ETV Bharat / state

धान रोपाई में देरी से किसान न हों परेशान, कृषि वैज्ञानिक बता रहे उपाय जिससे होगी बंपर पैदावार

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. शहडोल संभाग छत्तीसगढ़ का सीमावर्ती इलाका है और शहडोल जिले में भी धान की खेती काफी ज्यादा रकबे में की जाती है. वहीं उम्मीद के मुताबिक बारिश नहीं होने से किसान अपनी फसलों को लेकर परेशान हैं, ऐसे में कृषि वैज्ञानिक कुछ आसान उपाय बता रहे हैं, जिनसे फसल को खराब होने से बचाया जा सकता है.

Rice bowl
धान का कटोरा
author img

By

Published : Aug 9, 2020, 8:24 PM IST

शहडोल। धान की खेती शहडोल जिले में सबसे ज्यादा रकबे में की जाती है. जानकारी के मुताबिक इस साल भी जिले में धान का रकबा करीब एक लाख सात हजार हेक्टेयर में है. जिसमें करीब 15 से 20 प्रतिशत सीधी बोवनी का रकबा है और इसके अलावा पूरे रकबे में नर्सरी ट्रांसप्लांट के जरिए खेती होती है. बता दें धान रोपाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है, लेकिन तेज बारिश समय से नहीं हुई. जिन किसानों के पास सिंचाई का साधन था, उन्होंने तो जैसे-तैसे धान कि रोपाई कर ली, लेकिन ऐसे कम ही किसान थे, जिनके पास साधन हैं. जिले में ज्यादातर किसान खेती के लिए बारिश पर ही निर्भर है. ऐसे में उन्हें बारिश का इंतजार था. हालांकि रक्षाबंधन के त्योहार के साथ ही तेज बारिश हो गई है, लेकिन किसानों को अब डर सता रहा है क्योंकि उनके नर्सरी को ज्यादा दिन हो गए हैं. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पीएन त्रिपाठी ने किसानों को जरूरी उपाय बताए हैं, जिन पर किसान अमल कर खराब हो रही फसल को बचा सकते हैं.

धान का कटोरा


धान की नर्सरी को ट्रांसप्लांट करने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है. खेतों को मचाना पड़ता है लेकिन इस बार शहडोल जिले में बारिश तो हुई लेकिन धान रोपाई के लिए जितनी तादाद में पानी की जरूरत थी, उस तरह की बारिश देरी से हुई. इसके चलते किसानों की नर्सरी काफी पुरानी हो गई है. जानकारी के मुताबिक इन दिनों किसान ज्यादातर हाइब्रीड का इस्तमाल कर रहे हैं. हाइब्रीड बीज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि 14 से 15 दिन या फिर 21 दिन के अंदर नर्सरी को ट्रांसप्लांट कर देना चाहिए. जिले में किसानों की नर्सरी करीब एक महीने से भी ऊपर की हो गई है, लेकिन तेज बारिश नहीं होने के कारण किसान परेशान हैं. उन्हें डर सता रहा है कि वह धान की रोपाई तो कर रहा है लेकिन क्या वह उतनी पैदावार हासिल कर पाएगा जितने की उम्मीद उसने शुरुआत में की थी.

किसान अपनाएं ये तरीका
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पी एन त्रिपाठी बताते हैं कि धान की नर्सरी को ट्रांसप्लांट करने में अगर ज्यादा समय हो गया है या किसान की नर्सरी कुछ पुरानी हो गई है तो किसान मायूस न हों. धान रोपाई में अगर सावधानी रखते हैं तो उनकी पैदावार पर बिल्कुल भी असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने बताया की धान रोपाई के लिए एक अवधि निश्चित होती है. वैसे तो 14 से 15 दिन में नर्सरी को ट्रांसप्लांट कर देना चाहिए, जो कि बिल्कुल सही समय होता है. ऐसे में अगर लेट हो तो भी ज्यादा से ज्यादा 21 दिन में हर हाल में रोपाई कर देना चाहिए.


वहीं जिले में अच्छी बारिश नहीं होने के कारण इस साल किसानों की रोपाई लेट हो गई है. किसान समय से रोपा नहीं लगा पाए हैं, लेकिन लगातार बारिश हो रही है और पर्याप्त पानी खेत में है. ऐसे में किसानों को जल्द से जल्द रोपाई का काम करवा देना चाहिए. साथ ही जो मिट्टी परीक्षण अपने खेतों का करवाया है उसके आधार पर जो भी पोषक तत्वों की कमी है उन पोषक तत्वों में विशेष रूप से नाइट्रोजन को छोड़कर जिंक की कमी हो तो जिंक सल्फेट और फॉस्फोरस की कमी है तो डीएपी सुपर फॉस्फेट के रूप में खेत में डाल दें.

