शहडोल। जिले में धान की खेती काफी ज्यादा रकबे में की जाती है, जो कि किसानों की आय का एक महत्वपूर्ण साधन है. वहीं इस बार अतिवृष्टि के चलते पहले से ही धान की फसल खराब होने के कारण अब उन पर कई तरह के रोग लग गए हैं. यहां तक कि किसानों में असमंजस की स्थिति है कि यह कौन सा रोग है. जिसके चलते किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं. कुछ किसान दवा विक्रेताओं से सलाह मशवरा कर दवाइयां डाल रहे हैं. हर कोई धान की फसल को बचाने की जुगत में लगा हुआ है.
धान की फसल से किसानों को काफी उम्मीदें हैं. जिले में बहुतायत में धान की खेती की जा रही है. बारिश भी सही समय में होने की वजह से धान की फसल भी अच्छी है, लेकिन इन दिनों किसानों की परेशानी का कारण धान की फसल में लगने वाले रोग है. नए-नए रोगों के लगने से किसान चिंतित है कि आखिर वह इनका इलाज कैसे करें. किसानों ने बताया कि इस बार धान की फसल में कई तरह के रोग लग रहे हैं. जिससे धान की फसल की पत्तियां अपने आप कट रही हैं. वहीं धान के पौधे पीले पड़ने लगे हैं. जिससे किसानों को काफी नुकसान की आशंका है.
किसानों को सता रही चिंता
किसान मुन्ना चौधरी बताते हैं कि इस बार धान की फसल में कई तरह के रोग देखने को मिल रहे हैं. फसल की पत्तियां कहीं सफेद तो कहीं पीली पड़ रही हैं. वहीं तने को कीड़ा काट रहा है. इसी को लेकर किसानों को चिंता सता रही है. उनका कहना है कि फसल में दवाई डालने के लिए आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. नए-नए रोग लग रहे हैं, जिससे हर एक के लिए दवाई डालना पड़ रहा है. इसके बाद भी फसल अच्छी होगी, इस पर भी शंका बनी रहती है.
वैज्ञानिकों ने दी ये सलाह
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि यह वक्त ऐसा होता है, जब तरह-तरह के रोग, कीट आदि लगते हैं. इसीलिए किसानों को फसलों की सतत निगरानी की सलाह दी जाती है. कृषि वैज्ञानिक डॉ मृगेंद्र सिंह ने बताया कि धान की फसल की अभी जो स्टेज है, वह गभोट में है. फसल इस स्टेज में जब रहती है, तो तरह-तरह के रोग और कीट व्याधि का प्रकोप होता है और इसीलिए इसमें सतत निगरानी की आवश्यकता होती है. किसानों को उसकी सलाह भी दी जाती है. फसल में इस समय 'सिल्वर सूट' या स्टेम बोरर निकलता है. जिसे क्षेत्रीय भाषा में 'बका' कहते हैं. जिससे कीड़ों की ज्यादा समस्या होती है.
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि धान की फसल में तना, छेदक पत्ती, लपेटक और सिल्वर सूट कीट का प्रकोप कहीं-कहीं देखने को मिल रहा है. नियंत्रण के लिए किसान कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 3G 8 किलो ग्राम प्रति एकड़, फिप्रोनिल 0.5G, कार्बोफुरोन 3G, 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
इसके अलावा धान की पत्तियों पर नाव आकार के भूरे लाल धब्बे दिखाई देने लगते हैं, जो झुलसा रोग के लक्षण हैं. इस रोग को समय पर नियंत्रित नहीं करने पर पूरी फसल नष्ट हो सकती है. रासायनिक फफूंदनाशी ट्राई साईक्लेजोल 100 ग्राम प्रति एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल ढाई सौ ग्राम की दर से छिड़काव करें. जिससे किसानों को फायदा हो सकता है.