शहडोल। अजीत जोगी अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनका नाता शहडोल जिले से भी रहा इतना ही नहीं आज भी उन्हें उनके अच्छे कामों को लेकर याद किया जाता है. अजीत जोगी अविभाजित मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में कलेक्टर रहे तो वहीं शहडोल लोकसभा सीट से ही उन्होंने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन ये भी दुर्भाग्य ही था कि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
1999 में पहली बार लड़ा लोकसभा चुनाव
अजीत जोगी लंबे वक्त तक प्रदेश के कई जिलों के कलेक्टर रहे और इस दौरान शहडोल जिले के भी कलेक्टर रहे और उनके कार्यकाल को आज भी सुखद तौर पर याद किया जाता है. कलेक्टर के बाद अजीत जोगी ने राजनीति में प्रवेश किया लेकिन शहड़ोल से उनका जुड़ाव इतना रहा की जब उन्हें शहडोल से चुनाव लड़ने का मौका मिला तो उन्होंने साल 1999 में लोकसभा चुनाव शहडोल लोकसभा सीट से लड़ा. हालांकि इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, कहा जाता है कि उन्हीं की पार्टी में उनका कुछ लोगों ने विरोध किया था, लेकिन काफी कम समय में उन्होंने विरोधी पार्टी को कड़ी टक्कर दी थी.
कोई काम असंभव नहीं
उस दौर में यूथ कांग्रेस के तत्कालीन जिला अध्यक्ष रविन्द्र तिवारी बताते हैं कि युवा कांग्रेस का जिला अध्यक्ष रहते हुए उनके साथ जुड़कर काम करने का मौका मिला, रविन्द्र का ये मानान है कि भारतीय राजनीति में जितना बड़ा विल पावर अजीत जोगी का था उतना आज तक किसी नेता में नहीं देखा गया, विषम परिस्थियों में उन्होंने जिस तरह से काम किया दूसरा कोई राजनेता वर्तमान परिस्थियों में दिखता नहीं है.
जब अजीत जोगी शहडोल लोकसभा का चुनाव लड़े तो उस समय शहडोल जनमानस में ये चर्चा थी कि अगर अजीत जोगी को नेतृत्व मिलता तो निश्चित ही शहडोल की तस्वीर कुछ और होती. रविन्द्र तिवारी कहते हैं कि अजीत जोगी अक्सर कहते थे कोई काम असंभव नहीं है.
कम समय में कड़ी टक्कर दी थी
बीजेपी के तत्कालीन जिलाध्यक्ष अनिल गुप्ता उस दौर को याद करते हुए कहते हैं. कलेक्टर के तौर पर भी यहां वो पदस्थ रहे, तब हम लोगों ने छात्र राजनीति से राजनीति में प्रवेश किया था. उन्होंने जनता के बीच अपनी छवि अच्छी बनाई थी, उस दौर में ही जनता के बीच उन्होंने जो छवि बनाई थी उसी को ध्यान में रखते हुए ही उन्होंने शहडोल लोकसभा का चुनाव लड़ा था. चुनाव में हार जीत लगा रहता है, लेकिन अजीत जोगी जी जिस दृष्टि से अल्प दिनों में भारतीय जनता पार्टी में प्रतिद्वंदी बनकर सामने उतरे, वो तारीफ के काबिल था. लेकिन परिस्थियों ने उनका साथ नहीं दिया. अपने प्रतिद्वंदी नेताओं से भी बड़े सहज तरीके से मिलना उनकी काबिलियत थी. वो एक खिलाड़ी की तरह व्यवहार करते थे.
अपनी राजनीति समझ के मुताबिक अनिल कहते हैं 'जो मुझे राजनीतिक समझ है 1996 और 1998 के दो चुनाव में तत्कालीन कांग्रेस के बहुत ही वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री दलवीर सिंह भाजपा से पराजित हो चुके थे. तीसरी बार कांग्रेस ने सोचा होगा कि परिवर्तन किया जाए और इस परिवर्तन में जोगी जी पहले ही यहां एक सफल प्रशासनिक अधिकारी थे उनकी भी सोच रही होगी और कांग्रेस भी पुराने उम्मीदवार को बदलना चाहा होगा, इसलिए उन्हें शहडोल लोकसभा सीट से उतारा गया था. लेकिन उन्होंने जिस दृढ़ता के साथ चुनाव लड़ा था शायद राजनीति में जितने भी चुनाव हुए उन्होंने अपनी उपस्थित प्रभावी तरीके से रखी और कुशल राजनेता के तौर पर वो चुनाव लड़े थे. गौरतलब है अजीत जोगी बतौर प्रशासनिक अधिकारी किये गए अपने कामों को लेकर आज भी इस जिले में याद किये जाते हैं.