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शहडोल: खतरे में इस बांध का अस्तित्व, नहर की स्थिति भी है जर्जर, प्रशासन नहीं ले रहा सुध

शहडोल जिला के सिंहपुर गांव की सीमा से लगे सरफ़ा नदी पर बना ऐतिहासिक बांध आज अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. इस बांध से एक करीब 15 किलोमीट लंबी नहर निकाली गई थी, जिससे कई किसानों को फायदा होता था. लेकिन अब देखरेख और संरक्षण के अभाव में किसान खेती के पानी के लिए भी तरस रहे हैं.

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा बांध
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Published : May 31, 2019, 9:20 AM IST

Updated : Jun 1, 2019, 10:30 AM IST

शहडोल। जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर सिंहपुर गांव की सीमा पर बना ऐतिहासिक बांध आज अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. ये बांध सिंहपुर गांव की सीमा से लगे सरफ़ा नदी पर बना है. इस बांध का निर्माण 1963 में किया गया था, और 1972 में इस बांध से एक करीब 15 किलोमीट लंबी नहर निकाली गई थी, जिससे कई किसानों को फायदा होता था. लेकिन अब देखरेख और संरक्षण के अभाव में पिछले 5- 7 साल से किसान खेती के पानी के लिए तरस रहे हैं.

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा बांध

इस बांध और इससे निकाले गए नहरों पर ध्यान नहीं दिया गया. आलम ये है कि नदी का पानी सूख रहा है. बांध मैदान की तरह नज़र आ रहा है. बांध मिट्टी के बहाव से पट चुका है. इस बांध में मिट्टी के बहाव से जो मैदान बन गया है वहां कुछ लोग फसल भी लगाने लगे हैं. वहीं बांध में पानी को रोकने के लिए जो दीवार बनाई गई है, वो भी जर्जर स्थिति में हैं. पिछले कई साल से इस नहर से भी पानी नहीं मिल पा रहा है. ये लम्बी नहर 5 गांवों से होते हुए नरगी, उधिया से होते हुए कंचनपुर गांव तक जाती है, लेकिन कुछ साल से इस गांव के लोग परेशान हैं.

उधिया गांव के निवासी हरिवंश शुक्ला बताते हैं कि नहर बहुत पुराना है काफी लंबी नहर भी है. जिस बांध से नहर निकाला गया है उसके पट जाने कारण अब नहर से पिछले 5-7 साल से बिल्कुल भी पानी नहीं आ रहा है. उनका कहना है कि पहले दोनों सीजन में पानी मिल जाता था, लेकिन अब पिछले करीब 5-7 साल से बिल्कुल भी पानी नहीं मिल रहा है. अधिकारियों को इस बात से अवगत भी कराया गया, लेकिन अधिकारी आते हैं और बजट नहीं होने की बात कह कर चले जाते हैं.

गौरतलब है कि इस बांध और नहर की समस्याओं को लेकर उधिया गांव के कुछ लोगों ने कुछ महीने पहले आपत्ति भी जाहिर की थी, जिसके बाद तत्कालीन कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव ने स्पॉट पर विजिट भी किया था. लेकिन स्थिति जस की तस ही है. आज भी ये बांध और नहर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और प्रशासन इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है.

शहडोल। जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर सिंहपुर गांव की सीमा पर बना ऐतिहासिक बांध आज अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. ये बांध सिंहपुर गांव की सीमा से लगे सरफ़ा नदी पर बना है. इस बांध का निर्माण 1963 में किया गया था, और 1972 में इस बांध से एक करीब 15 किलोमीट लंबी नहर निकाली गई थी, जिससे कई किसानों को फायदा होता था. लेकिन अब देखरेख और संरक्षण के अभाव में पिछले 5- 7 साल से किसान खेती के पानी के लिए तरस रहे हैं.

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा बांध

इस बांध और इससे निकाले गए नहरों पर ध्यान नहीं दिया गया. आलम ये है कि नदी का पानी सूख रहा है. बांध मैदान की तरह नज़र आ रहा है. बांध मिट्टी के बहाव से पट चुका है. इस बांध में मिट्टी के बहाव से जो मैदान बन गया है वहां कुछ लोग फसल भी लगाने लगे हैं. वहीं बांध में पानी को रोकने के लिए जो दीवार बनाई गई है, वो भी जर्जर स्थिति में हैं. पिछले कई साल से इस नहर से भी पानी नहीं मिल पा रहा है. ये लम्बी नहर 5 गांवों से होते हुए नरगी, उधिया से होते हुए कंचनपुर गांव तक जाती है, लेकिन कुछ साल से इस गांव के लोग परेशान हैं.

उधिया गांव के निवासी हरिवंश शुक्ला बताते हैं कि नहर बहुत पुराना है काफी लंबी नहर भी है. जिस बांध से नहर निकाला गया है उसके पट जाने कारण अब नहर से पिछले 5-7 साल से बिल्कुल भी पानी नहीं आ रहा है. उनका कहना है कि पहले दोनों सीजन में पानी मिल जाता था, लेकिन अब पिछले करीब 5-7 साल से बिल्कुल भी पानी नहीं मिल रहा है. अधिकारियों को इस बात से अवगत भी कराया गया, लेकिन अधिकारी आते हैं और बजट नहीं होने की बात कह कर चले जाते हैं.

