सतना। जिले का ऐतिहासिक नगर उचेहरा कांसे के बर्तन बनाने के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर राजे-राजवाड़ों के समय से कांसे के बर्तन बनाए जा रहे हैं. आधुनिकता के इस दौर में भी यहां हाथ से ही बर्तन बनाए जाते हैं, जो पूरे देश में प्रसिद्ध हैं, लेकिन स्टील के बर्तनों का प्रचलन बढ़ने और लोगों में कांसे के प्रति कम जागरूकता से आज यह उद्योग बंद होने की कगार पर है.
इस व्यवसाय में रोजी रोटी का संकट पैदा हो जाने से पीढियों से इस उद्योग से जुड़े लोग अब पलायन के लिए मजबूर हैं. तांबे के बर्तनों का कोई भविष्य नहीं दिखने से युवाओं का भी रुझान पारंपरिक व्यवसाय में नहीं है, जिसके चलते वह रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों में पलायन कर रहे हैं. बावजूद इसके उंचेहरा की पहचान को बचाने के लिए सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है.
कभी देश विदेश में पहचान रखने वाला यह उद्योग अब सिमटता जा रहा है. उंचेहरा में रहने वाला ताम्रकार समाज कई पीढ़ियों से इस उद्योग से जुड़ा है, लेकिन पारंपरिक व्यवसाय में विशेष लाभ नहीं होने से केवल दर्जनभर परिवार ही इस व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं.
कारीगरों का कहना है कि पहले बहुत काम मिलता था लेकिन अब गुजारा करना भी मुश्किल हो रहा है. बावजूद इसके न सरकार और न ही जनप्रतिनिधि उनकी इस विरासत को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा है. ईटीवी भारत ने इस विषय में एसडीएम से बात की, जिस पर उन्होंने कहा कि सही मार्केटिंग और युवाओं की रुचि इस क्षेत्र में नहीं होने से उंचेहरा की यह कला सिकुड़ती जा रही है. इस कला को संरक्षित करने के लिए पहले जिला स्तर पर प्रयास किए जा चुके हैं,आगे इसे देश-विदेश में कैसे पहुंचाया जाए इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं.