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Shardiya Navratri 2022: पहाड़ों पर विराजमान है मां बिजासन देवी, 1000 सीढ़ियां चढ़ भक्त करते हैं दर्शन

विंध्यवासनी बिजासन देवी का यह पवित्र सिद्धपीठ देवी सलकनपुर गांव में 800 फुट ऊँची पहाड़ी पर विराजित है. यह एक प्राचीन मंदिर हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल मार्ग और सीढ़ियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें 1000 से ज्यादा सीढ़ियां हैं. यहां रोपवे की सुविधा भी नागरिकों के लिए उपलब्ध है. इसका रख रखाव सलकनपुर ट्रस्ट द्वारा किया जाता है. shardiya navratri 2022, sehore bijasan devi temple, durga puja 2022

shardiya navratri 2022
शारदीय नवरात्रि 2022
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Published : Sep 25, 2022, 5:40 PM IST

सीहोर। मध्‍यप्रदेश की हृदयस्‍थली पुण्‍य सलिला मां नर्मदा के तट से सीहोर जिले से 110 किलोमीटर दूरी पर विंध्‍याचल की हसीन वादियों में प्रकृति ने अपनी अनमोल छटा बिखेर रखी है. यहां देवीधाम सलकनपुर है. प्रसिद्ध सलकनपुर धाम में इस नवरात्रि के पावन पर्व में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने की संभावना है. दो सालों से महामारी की वजह से भक्तों के लिए कपाट बंद थे. नवरात्रि के पावन पर्व पर लाखों की संख्या में भक्त शक्ति की आराधना करने पहुंचते हैं. मां के दरबार में नवरात्रि के मौके पर लगभग डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालु प्रतिदिन पहुंचते हैं. (shardiya navratri 2022) (sehore bijasan devi temple)

सीहोर बिजासन देवी मंदिर

पहाड़ों पर विराजमान है मां बिजासन देवी: चारों ओर मनोहारी पर्वत श्रृंखलाएं हैं, जिनमें एक पर्वत पर मां विंध्‍यवासिनी विजयासेन देवी का भव्‍य मंदिर बना हुआ है. शारदीय और चैत्रीय नवरात्रि में मां की चौखट पर माथा टेकने दूरदराज से लाखों लोग आते हैं. हरियाली से भरे इस 800 फीट ऊंचे पर्वत पर अलौकिक सौं‍दर्य के बीच मां की सुं‍दर प्रतिमा के दर्शन, परिक्रमा, वं‍दना, स्‍तुति कर अपने मन की मुरादें पूरी पाते हैं. माना जाता है यहां जो भी भक्त मनोकामना मांगते हैं वो पूरी होती है. (durga puja 2022)

विजयासन शक्तिपीठ बेहद प्रसिद्ध: ऐतिहासिक रूप से पौराणिक कथाओं के आधार पर नर्मदा परिक्रमा और नर्मदा तीर्थों का सेवन महाभारत काल से पूर्व से इस विजयासन शक्तिपीठ की प्रसिद्धि रही है. इस संदर्भ में स्‍कंद पुराण के अवंति खंड के रेवा खंड में वर्णित नेमावर तीर्थ को नाभि क्षेत्र कहा गया है. जिस सिद्धेश्‍वर वैष्‍णवी देवी तीर्थ का उल्‍लेख है, वह विंध्य पर्वत पर विराजमान माता हैं. भगवान श्रीकृष्‍ण की बहन की स्‍तुति और चर्चा विजया देवी के नाम से अनेक पुराणों में है, जिससे स्‍पष्‍ट है कि पौराणिक कथाओं के आधार पर नर्मदा क्षेत्रीय तीर्थ सलकनपुर में जो विजया शक्तिपीठ है वह अतिप्राचीन और पौराणिक मान्‍यताओं में देवीधाम सलकनपुर के विजयासन शक्तिपीठ की स्‍वयंभू घोषणा को प्रमाणित करता है. (sehore bijasan devi temple between mountains)

