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हिन्दी दिवस विशेष: सरकारी स्कूल के बच्चों को नहीं आती हिन्दी लिखना, सतना में नीचे गिर रहा शिक्षा का स्तर - satna news

हिंदी अपने देश की मातृभाषा मानी जाती है. लेकिन अगर मातृभाषा की बात की जाए तो सतना जिले में शिक्षा के स्तर से मातृभाषा हिन्दी का महत्व अब खत्म होता नजर आ रहा है.

ल के बच्चों को नहीं आती हिन्दी लिखना
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Published : Sep 14, 2019, 5:00 AM IST

सतना। पूरे देश में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. हिन्दी दिवस को स्कूल, कॉलेज और सरकारी कार्यालयों में अलग-अलग तरीके से उत्साह पूर्वक मनाया जाता है. हिंदी अपने देश की मातृभाषा मानी जाती है. लेकिन अगर मातृभाषा की बात की जाए तो सतना जिले में शिक्षा के स्तर से मातृभाषा हिन्दी का महत्व अब खत्म होता नजर आ रहा है. सरकारी स्कूलों के बच्चे नवमी-दसवीं क्लास में पहुंच गए, लेकिन उन्हें शुद्ध हिन्दी लिखना नहीं आता है.

ल के बच्चों को नहीं आती हिन्दी लिखना

सतना जिले में अगर शिक्षा की बात करें तो शिक्षा का स्तर नीचे की ओर गिरता नजर आ रहा है. इस बात को लेकर जब सतना में ईटीवी भारत द्वारा जिले के सरकारी विद्यालयों में छात्र-छात्राओं से बात की तो पाया कि बच्चे नवमी, दशवीं में पहुंच चुके हैं लेकिन उनसे शुद्ध रूप से हिन्दी लिखना नहीं आता है. स्कूल की शिक्षिका और प्राचार्य इस बात को खुद स्वीकार रहे हैं कि हमारे विद्यालय में शिक्षा की कमी है.

सतना। पूरे देश में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. हिन्दी दिवस को स्कूल, कॉलेज और सरकारी कार्यालयों में अलग-अलग तरीके से उत्साह पूर्वक मनाया जाता है. हिंदी अपने देश की मातृभाषा मानी जाती है. लेकिन अगर मातृभाषा की बात की जाए तो सतना जिले में शिक्षा के स्तर से मातृभाषा हिन्दी का महत्व अब खत्म होता नजर आ रहा है. सरकारी स्कूलों के बच्चे नवमी-दसवीं क्लास में पहुंच गए, लेकिन उन्हें शुद्ध हिन्दी लिखना नहीं आता है.

ल के बच्चों को नहीं आती हिन्दी लिखना

सतना जिले में अगर शिक्षा की बात करें तो शिक्षा का स्तर नीचे की ओर गिरता नजर आ रहा है. इस बात को लेकर जब सतना में ईटीवी भारत द्वारा जिले के सरकारी विद्यालयों में छात्र-छात्राओं से बात की तो पाया कि बच्चे नवमी, दशवीं में पहुंच चुके हैं लेकिन उनसे शुद्ध रूप से हिन्दी लिखना नहीं आता है. स्कूल की शिक्षिका और प्राचार्य इस बात को खुद स्वीकार रहे हैं कि हमारे विद्यालय में शिक्षा की कमी है.

Intro:"अजब एमपी की गजब शिक्षा"
"छात्र छात्राओं से अपनी मातृभाषा लिखनी नहीं आती"
"ऐसे में कैसे सवेरे का देश का भविष्य"

एंकर --
पूरे देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को भारतवर्ष के रूप में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है अन्य पर्व की तरह ही भारत के लोगों के लिए हिंदी दिवस में उतना ही महत्वपूर्ण है. इस दिन स्कूल कॉलेज सरकारी कार्यालयों में अलग-अलग तरीके से हिंदी दिवस को उत्साह पूर्वक मनाया जाता है. हिंदी अपने देश की मातृभाषा मानी जाती है. लेकिन अगर मातृभाषा की बात की जाए तो सतना जिले में शिक्षा के स्तर से मातृभाषा हिंदी क्या महत्व अब समाप्त होता नजर आ रहा है. सरकारी स्कूलों के बच्चे नवमी दसवीं क्लास में पहुंच गए लेकिन उन्हें शुद्ध हिंदी लिखना नहीं आता है. उन्हें तो हिंदी में अपने विद्यालय का नाम भी पूरा नहीं पता है. यह तस्वीर है जो आपके सामने हैं यह मातृभाषा हिंदी का एक प्रारूप है कि जिले के अंदर अब शिक्षा का स्तर नीचे की ओर गिरता नजर आ रहा है वजह यही है कि संबंधित विभाग के अधिकारी कभी किसी भी विद्यालय में जाकर इसकी जानकारी नहीं देते हैं. और शिक्षक मन मुताबिक शिक्षा दीक्षा छात्र छात्राओं को देते हैं. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश का भविष्य कैसा होगा ।


