ETV Bharat / state

भगवान गैवीनाथ महाकाल के हैं दूसरे रूप, हर भक्त की पूरी करते हैं मुराद

सतना के बिरसिंहपुर में भगवान भोलेनाथ का ऐसा भव्य मंदिर है, जहां भगवान भोलेनाथ खंडित शिवलिंग के रुप में विराजमान हैं, जिसे उज्जैन महाकाल के दूसरे शिवलिंग के रूप में माना जाता है.

author img

By

Published : Aug 5, 2019, 1:54 PM IST

गैवीनाथ में हर भक्त की पूरी होती है मुराद

सतना। जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित बिरसिंहपुर में भगवान भोलेनाथ का भव्य मंदिर स्थित है, जिसे गैवीनाथ नाम से जाना जाता है. नाग पंचमी के इस पावन पर्व पर यहां भक्तों का मेला लगता है. माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मुराद भगवान भोलेनाथ पूरी करते हैं.

महाकाल का दूसरा रूप माना जाता है गैवीनाथ
इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा खंडित शिवलिंग के रुप में विराजमान है, जिसे उज्जैन महाकाल के दूसरे शिवलिंग के रूप में माना जाता है. पूरे सावन माह यहां मेले जैसा दृश्य रहता है और नाग पंचमी के दिन भक्तों की भीड़ सुबह से ही बनी रहती है. दूर-दूर से लोग यहां जल चढ़ाने और पूजा-अर्चना करने आते हैं. जो व्यक्ति महाकाल के दर्शन करने नहीं जा सकता, वो बिरसिंहपुर के गैवीनाथ भगवान का दर्शन कर पुण्य प्राप्त कर सकता है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चारों धाम से लौटने वाले भक्त गैवीनाथ पहुंचकर चारों धाम का जल चढ़ाते हैं. लोग कहते हैं कि चारों धाम का जल अगर यहां नहीं चढ़ाया गया तो चारों धाम की यात्रा अधूरी रह जाती है.

क्यों कहते हैं महाकाल को गैवी नाथ

प्राचीन में यहां राजा वीर सिंह राज करते थे, तब बिरसिंहपुर का नाम देवपुर हुआ करता था. राजा वीर सिंह प्रतिदिन भगवान महाकाल को जल चढ़ाने घोड़े पर सवार होकर उज्जैन जाते थे. जब राजा वृद्ध हो गए तो उज्जैन जाने में परेशानी होने लगी. राजा ने महाकाल से देवपुर में दर्शन देने की प्रार्थना की. भगवान महाकाल ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिया और देवपुर में दर्शन देने की बात कही. इसके बाद नगर के गैवी यादव नामक व्यक्ति के घर चूल्हे से रात को शिवलिंग का रूप प्रकट होता है, जिसे यादव की मां मूसल से ठोककर अंदर कर देती हैं. कई दिनों तक यही क्रम चलता रहा, महाकाल राजा को स्वप्न में आए और कहा मैं तुम्हारी पूजा और निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में निकालना चाहता हूं, लेकिन मुझे गैवी यादव निकलने नहीं देता.

इसके बाद राजा ने गैवी यादव को बुलाया और स्वप्न की बात बताई, जिसके बाद जगह को खाली कराया गया, जहां शिवलिंग निकला. फिर राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया, महाकाल के कहने पर शिवलिंग का नाम गैवीनाथ रखा गया. तब से भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है. इसकी पहचान महाकाल के उपलिंग के रूप में भी होती है.

सतना। जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित बिरसिंहपुर में भगवान भोलेनाथ का भव्य मंदिर स्थित है, जिसे गैवीनाथ नाम से जाना जाता है. नाग पंचमी के इस पावन पर्व पर यहां भक्तों का मेला लगता है. माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मुराद भगवान भोलेनाथ पूरी करते हैं.

महाकाल का दूसरा रूप माना जाता है गैवीनाथ
इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा खंडित शिवलिंग के रुप में विराजमान है, जिसे उज्जैन महाकाल के दूसरे शिवलिंग के रूप में माना जाता है. पूरे सावन माह यहां मेले जैसा दृश्य रहता है और नाग पंचमी के दिन भक्तों की भीड़ सुबह से ही बनी रहती है. दूर-दूर से लोग यहां जल चढ़ाने और पूजा-अर्चना करने आते हैं. जो व्यक्ति महाकाल के दर्शन करने नहीं जा सकता, वो बिरसिंहपुर के गैवीनाथ भगवान का दर्शन कर पुण्य प्राप्त कर सकता है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चारों धाम से लौटने वाले भक्त गैवीनाथ पहुंचकर चारों धाम का जल चढ़ाते हैं. लोग कहते हैं कि चारों धाम का जल अगर यहां नहीं चढ़ाया गया तो चारों धाम की यात्रा अधूरी रह जाती है.