पौधा का उपचार जरुर करें

कृषि वैज्ञानिक त्रिपाठी ने बताया कि रोपा लगाने के पहले जो पौधा है, उसका उपचार जरूर कर लें क्योंकि रोग व्याधियों से बचाने के लिए जो जैव उर्वरक आते हैं, जैसे ट्राईकोडर्मा बिरडी, सीरो मोनास इनको एक किलो की मात्रा में लेकर पांच से सात लीटर पानी में उसे घोल बनाकर एक तगाड़ी में रख लें और उसमें रोपा को डुबोकर आधा घंटे तक रखें. ऐसे में उत्पादन भी बढ़ेगा और फसल की रोग व्याधि से बचत होगी.

इतनी दूरी पर करें ट्रांसप्लांट

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पी एन त्रिपाठी कहते हैं कि अगर किसान लाइन से रोपा लगा रहे हैं तो लाइन से रोपा लगाने के लिए इनके बीच कम से कम 10 इंच से 25 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. वहीं पौधे से पौधे की दूरी करीब 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, इसको हम चार इंच कहते हैं. एक जगह जब रोपा लगाए तो दो से तीन पौधा रोपित करें, क्योंकि जब पौधा विकसित होगा तो उसमें कल्ले निकलते हैं और अगर प्रॉपर दूरी मेंटेन होगी तो निश्चित तौर पर ज्यादा कल्ले निकलेंगे और आने वाले समय में ज्यादा उत्पादन मिलेगा.

नील हरित काई का करें इस्तेमाल
डॉक्टर पीएन त्रिपाठी कहते हैं, रोपा लगाने के एक हफ्ते बाद उसमें हमें ब्लू ग्रीन एलजी जिसको हम नील हरित काई कहते हैं, उसे चार किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए. ये पाउडर कृषि विज्ञान केंद्र में उपलब्ध है. जो किसान भाई लेना चाहें, वे उसे वहां से ले सकते हैं. नील हरित काई पूरे खेत में फैला कर कम से कम 20 से 40 किलो प्रति हेक्टेयर में नाइट्रोजन की पूर्ति करता है और कई तरह के ऐसे हार्मोंस भी जमीन में छोड़ता है, जो धान उत्पादन के लिए बहुत जरूरी है.

शहडोल। धान की खेती शहडोल जिले में सबसे ज्यादा रकबे में की जाती है. जानकारी के मुताबिक इस साल भी जिले में धान का रकबा करीब एक लाख सात हजार हेक्टेयर में है. जिसमें करीब 15 से 20 प्रतिशत सीधी बोवनी का रकबा है और इसके अलावा पूरे रकबे में नर्सरी ट्रांसप्लांट के जरिए खेती होती है. बता दें धान रोपाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है, लेकिन तेज बारिश समय से नहीं हुई. जिन किसानों के पास सिंचाई का साधन था, उन्होंने तो जैसे-तैसे धान कि रोपाई कर ली, लेकिन ऐसे कम ही किसान थे, जिनके पास साधन हैं. जिले में ज्यादातर किसान खेती के लिए बारिश पर ही निर्भर है. ऐसे में उन्हें बारिश का इंतजार था. हालांकि रक्षाबंधन के त्योहार के साथ ही तेज बारिश हो गई है, लेकिन किसानों को अब डर सता रहा है क्योंकि उनके नर्सरी को ज्यादा दिन हो गए हैं. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पीएन त्रिपाठी ने किसानों को जरूरी उपाय बताए हैं, जिन पर किसान अमल कर खराब हो रही फसल को बचा सकते हैं.