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सतना जिले में अगर हम शिक्षा की बात करें. तो शिक्षा का स्तर नीचे की ओर करता नजर आ रहा है. पूरे देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता. इस बात को लेकर जा सतना ईटीवी भारत द्वारा जिले के सरकारी विद्यालयों में छात्र छात्राओं से बात की तो पाया कि बच्चे नवमी दशमी पहुंच चुके हैं लेकिन उनसे शुद्ध रूप से हिंदी लिखना नहीं आता है. उन्हें तो अपने विषय का भी नाम लिखना नहीं आता.बच्चों को अपने विद्यालय का पूरा नाम भी नहीं पता है. बच्चों को देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का नाम भी नहीं पता है ना ही वह इन शब्दों को सही लिख पा रहे हैं. यह तस्वीर है सरकारी स्कूलों की है जहां नवमी एवं दशमी के छात्र-छात्राएं सही ढंग से हिंदी के शब्दों को लिख नहीं पा रहे हैं. इसे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि कि आने वाले समय में देश का भविष्य कैसा होगा. इसका मुख्य कारण यह है कि जिले में सरकारी स्कूल की शिक्षा के हालात बद से बदतर हैं. शिक्षक अपनी मनमानी करते हैं कोई भी शिक्षक का भी किसी छात्र से पढ़ाई के बारे में नहीं पूछता है वह अपनी क्लास पूरी कर समय को ध्यान में रखते हुए घर की ओर चल देते हैं. यहां तक कि विद्यालय की शिक्षिका और प्राचार्य भी यह कुछ स्वीकार रहे हैं कि हमारे विद्यालय में शिक्षा की कमी है. अब ऐसे में इन्हें क्या कर सकते हैं यह अपना दोषारोपण दूसरे के ऊपर थोपकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. इस बारे में जिला शिक्षा अधिकारी भी कार्यवाही के नाम पर बात कहकर अपना फर्ज अदा कर लेते हैं. लेकिन यहां साफ तौर से नजर आ रहा है किस प्रकार से बच्चे को सरकारी स्कूल में शिक्षा दीक्षा दी जाती है. इसमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि बच्चों की शिक्षा दीक्षा का अब क्या होगा ।

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हिंदी दिवस सन 1947 में जब हमारे देश में ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी तब उसके सामने भाषा की एक बड़ी चिंता खड़ी हुई. भारत एक विशाल देश है जिसमें विविध संस्कृति हैं. ऐसी सैकड़ों भाषाएं हैं जो देश में बोली जाती हैं और हजारों से अधिक बोलियां हैं. 6 दिसंबर 1946 को स्वतंत्र भारत के संविधान को तैयार करने के लिए संविधान सभा को बुलाया गया था. जिसमें सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा के अंतरिम निर्देशक के रूप में नियुक्त किया गया था जिसके बाद उनकी जगह पर डॉ राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त किया गया और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे । विधानसभा ने 26 नवंबर 1949 को अंतिम मसौदा पेश किया था. इसलिए स्वतंत्र भारत ने 26 जनवरी 1950 को पूरी तरह से अपना संविधान प्राप्त किया.लेकिन फिर भी संविधान के लिए एक अधिकारिक भाषा चुनने की चिंता अभी भी नहीं सुलझी थी. एक लंबी बहस और चर्चा के बाद हिंदी और अंग्रेजी को स्वतंत्र भारत की आधिकारिक भाषा चुना गया. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि और अंग्रेजी में लिखित हिंदी को एक अधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया. बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन को देश में हिंदी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की. पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर सन 1953 को मनाया गया था. तब से लेकर आज तक हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है ।


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छात्र शासकीय विद्यालय
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छात्रा शासकीय विद्यालय
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ऊषा सिंह -- शिक्षिका शा.विद्या. ।
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रंजना सिंह -- प्राचार्या शा.विद्या. टिकुरिया टोला ।
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टी.पी. सिंह -- जिला शिक्षा अधिकारी सतना ।

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