क्यों कहते हैं महाकाल को गैवी नाथ

प्राचीन में यहां राजा वीर सिंह राज करते थे, तब बिरसिंहपुर का नाम देवपुर हुआ करता था. राजा वीर सिंह प्रतिदिन भगवान महाकाल को जल चढ़ाने घोड़े पर सवार होकर उज्जैन जाते थे. जब राजा वृद्ध हो गए तो उज्जैन जाने में परेशानी होने लगी. राजा ने महाकाल से देवपुर में दर्शन देने की प्रार्थना की. भगवान महाकाल ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिया और देवपुर में दर्शन देने की बात कही. इसके बाद नगर के गैवी यादव नामक व्यक्ति के घर चूल्हे से रात को शिवलिंग का रूप प्रकट होता है, जिसे यादव की मां मूसल से ठोककर अंदर कर देती हैं. कई दिनों तक यही क्रम चलता रहा, महाकाल राजा को स्वप्न में आए और कहा मैं तुम्हारी पूजा और निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में निकालना चाहता हूं, लेकिन मुझे गैवी यादव निकलने नहीं देता.

इसके बाद राजा ने गैवी यादव को बुलाया और स्वप्न की बात बताई, जिसके बाद जगह को खाली कराया गया, जहां शिवलिंग निकला. फिर राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया, महाकाल के कहने पर शिवलिंग का नाम गैवीनाथ रखा गया. तब से भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है. इसकी पहचान महाकाल के उपलिंग के रूप में भी होती है.

Intro:एंकर इंट्रो --
सतना जिले के बिरसिंहपुर शिवालय में नाग पंचमी का दिन शुभ माना जाता है । यहां पर स्थित शिवालय को गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है । कहते हैं कि यहां जो भी भक्त अपनी मनोकामना लेकर आता है वह अवश्य पूरी होती है और यहां पर स्थित भगवान शिव जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। यहां पर स्थित भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा खंडित शिवलिंग है जिसे उज्जैन महाकाल के दूसरे शिवलिंग के रूप में माना जाता है । यहां सावन महीने के पूरे माह में मेले जैसा दृश्य रहता है। और नाग पंचमी के दिन यहां भक्तों का हर वर्ष मेला लगता है। यह शिवलिंग स्वयंभू मानी जाती है।


Body:vo --
सतना जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित बिरसिंहपुर में भगवान भोलेनाथ का भव्य मंदिर है जिसे गैविनाथ नाम से जाना जाता है । यहां नागपंचमी के शुभ अवसर पर भक्तों का मेला लगता है दूर-दूर से लोग यहां जल चढ़ाने और पूजा अर्चना करने आते हैं । कहते हैं कि यहां भगवान भोले जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं यही वजह है कि उसे आस्था का केंद्र माना जाता है। इस मंदिर में खंडित शिवलिंग की पूजा होती है ।इसका वर्णन पदम् पुराण के पाताल खंड में मिलता है । जिसके अनुसार त्रेतायुग में यहां राजा वीर सिंह का राज हुआ करता था और तब बिरसिंहपुर का नाम देवपुर हुआ करता था । राजा वीर सिंह प्रतिदिन भगवान महाकाल को जल चढ़ाने घोड़े पर सवार होकर उज्जैन जाते थे । ऐसा माना जाता है कि लगभग 650 वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा । इस तरह राजा वृद्ध हो गए और उज्जैन जाने में परेशानी होने लगी । महाकाल से राजा वीर सिंह ने देवपुर में दर्शन देने की बात कही । एक दिन भगवान महाकाल ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिया और देवपुर में दर्शन देने की बात कही । इसके बाद नगर के गैवी यादव नामक व्यक्ति के घर में एक घटना सामने आई । घर के चूल्हे से रात को शिवलिंग रूप निकलता है जिसे यादव की मां मूसल से ठोकर अंदर कर देती । राजा ने गैवी यादव को बुलाया कई दिनों तक यही क्रम चलता रहा। एक दिन महाकाल राजा को स्वप्न में आए और कहा मैं तुम्हारी पूजा और निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में निकालना चाहता हूं लेकिन मुझे गैवी यादव निकलने नहीं देता । इसके बाद राजा ने गैवी यादव को को बुलाया और स्वप्न की बात बताई । जिसके बाद जगह को खाली कराया गया जहां शिवलिंग निकला । फिर राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया महाकाल के कहने पर शिवलिंग का नाम गैवीनाथ रख दिया । तब से भोलेनाथ को गैवी नाथ के नाम से जाना जाता है । स्थानीय स्तर पर इसकी पहचान महाकाल के उपलिंग के रूप में होती है । जो व्यक्ति महाकाल के दर्शन करने नहीं जा सकता वो बिरसिंहपुर के गैविनाथ भगवान का दर्शन कर पुण्य प्राप्त कर सकता है ।
vo 2--
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां चारों धाम से लौटने वाले भक्त भगवान भोलेनाथ के दर गैवीनाथ पहुंचकर चारों धाम का जल चढ़ाते हैं । लोग कहते हैं कि चारों धाम का जल अगर यहां नहीं चढ़ा तो चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है ।
इस मंदिर में नाग पंचमी के शुभ अवसर के अलावा, सावन के पूरे माह में, शिवरात्रि के पावन पर्व पर भक्तों का मेला लगता है ।यहाँ पर विंध्य के साथ देशभर से लोग दर्शन करने आते हैं ।वैसे तो हर सोमवार को या हजारों भक्त पहुंचकर गैविनाथ की पूजा अर्चना कर मन्नत मांगते हैं । कहते हैं कि भगवान यहां जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और यहां पर आने वाले हर एक भक्त की मनोकामना जल्द पूर्ण होती है ।


Conclusion:
byte --
पंडित रामसिया -- पुजारी ।

byte --
राहुल -- भक्त ।

byte --
रोहित -- दर्शनार्थी ।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.