कई साल पुराना है सलकनपुर धाम: मान्‍यता है कि यह मंदिर 6,000 साल पुराना है. यहां जीर्ण-शीर्ण अवस्‍था में पहुंचने पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार अनेक बार किया जा चुका है. इसकी व्‍यवस्‍था भोपाल नवाब के संरक्षण में होती थी, तब वहां पर अखंड धूनी और अखंड ज्योति स्‍थापित की जा चुकी थी जो सालों से आज भी प्रज्‍वलित है. गर्भगृह में देवी की प्रतिमा स्‍वयंभू है, जिसे किसी के द्वारा तराशा नहीं गया, लेकिन बाद में चांदी के नेत्र एवं मुकुट आदि से देवी को सजाया गया है. विजयासन देवी की प्रतिमा के दाएं-बाएं जो 3 संगमरमर की मूर्तियां हैं, उनके विषय में मान्‍यता है कि गिन्‍नौर किले के वीरान होने पर एक घुम्‍मकड़ साधु इन्‍हें यहां पर ले आया था. स्‍वतंत्र भारत की मध्‍यप्रदेश विधानसभा ने 1956 में इस मंदिर व्‍यवस्‍था का पृथक से अधिनियम बनाया, जो 1966 में लागू हुआ और मंदिर की व्‍यवस्‍था प्रजातांत्रिक तरीके से गठित समिति के हाथों में आई.

Shardiya Navratri 2022: नवदुर्गा की पूजा का महत्व, आखिर 9 दिन की ही क्यों होती है नवरात्रि, जानिए यहां

भक्तों के लिए रोपवे भी लगवाया गया: सलकनपुर देवीधाम में जहां मां विजयासन का मंदिर है, वह धरातल से 800 फुट की ऊंचाई पर है जिसमें पत्‍थर की 1,065 सीढ़ियां चढ़कर विंध्‍याचल पर्वत के उच्‍चासन पर विराजमान मां के दर्शन करने का लाभ प्राप्‍त होता है. 2003 के बाद मंदिर ट्रस्‍ट ने मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काटकर सड़क मार्ग से व्‍यवस्‍था की थी, जिसमें 500 वाहन प्रतिदिन मंदिर तक पहुंचने की व्‍यवस्‍था है. उक्‍त वाहनों की पार्किंग व्‍यवस्‍था भी की गई है. भक्तों की वीर और आस्था को देखते हुए यहां पर रोपवे भी लगवाया गया है, जिससे लोगों को आने-जाने में सुविधा हो सके. (devotees crowd on durga puja 2022)

सीहोर। मध्‍यप्रदेश की हृदयस्‍थली पुण्‍य सलिला मां नर्मदा के तट से सीहोर जिले से 110 किलोमीटर दूरी पर विंध्‍याचल की हसीन वादियों में प्रकृति ने अपनी अनमोल छटा बिखेर रखी है. यहां देवीधाम सलकनपुर है. प्रसिद्ध सलकनपुर धाम में इस नवरात्रि के पावन पर्व में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने की संभावना है. दो सालों से महामारी की वजह से भक्तों के लिए कपाट बंद थे. नवरात्रि के पावन पर्व पर लाखों की संख्या में भक्त शक्ति की आराधना करने पहुंचते हैं. मां के दरबार में नवरात्रि के मौके पर लगभग डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालु प्रतिदिन पहुंचते हैं. (shardiya navratri 2022) (sehore bijasan devi temple)

सीहोर बिजासन देवी मंदिर

पहाड़ों पर विराजमान है मां बिजासन देवी: चारों ओर मनोहारी पर्वत श्रृंखलाएं हैं, जिनमें एक पर्वत पर मां विंध्‍यवासिनी विजयासेन देवी का भव्‍य मंदिर बना हुआ है. शारदीय और चैत्रीय नवरात्रि में मां की चौखट पर माथा टेकने दूरदराज से लाखों लोग आते हैं. हरियाली से भरे इस 800 फीट ऊंचे पर्वत पर अलौकिक सौं‍दर्य के बीच मां की सुं‍दर प्रतिमा के दर्शन, परिक्रमा, वं‍दना, स्‍तुति कर अपने मन की मुरादें पूरी पाते हैं. माना जाता है यहां जो भी भक्त मनोकामना मांगते हैं वो पूरी होती है. (durga puja 2022)

