टम अच्छे से कार्य कर सकता है और महिलाओं के लिए खासकर कैल्शियम विटामिन डी आदि है तो महिलाओं के लिए ये बहुत फायदेमंद है, 40 के उम्र की ऊपर वाली जो महिला है जिस उम्र में महिलाएं हड्डियों के रोग से पीड़ित रहती है उनके लिए भी बहुत फायदेमंद है इसके अलावा महिलाओं में जो एक उम्र के बाद जो हार्मोनल चेंज होते हैं उनके लिए भी बहुत फायदेमंद रहता है एक तरह से हर उम्र वर्ग के लिए मशरूम बहुत ज्यादा फायदेमंद है.

मशरूम की खेती कम लागत, कम जगह और बहुत कम समय में उत्पादन शुरू हो जाता है साथ ही बदलते वक्त के साथ अब बाजार में इसकी डिमांड भी बढ़ गई है. लिहाजा बाजार में भी अच्छा दाम भी मिल जाता हैं. वहीं जिस तरह युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है ऐसे में आत्मनिर्भर बनने के लिए युवाओं के लिए मशरूम की खेती एक बड़ा माध्यम बन सकती है.

शहडोल। खेती किसानी में समय के साथ काफी बदलाव देखने को मिल रहे है. किसान पारंपरिक खेती से इतर आधुनिक खेती की ओर बढ़ने लगे है. जिससे वे अच्छा मुनाफा भी कमा रहे है. वहीं खेती में युवा किसान नए नए प्रयोग कर रहे हैं. शहडोल जिले में इन दिनों युवाओं के बीच में मशरूम की खेती का अच्छा खासा प्रचलन है और काफी उत्साह के साथ मशरूम की खेती कुछ युवा किसान यहां कर रहे हैं. मशरुम की डिमांड बढ़ने से इसकी खेती किसानों को नया बाजार दे रही है. और मालामाल भी कर रही है.

मशरुम की खेती का बढ़ा रुझान
  • मशरूम की खेती में युवा किसानों का रुझान

पिछले कुछ समय से शहडोल जिले में कई युवा किसान मशरूम की खेती काफी उत्साह के साथ कर रहे हैं और इससे अच्छा पैसा भी कमा रहे हैं. जिसे लेकर वह काफी खुश भी हैं और उन्हें देखकर कई युवा किसान मशरूम की खेती से जुड़ रहे हैं. जिला मुख्यालय से लगभग 25 से 30 किलोमीटर दूर भमरहा गांव के रहने वाले युवा किसान लालबाबू सिंह सेंगर अभी हाल ही में जनवरी महीने से मशरूम की खेती फिर से शुरू की है और अपने खेत में ही मशरूम का एक सेट तैयार किया है. जिसमें करीब 1040 बैग लगा कर रखे हैं. जिसमें वो मशरूम का उत्पादन करते हैं और उसे खुद बाजार में ले जाकर बेचते हैं. मशरूम की खेती को लेकर लालबाबू सिंह सेंगर बताते हैं कि वह खुद का कुछ काम करना चाह रहे थे और इसीलिए खेती में भाग्य आजमाया, शुरुआत में साल 2002 में पहली बार उन्होंने मशरूम की खेती करने का प्रयास किया था लेकिन उस समय उनको मशरूम का इतना ज्यादा मार्केट नहीं मिला था जिसके चलते उन्होंने मशरूम की खेती बंद कर दी थी और फिर नई तकनीक से बागवानी सब्जी की खेती में अपना भाग्य आजमाया, लेकिन उन्हें जितनी मेहनत पड़ रही थी और लागत लग रही थी उतना मुनाफा नहीं मिल रहा था इसलिए वो सब्जियों की खेती से ज्यादा खुश नहीं थे.