धान का कटोरा


धान की नर्सरी को ट्रांसप्लांट करने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है. खेतों को मचाना पड़ता है लेकिन इस बार शहडोल जिले में बारिश तो हुई लेकिन धान रोपाई के लिए जितनी तादाद में पानी की जरूरत थी, उस तरह की बारिश देरी से हुई. इसके चलते किसानों की नर्सरी काफी पुरानी हो गई है. जानकारी के मुताबिक इन दिनों किसान ज्यादातर हाइब्रीड का इस्तमाल कर रहे हैं. हाइब्रीड बीज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि 14 से 15 दिन या फिर 21 दिन के अंदर नर्सरी को ट्रांसप्लांट कर देना चाहिए. जिले में किसानों की नर्सरी करीब एक महीने से भी ऊपर की हो गई है, लेकिन तेज बारिश नहीं होने के कारण किसान परेशान हैं. उन्हें डर सता रहा है कि वह धान की रोपाई तो कर रहा है लेकिन क्या वह उतनी पैदावार हासिल कर पाएगा जितने की उम्मीद उसने शुरुआत में की थी.

किसान अपनाएं ये तरीका
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पी एन त्रिपाठी बताते हैं कि धान की नर्सरी को ट्रांसप्लांट करने में अगर ज्यादा समय हो गया है या किसान की नर्सरी कुछ पुरानी हो गई है तो किसान मायूस न हों. धान रोपाई में अगर सावधानी रखते हैं तो उनकी पैदावार पर बिल्कुल भी असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने बताया की धान रोपाई के लिए एक अवधि निश्चित होती है. वैसे तो 14 से 15 दिन में नर्सरी को ट्रांसप्लांट कर देना चाहिए, जो कि बिल्कुल सही समय होता है. ऐसे में अगर लेट हो तो भी ज्यादा से ज्यादा 21 दिन में हर हाल में रोपाई कर देना चाहिए.


वहीं जिले में अच्छी बारिश नहीं होने के कारण इस साल किसानों की रोपाई लेट हो गई है. किसान समय से रोपा नहीं लगा पाए हैं, लेकिन लगातार बारिश हो रही है और पर्याप्त पानी खेत में है. ऐसे में किसानों को जल्द से जल्द रोपाई का काम करवा देना चाहिए. साथ ही जो मिट्टी परीक्षण अपने खेतों का करवाया है उसके आधार पर जो भी पोषक तत्वों की कमी है उन पोषक तत्वों में विशेष रूप से नाइट्रोजन को छोड़कर जिंक की कमी हो तो जिंक सल्फेट और फॉस्फोरस की कमी है तो डीएपी सुपर फॉस्फेट के रूप में खेत में डाल दें.

पौधा का उपचार जरुर करें

कृषि वैज्ञानिक त्रिपाठी ने बताया कि रोपा लगाने के पहले जो पौधा है, उसका उपचार जरूर कर लें क्योंकि रोग व्याधियों से बचाने के लिए जो जैव उर्वरक आते हैं, जैसे ट्राईकोडर्मा बिरडी, सीरो मोनास इनको एक किलो की मात्रा में लेकर पांच से सात लीटर पानी में उसे घोल बनाकर एक तगाड़ी में रख लें और उसमें रोपा को डुबोकर आधा घंटे तक रखें. ऐसे में उत्पादन भी बढ़ेगा और फसल की रोग व्याधि से बचत होगी.

इतनी दूरी पर करें ट्रांसप्लांट

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर पी एन त्रिपाठी कहते हैं कि अगर किसान लाइन से रोपा लगा रहे हैं तो लाइन से रोपा लगाने के लिए इनके बीच कम से कम 10 इंच से 25 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. वहीं पौधे से पौधे की दूरी करीब 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, इसको हम चार इंच कहते हैं. एक जगह जब रोपा लगाए तो दो से तीन पौधा रोपित करें, क्योंकि जब पौधा विकसित होगा तो उसमें कल्ले निकलते हैं और अगर प्रॉपर दूरी मेंटेन होगी तो निश्चित तौर पर ज्यादा कल्ले निकलेंगे और आने वाले समय में ज्यादा उत्पादन मिलेगा.

नील हरित काई का करें इस्तेमाल
डॉक्टर पीएन त्रिपाठी कहते हैं, रोपा लगाने के एक हफ्ते बाद उसमें हमें ब्लू ग्रीन एलजी जिसको हम नील हरित काई कहते हैं, उसे चार किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए. ये पाउडर कृषि विज्ञान केंद्र में उपलब्ध है. जो किसान भाई लेना चाहें, वे उसे वहां से ले सकते हैं. नील हरित काई पूरे खेत में फैला कर कम से कम 20 से 40 किलो प्रति हेक्टेयर में नाइट्रोजन की पूर्ति करता है और कई तरह के ऐसे हार्मोंस भी जमीन में छोड़ता है, जो धान उत्पादन के लिए बहुत जरूरी है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.