शहडोल। बदलते वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है. इस दौर में देसी गाय से लोगों की बेरुखी देखने को मिल रही है. अब देसी गाय को अपने घरों में रखने में लोग परहेज कर रहे हैं. लोग अब ऐसे नस्ल की गाय पालना पसंद कर रहे हैं, जो ज्यादा से ज्यादा दूध दे. वहीं कुछ लोग अब गाय पालना ही पसंद नहीं कर रहे हैं. गौ सेवा संस्थान के सदस्यों का कहना है कि अब लोगों की देसी गाय के प्रति बेरुखी देखने को मिल रही है. वहीं गांवों में कई किसान ऐसे हैं जो कई दशकों से केवल गाय पालने का व्यवसाय करते हैं. उनके जीवनयापन का मुख्य साधन ही पशुपालन है. देसी गायों के दम पर ही ये किसान जैविक खेती भी शानदार तरीके से कर रहे हैं.
घर-परिवार का पालन पोषण गायें ही करती हैं
चरवाहा गणेश बैगा बताते हैं कि वह भी कई साल से गाय चराने का काम कर रहे हैं. उसी से उनका घर चल रहा है. लेकिन पिछले कुछ सालों से यह देखने को मिल रहा है कि लोग अब देसी गाय पालना कम पसंद कर रहे हैं. उनकी जगह पर अलग-अलग तरह की नस्ल की गाय ला रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि अब ऐसी गाय पाली जाती है, जो ज्यादा दूध दे. अगर दूध नहीं दे रही है तो लोग अब गाय पालना पसंद नहीं कर रहे हैं. आजकल देसी गाय पर तो लोगों की रुचि बिल्कुल भी नहीं है.
किसान राम सजीवन ने पाल रखी हैं 20 देसी गाय
करकटी के रहने वाले राम सजीवन कचेर कई एकड़ जमीन पर हर तरह की खेती करते हैं. धान भी लगाते हैं. गेहूं भी लगाते हैं. सब्जियां भी लगाते हैं. साथ ही देसी गायें भी पालते हैं. रामसजीवन कचेर के लिए देसी गाय वरदान साबित हो रही हैं. राम सजीवन बताते हैं कि उनके पास खेत और घर पर मिलाकर टोटल 20 देसी गाय हैं. इन देसी गाय के लिए उन्होंने इस तरह से सिस्टम बना रखा है कि गायों के लिए खेत से जो खरपतवार निकलता है उसी को खाने के लिए दे देते हैं. जो उनके लिए पर्याप्त होता है. इसके अलावा गौशाला में कुछ इस तरह से सिस्टम बना रखा है कि जो भी गौमूत्र होता है, वह पूरा इकट्ठा होता है कई गैलन गौमूत्र अपने घर पर रखे हुए हैं. इसके अलावा गोबर का खाद मिलता है.
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गौमूत्र वरदान है खेती के लिए, जैविक खेती भी करते हैं
रामसजीवन कचेर बताते हैं कि वह गौमूत्र इसलिए इकट्ठा करते हैं. वह अपनी खेती में इसका अच्छे से इस्तेमाल करते हैं. देसी गाय के गौमूत्र से वो फसल के लिए खाद और कीटनाशक और जीवामृत बनाते हैं. पूरी तरह से जैविक और प्राकृतिक खेती करने की कोशिश करते हैं. उन्होंने गोबर गैस लगा रखा है. गोबर गैस के बाद जो गोबर बचता है उसका बहुत अच्छा खाद बन जाता है. जिसे वह अपने खेत पर इस्तेमाल करते हैं. राम सजीवन कहते हैं कि उन्होंने अपने खेतों पर रासायनिक खाद इस्तेमाल नहीं किया है. किसान राम सजीवन का मानना है कि उनकी तरह कुछ और किसान भी हैं. जो अपने घरों में देसी गाय पाले हुए हैं. उनके लिए ये देसी गाय वरदान साबित हो रही हैं.
देसी गाय है बहुत फायदेमंद, ज्यादा देखरेख की जरूरत नहीं
गांवों में ऐसे कई ग्रामीण मिल जाएंगे जो आज भी देसी गाय रखे हुए हैं. उनके गोबर का इस्तेमाल खाद के रूप में खेतों में इस्तेमाल करते हैं. वह बताते हैं कि देसी गाय पालने का फायदा यह होता है कि उनके घर के इस्तेमाल के लिए दूध तो मिल ही जाता है, इसके अलावा इनकी देखरेख भी बहुत कम करनी पड़ती है. इन्हें अगर शाम को थोड़ा बहुत चारा दे दिया जाए और पूरे दिन के लिए जंगलों में चरने के लिए छोड़ दिया जाए तो भी ये अच्छा दूध देती है.
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जैविक और प्राकृतिक खेती के लिए वरदान देसी गाय
पूर्व कृषि विस्तार अधिकारी अखिलेश नामदेव बताते हैं कि वह गांव-गांव जाकर कृषि के लिए आदिवासी बहुल जिले के किसानों के साथ काम कर चुके हैं. देसी गाय किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. खासकर जैविक और प्राकृतिक खेती के लिए तो यह मवेशी बहुत ही उपयोगी है. इनके गौमूत्र और गोबर से मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ता है. अच्छी खाद तैयार होती है. उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है. इससे फसलों का उत्पादन अच्छा होता है.
प्राकृतिक खेती में देसी गाय का बड़ा रोल
कृषि जानकारों की मानें तो देसी गाय का प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में बहुत बड़ा रोल होता है क्योंकि प्राकृतिक खेती के लिए जो जीवामृत बीजा मृत बनते हैं, उसमें देसी गाय का गोबर गोमूत्र बहुत अहम रोल अदा करता है. मिट्टी के लिए देसी गाय का गोबर और गौमूत्र किसी अमृत से कम नहीं है. (Desi cows very useful for villagers)