लालबाबू सिंह सेंगर बताते हैं कि पिछले कुछ समय से उन्होंने देखा कि उनके गांव में ही एक युवा किसान मशरूम की खेती कर रहा है और इन दिनों मशरूम की काफी डिमांड है लोगों के बीच में, जिसे देखकर उन्होंने एक बार फिर से अपना भाग्य आजमाया और मशरूम की खेती जनवरी महीने से ही फिर से शुरू कर दी, और इस बार मशरूम की खेती करके वो काफी खुश हैं लाल बाबू सिंह सेंगर कहते हैं कि अब तो लोगों के बीच में अच्छी खासी डिमांड है बाजार जाते ही उनका पूरा मशरूम बिक जाता है. उनके ग्राहक फिक्स हो चुके हैं और वह तो उनका इंतजार करते रहते हैं लालबाबू सिंह सेंगर कहते हैं कि वह भी कोशिश करते हैं कि ग्राहकों को असंतुष्ट ना होने दें और उनकी डिमांड को पूरी करते हैं यहां तक कि उनके मशरूम सेड को देखने के लिए भी जगह जगह से लोग पहुंचते हैं.

  • फेसम हो गया 'भमरहा मशरूम फार्मिंग'

लालबाबू सिंह सेंगर कहते हैं कि महज दो-तीन महीने में ही वो पूरे शहडोल जिले में भमरहा मशरूम फार्मिंग वाले के नाम से पहचाने जाने लगे हैं. वे जहां जाते हैं लोग उन्हें भमरहा मशरूम के नाम से आवाज देने लगते हैं उनका डब्बा ही उनकी एक पहचान हो गई है. लालबाबू सिंह बाताते है कि हर दिन वह अपने मशरूम सेड से करीब 70 से 80 किलो तक मशरूम का उत्पादन करते हैं और बाजार में ले जाकर के शहडोल जिला मुख्यालय पर महज 3 घंटे शाम 5 बजे से 8 बजे तक ही अपनी दुकान लगाते हैं जितना बिक गया बिक गया नहीं बिका तो कोई दिक्कत नहीं मशरूम को लाकर सुखा देते हैं और सूखा मशरूम भी करीब 700 रुपए प्रति किलो बिकता है. उनका मानना है कि मशरूम की खेती में तो फायदा ही फायदा है क्योंकि उनका सामान भी बर्बाद नहीं होता है फसल का जितना उत्पादन होता है सब कुछ इस्तेमाल हो जाता है और अब तो लोगों के बीच में अच्छी डिमांड भी बढ़ गई है.

  • कोरोनाकाल के बाद से और बढ़ी डिमांड

लालबाबू सिंह सेंगर कहते हैं कि कोरोना काल से इसकी और ज्यादा डिमांड लोगों के बीच बढ़ गई है, उसके बाद से मशरूम खरीदने वालों की संख्या लगातार बढ़ी है । कुल मिलाकर लाल बाबू सिंह सेंगर मशरूम की खेती करके काफी खुश हैं वह कहते हैं कि जितना फायदा उन्हें बागवानी की खेती से नहीं मिलता था महज थोड़ी सी जमीन पर थोड़ी सी मेहनत करके अलग तरह की खेती करके वह अच्छा खासा कमा ले रहे हैं.

अच्छी खबर: लॉकडाउन में गई गार्ड की नौकरी, तो घर की छत पर ही उगा दी मशरूम

  • ये दंपत्ति 3 साल से कर रहे मशरुम की खेती

भमरहा गांव के ही भगतराम कोल और उनकी पत्नी संजू कोल दोनों ही मशरूम की खेती करने में व्यस्त हैं भगतराम कोल बाजार में लेकर मशरूम बेचते हैं और उनकी पत्नी संजू कोल मशरूम की खेती में घर में ही व्यस्त रहती है भगतराम कोल कहते हैं कि वह लगभग 3 साल से लगातार मशरूम की खेती कर रहे हैं और उन्हें अच्छा फायदा भी हो रहा है वह कहते हैं कि वह एक गरीब घर से हैं जमीन भी उनके पास बहुत कम है इसकी खेती करने के लिए ज्यादा जमीन की भी जरूरत नहीं होती इस काम के लिए उनकी पत्नी हाथ बटाती हैं और दोनों मिलकर थोड़ी सी जमीन पर मशरूम की खेती करते हैं और उसी से अपना घर चलाते हैं। मशरूम की खेती करके दोनों खुश हैं। भगत राम कोल बताते हैं कि 30 से 32 दिन में पहली हार्वेस्टिंग इसकी हो जाती है और एक बैग से तीन बार हार्वेस्टिंग कर सकते हैं मशरूम लगाने तक के लिए एक बैग पूरा जो तैयार करते हैं उसकी लागत लगभग 30 रुपये पड़ती है.