गौरतलब है कि इस बांध और नहर की समस्याओं को लेकर उधिया गांव के कुछ लोगों ने कुछ महीने पहले आपत्ति भी जाहिर की थी, जिसके बाद तत्कालीन कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव ने स्पॉट पर विजिट भी किया था. लेकिन स्थिति जस की तस ही है. आज भी ये बांध और नहर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और प्रशासन इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है.

Intro:note_ जो सफेद तौलिया और चश्मा लगाकर बाईट दे रहा है उसका नाम राहुल वर्मा है, और जो बिना चश्मा के बाईट दे रहा है उसका नाम हरिवंश शुक्ला है।

इस बांध का अस्तित्व खतरे में, नहर की स्थिति भी खस्ता हाल प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान

शहडोल- शहडोल जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर है सिंहपुर गांव और वहीं सिंहपुर गांव की सीमा पर बना है एक ऐतिहासिक बांध जो बहुत पुराना है। ये बांध सिंहपुर गांव की सीमा से लगे सरफ़ा नदी पर बना है। बताया जा रहा है कि इस बांध का निर्माण 1963 में किया गया था, और 1972 में इस बांध से एक करीब 15 किलोमीट लंबी नहर निकाली गई थी, जिससे कई किसानों को फायदा होता था। इस बांध से निकाले गए नहर से इन गांवों के किसान खेती कर खुशहाल थे, सम्प्पन्न हो रहे थे। लेकिन कहते हैं न कोई चीज बन तो जाती है लेकिन उसका सरंक्षण जरूरी होता है और इस बांध के साथ कुछ ऐसा ही हुआ इस बांध और इससे निकाले गए नहरों पर ध्यान नहीं दिया गया जिससे आलम ये है कि किसान तो पिछले 5- 7 साल से खेती के पानी के लिए तरस ही रहे हैं साथ ही अब ये बांध खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। आलम ये है की जल्द ही अगर इस बांध और इसके नहरों का सरंक्षण नहीं किया गया तो इसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।


Body:खतरे में अस्तित्व

कभी इस बांध में लबालब पानी हुआ करता था, लेकिन आज आप इसकी स्थिति क्या है देख सकते हैं पानी सूख रहा है बांध मैदान की तरह नज़र आ रहा है, बांध में ये जो मैदान नज़र आ रहा है इतना ये बांध मिट्टी के बहाव से पट चुका है बताया तो ये भी जा रहा है कि इस बांध में मिट्टी के बहाव से जो मैदान बन गया है वहां कुछ लोग फसल भी लगाने लगे हैं और प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। एक तरह से ये बांध लगातार बहाव वाले मिट्टी से पट रहा लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा।

बांध में पानी को रोकने के लिए जो दीवाल बनाई गई है वो भी जर्जर स्थिति में है इस बांध में पानी नाम मात्र का है लेकिन इस ओर कोई ध्यान देने वाला नहीं है। आलम ये है कि ये बांध सरफ़ा नदी में बनी है जो इस क्षेत्र की बड़ी नदियों में गिनी जाती है लेकिन आज इस बांध में ही पानी नहीं है।

जिस तरह के हालात इस बांध के हैं उसे देखकर तो इस बांध का अस्तित्व ही खतरे में नज़र आ रहा है।

नहरों के हालत भी खराब

सिंहपुर गांव की सीमा में बना ये बांध 1963 में बना, और 1972 में इसमें करीब 15 किलोमीटर लंबी नहर निकली गई थी लेकिन पिछले कई साल से इस नहर से भी पानी नहीं मिल पा रहा है जिससे नहर भी भट चुके हैं। ये लम्बी नहर 5 गांवों से होते हुए नरगी, उधिया से होते हुए कंचनपुर गांव तक जाती है। लेकिन पिछले कुछ साल से इस गांव के लोग भी परेशान हैं।
उधिया गांव के हरिवंश शुक्ला जो इस नहर से ही खेती करते थे बताते हैं कि नहर तो बहुत पुराना है, काफी लंबी नहर भी है जिस बांध से नहर निकाला गया है उसके भठ जाने कारण अब नहर से अब पिछले 5-7 साल से बिल्कुल भी पानी नहीं आ रहा है। किसान हरिवंश शुक्ला कहते हैं कि पहले दोनों सीजन में पानी मिल जाता था, लेकिन अब पिछले 5-7 साल से बिल्कुल भी पानी नहीं मिल रहा है। ऐसा नहीं है कि अधिकारियों को नहीं बताया, लोग आते हैं देखकर चले जाते है, कहते हैं बजट नहीं आया।










Conclusion:मिट्टी से पट गया बांध

एक और ग्रामीण राहुल वर्मा पास के ही गांव धनपुरा के रहने वाले हैं बांध में टहलते हुए पहुंचे थे कहते हैं कि यहां कुछ साल पहले पूरा पानी भरा रहता था, पांच साल पहले यहां पानी ही पानी रहता था, लेकिन अब मिट्टी से पट कर मैदान बन गया कोई देखने वाला नहीं।

गौरतलब है कि इस बांध और नहर की समस्याओं को लेकर उधिया गांव के कुछ लोगों ने कुछ महीने पहले आपत्ति भी जाहिर की थी, जिसके बाद तत्कालीन कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव ने स्पॉट पर विजिट भी किया था, लेकिन स्थिति जस की तस ही है। आज भी ये बांध और नहर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। और प्रशासन इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है। इससे सम्बंधित विभाग के अधिकारी तो मामले को टालते नज़र आ रहे हैं।
Last Updated : Jun 1, 2019, 10:30 AM IST
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