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शहडोल पहुंचा टिड्डी दल, हवा का रुख बदलते ही उमरिया की तरफ वापस लौट गया

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Published : Jun 2, 2020, 6:38 PM IST

टिड्डी दल शहडोल पहुंचने के बाद अब उमरिया जिले की तरफ बढ़ गया है. कितना बड़ा था ये टिड्डी दल और जिले में कितना किया नुकसान इन तमाम बातों की जानकारी देते हुए कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद सिंह ने ईटीवी भारत खास बातचीत की.

Agricultural Scientist Mrigendra Singh explained locust attack in shahdol
टिड्डियों का आतंक

शहडोल। कोरोना वायरस और टिड्डी दल ये दोनों आपदाएं ही इन दिनों देश में सुर्खियों में हैं. जिस टिड्डी दल की चर्चा पिछले कुछ दिन से शहडोल में हो रही थी, वहीं टिड्डी दल आखिर बीते सोमवार की शाम को शहडोल पहुंच गया है. टिड्डी दल को जयसिंह नगर के कस्बाई इलाके में देखा गया. देर रात तक प्रशासनिक अमला, कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिक उन्हें भगाने में लगे रहे और अब आज खबर है कि, ये टिड्डी दल एक बार फिर से उमरिया जिले की तरफ बढ़ गया है.

टिड्डियों का आतंक

कितना बड़ा दल था और इसे भगाने क्या कुछ किया गया ?

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद सिंह बताते हैं, कल जयसिंहनगर कस्बे में टिड्डी दल आया, तब हमें सूचना मिली, ये दल यहां मानपुर-उमरिया-कटनी की तरफ से आया था. फिर उसी बीच में हवा की दिशा बदली, तो ये दल जयसिंहनगर ब्लॉक के ही देवरी गांव में पहुंच गया. वहीं पास में ही इस दल ने स्टे किया. टिड्डी दल की खास विशेषता है कि ये उड़ते समय उतना नुकसान नहीं करते हैं, जितना पेड़ों पर बैठते हुए करते हैं.

प्रदेश में 8 से 10 टिड्डी दल सक्रिय हैं, उनमें से ये एक था. जो 4 से 5 किलोमीटर लंबा और करीब एक किलोमीटर के आसपास चौड़ा था. जहां पर इस दल ने स्टे किया, कृषि विभाग के कर्मचारी, नगरपालिका की फायरब्रिगेड टीम और ग्रामीण ढोल आदि बजाकर उनको पहले उड़ाते रहे. जहां इस दल का दूसरा स्टे था, वहां केमिकल का छिड़काव किया गया. आज सुबह ये समाचार मिला है कि, हवा के डायरेक्शन में उत्तर पश्चिम की दिशा में अन्तरिया और वनचाचर ग्राम के आस-पास इन्हें उड़ते हुए देखा गया है और वहां से ये फिर से उमरिया जिले में चला गया है.

कितना हुआ नुकसान ?

डॉक्टर मृगेंद सिंह कहते हैं, अपने यहां ग्रीष्मकालीन फसल नहीं होती है, खेत खाली पड़े रहते हैं. थोड़ी बहुत सब्जी, समर की उड़द,मूंग बहुत कम ही एरिया में होती है. लिहाजा आर्थिक रूप से तो नुकसान नहीं हुआ है. लेकिन जहां कही जंगल हैं, वहां पर जो भी हरी वनस्पति होती हैं, उसे ये पूरी तरह सफाचट कर जाते हैं. साथ में जहां ये अंडे देते हैं, अभी हमें वो नुकसान दिखाई नहीं दे रहा है. जो आगे चलकर खरीफ की फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

टिड्डों के अंडे कितने घातक, कितने दिन में खतरा बन जाएंगे ?

डॉ. मृगेंद्र सिंह ने बताया कि, इनकी पूरा जीवन चक्र होता है. इनकी डिवास्टिंग की दो स्टेज होती हैं. एक निम्फ और दूसरी एडल्ट.अंडे से जब ये निम्फ के स्टेज में आएंगे तो उसी समय हमारी खरीफ की क्रॉप तैयार होगी. उस समय ये नुकसान करने की स्थिति में होंगे, बाद में ये एडल्ट होते हैं तो उड़ते हैं, हालांकि उसे भी कंट्रोल करने के तरीके हैं. बीच में एक ट्रेंच खोद दी जाए और उसे इकट्ठा करके इंसेक्टिसाइड डाल दिया जाए तो इनका कंट्रोल हो सकता है.

ये दल बिखर गया है क्या ?