  • मशरुम की खेती में महिला-पुरुष की बराबर भागीदारी

खाद्य वैज्ञानिक कल्पना शर्मा बताती हैं कि हमारे शहडोल जिले में जितना पुरुष वर्ग मशरूम की खेती के लिए आगे आ रहा है उतनी महिलाएं भी आगे आ रही है मशरूम की खेती करने के लिए अपने घर का काम करने के बाद महिलाएं मशरूम की खेती घर पर ही कुछ बैग लगा कर कर लेती हैं और उससे कुछ पैसे भी कमा ले रही हैं. इसलिए उन्हें यह फायदे का सौदा लग रहा है और अपने जिले का क्लाइमेट भी मशरूम की खेती के लिए बेहतर है.

  • मशरूम की खेती बना सकती है मालामाल

खाद्य वैज्ञानिक कल्पना शर्मा कहती हैं कि मशरूम की कीमत भी किसानों को अच्छी मिलती है फ्रेश मशरूम करीब 200-250 रुपये प्रति किलो के लगभग मार्केट में बिकता है और अगर आपका मशरूम बच जाता है तो सुखा लें और सुखाकर मशरूम बेचते हैं तो 400-600 रुपए प्रति किलो तक बिकता है. इसलिए इसमें युवाओं को फायदा हो रहा है जिससे युवाओं का इसमें अच्छा खासा रुझान भी है क्योंकि मशरूम की खेती कम लागत कम जगह और बेहतर कमाई का माध्यम बन रही है. इसीलिए कहा जा सकता है कि मशरूम की खेती किसानों को मालामाल बना सकती है.

  • सेहत के लिए फायदेमंद

खाद्य वैज्ञानिक कल्पना शर्मा का मानना है कि आज के समय में देखा जाए तो लोग हेल्थ को लेकर काफी सजग रहते हैं कई लोग शुगर की बीमारी से भी पीड़ित रहते हैं उनके लिए बेहतर पोषक तत्व मशरूम में मिलता है. हार्ट वाले पेशेंट के लिए ये काफी उपयोगी है, यह बहुत ज्यादा फाइबर रिच है तो अगर किसी को पेट की समस्या है तो जैसे पाचन क्रिया में कोई समस्या है तो ऐसे रोगियों के लिए भी यह फायदेमंद रहता है इसमें जो है प्रचुर मात्रा में माइक्रो न्यूट्रिएंट्स भी पाए जाते हैं. मशरूम के सेवन से आपको माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी नहीं होती है और इंसान के शरीर का पूरा सिस्टम अच्छे से कार्य कर सकता है और महिलाओं के लिए खासकर कैल्शियम विटामिन डी आदि है तो महिलाओं के लिए ये बहुत फायदेमंद है, 40 के उम्र की ऊपर वाली जो महिला है जिस उम्र में महिलाएं हड्डियों के रोग से पीड़ित रहती है उनके लिए भी बहुत फायदेमंद है इसके अलावा महिलाओं में जो एक उम्र के बाद जो हार्मोनल चेंज होते हैं उनके लिए भी बहुत फायदेमंद रहता है एक तरह से हर उम्र वर्ग के लिए मशरूम बहुत ज्यादा फायदेमंद है.

मशरूम की खेती कम लागत, कम जगह और बहुत कम समय में उत्पादन शुरू हो जाता है साथ ही बदलते वक्त के साथ अब बाजार में इसकी डिमांड भी बढ़ गई है. लिहाजा बाजार में भी अच्छा दाम भी मिल जाता हैं. वहीं जिस तरह युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है ऐसे में आत्मनिर्भर बनने के लिए युवाओं के लिए मशरूम की खेती एक बड़ा माध्यम बन सकती है.

Last Updated : Apr 18, 2021, 5:44 PM IST
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