विजयासन शक्तिपीठ बेहद प्रसिद्ध: ऐतिहासिक रूप से पौराणिक कथाओं के आधार पर नर्मदा परिक्रमा और नर्मदा तीर्थों का सेवन महाभारत काल से पूर्व से इस विजयासन शक्तिपीठ की प्रसिद्धि रही है. इस संदर्भ में स्‍कंद पुराण के अवंति खंड के रेवा खंड में वर्णित नेमावर तीर्थ को नाभि क्षेत्र कहा गया है. जिस सिद्धेश्‍वर वैष्‍णवी देवी तीर्थ का उल्‍लेख है, वह विंध्य पर्वत पर विराजमान माता हैं. भगवान श्रीकृष्‍ण की बहन की स्‍तुति और चर्चा विजया देवी के नाम से अनेक पुराणों में है, जिससे स्‍पष्‍ट है कि पौराणिक कथाओं के आधार पर नर्मदा क्षेत्रीय तीर्थ सलकनपुर में जो विजया शक्तिपीठ है वह अतिप्राचीन और पौराणिक मान्‍यताओं में देवीधाम सलकनपुर के विजयासन शक्तिपीठ की स्‍वयंभू घोषणा को प्रमाणित करता है. (sehore bijasan devi temple between mountains)

कई साल पुराना है सलकनपुर धाम: मान्‍यता है कि यह मंदिर 6,000 साल पुराना है. यहां जीर्ण-शीर्ण अवस्‍था में पहुंचने पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार अनेक बार किया जा चुका है. इसकी व्‍यवस्‍था भोपाल नवाब के संरक्षण में होती थी, तब वहां पर अखंड धूनी और अखंड ज्योति स्‍थापित की जा चुकी थी जो सालों से आज भी प्रज्‍वलित है. गर्भगृह में देवी की प्रतिमा स्‍वयंभू है, जिसे किसी के द्वारा तराशा नहीं गया, लेकिन बाद में चांदी के नेत्र एवं मुकुट आदि से देवी को सजाया गया है. विजयासन देवी की प्रतिमा के दाएं-बाएं जो 3 संगमरमर की मूर्तियां हैं, उनके विषय में मान्‍यता है कि गिन्‍नौर किले के वीरान होने पर एक घुम्‍मकड़ साधु इन्‍हें यहां पर ले आया था. स्‍वतंत्र भारत की मध्‍यप्रदेश विधानसभा ने 1956 में इस मंदिर व्‍यवस्‍था का पृथक से अधिनियम बनाया, जो 1966 में लागू हुआ और मंदिर की व्‍यवस्‍था प्रजातांत्रिक तरीके से गठित समिति के हाथों में आई.

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भक्तों के लिए रोपवे भी लगवाया गया: सलकनपुर देवीधाम में जहां मां विजयासन का मंदिर है, वह धरातल से 800 फुट की ऊंचाई पर है जिसमें पत्‍थर की 1,065 सीढ़ियां चढ़कर विंध्‍याचल पर्वत के उच्‍चासन पर विराजमान मां के दर्शन करने का लाभ प्राप्‍त होता है. 2003 के बाद मंदिर ट्रस्‍ट ने मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काटकर सड़क मार्ग से व्‍यवस्‍था की थी, जिसमें 500 वाहन प्रतिदिन मंदिर तक पहुंचने की व्‍यवस्‍था है. उक्‍त वाहनों की पार्किंग व्‍यवस्‍था भी की गई है. भक्तों की वीर और आस्था को देखते हुए यहां पर रोपवे भी लगवाया गया है, जिससे लोगों को आने-जाने में सुविधा हो सके. (devotees crowd on durga puja 2022)

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