वैसे तो झुंड में चलते हैं, लेकिन गर्मियों के दिनों में ये आंधी- तूफान आने पर बिखरकर छोटे-छोटे दलों में बंट गए हैं. अब ये धीरे-धीरे फिर से इकट्ठा हो रहे हैं. ये कुछ हार्मोनल सिग्लनल देते हैं और ये फिर से इकट्ठे हो जाते हैं. ये छोटे-छोटे दल थे, जो फिर से एक हो रहे हैं और एक बड़ा दल बना लिए हैं.

शहडोल। कोरोना वायरस और टिड्डी दल ये दोनों आपदाएं ही इन दिनों देश में सुर्खियों में हैं. जिस टिड्डी दल की चर्चा पिछले कुछ दिन से शहडोल में हो रही थी, वहीं टिड्डी दल आखिर बीते सोमवार की शाम को शहडोल पहुंच गया है. टिड्डी दल को जयसिंह नगर के कस्बाई इलाके में देखा गया. देर रात तक प्रशासनिक अमला, कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिक उन्हें भगाने में लगे रहे और अब आज खबर है कि, ये टिड्डी दल एक बार फिर से उमरिया जिले की तरफ बढ़ गया है.

टिड्डियों का आतंक

कितना बड़ा दल था और इसे भगाने क्या कुछ किया गया ?

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मृगेंद सिंह बताते हैं, कल जयसिंहनगर कस्बे में टिड्डी दल आया, तब हमें सूचना मिली, ये दल यहां मानपुर-उमरिया-कटनी की तरफ से आया था. फिर उसी बीच में हवा की दिशा बदली, तो ये दल जयसिंहनगर ब्लॉक के ही देवरी गांव में पहुंच गया. वहीं पास में ही इस दल ने स्टे किया. टिड्डी दल की खास विशेषता है कि ये उड़ते समय उतना नुकसान नहीं करते हैं, जितना पेड़ों पर बैठते हुए करते हैं.

प्रदेश में 8 से 10 टिड्डी दल सक्रिय हैं, उनमें से ये एक था. जो 4 से 5 किलोमीटर लंबा और करीब एक किलोमीटर के आसपास चौड़ा था. जहां पर इस दल ने स्टे किया, कृषि विभाग के कर्मचारी, नगरपालिका की फायरब्रिगेड टीम और ग्रामीण ढोल आदि बजाकर उनको पहले उड़ाते रहे. जहां इस दल का दूसरा स्टे था, वहां केमिकल का छिड़काव किया गया. आज सुबह ये समाचार मिला है कि, हवा के डायरेक्शन में उत्तर पश्चिम की दिशा में अन्तरिया और वनचाचर ग्राम के आस-पास इन्हें उड़ते हुए देखा गया है और वहां से ये फिर से उमरिया जिले में चला गया है.

कितना हुआ नुकसान ?

डॉक्टर मृगेंद सिंह कहते हैं, अपने यहां ग्रीष्मकालीन फसल नहीं होती है, खेत खाली पड़े रहते हैं. थोड़ी बहुत सब्जी, समर की उड़द,मूंग बहुत कम ही एरिया में होती है. लिहाजा आर्थिक रूप से तो नुकसान नहीं हुआ है. लेकिन जहां कही जंगल हैं, वहां पर जो भी हरी वनस्पति होती हैं, उसे ये पूरी तरह सफाचट कर जाते हैं. साथ में जहां ये अंडे देते हैं, अभी हमें वो नुकसान दिखाई नहीं दे रहा है. जो आगे चलकर खरीफ की फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

टिड्डों के अंडे कितने घातक, कितने दिन में खतरा बन जाएंगे ?

डॉ. मृगेंद्र सिंह ने बताया कि, इनकी पूरा जीवन चक्र होता है. इनकी डिवास्टिंग की दो स्टेज होती हैं. एक निम्फ और दूसरी एडल्ट.अंडे से जब ये निम्फ के स्टेज में आएंगे तो उसी समय हमारी खरीफ की क्रॉप तैयार होगी. उस समय ये नुकसान करने की स्थिति में होंगे, बाद में ये एडल्ट होते हैं तो उड़ते हैं, हालांकि उसे भी कंट्रोल करने के तरीके हैं. बीच में एक ट्रेंच खोद दी जाए और उसे इकट्ठा करके इंसेक्टिसाइड डाल दिया जाए तो इनका कंट्रोल हो सकता है.

ये दल बिखर गया है क्या ?

वैसे तो झुंड में चलते हैं, लेकिन गर्मियों के दिनों में ये आंधी- तूफान आने पर बिखरकर छोटे-छोटे दलों में बंट गए हैं. अब ये धीरे-धीरे फिर से इकट्ठा हो रहे हैं. ये कुछ हार्मोनल सिग्लनल देते हैं और ये फिर से इकट्ठे हो जाते हैं. ये छोटे-छोटे दल थे, जो फिर से एक हो रहे हैं और एक बड़ा दल बना लिए हैं.

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