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खत्म हो रही पीढ़ियों पुरानी कांसे के बर्तन बनाने की कला, पलायन को मजबूर युवा - ताम्रकार समाज

सतना जिले का उंचेहरा नगर कांसे के बर्तन बनाने के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. लेकिन स्टील के बर्तनों का प्रचलन बढ़ने के कारण यह उद्योग ठप्प होता जा रहा है. जिसे बचाने के लिए प्रसाशन भी कोई प्रयास नहीं कर रहा है.

खत्म हो रही पीढ़ियों पुरानी कांसे के बर्तन बनाने की कला
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Published : Oct 12, 2019, 1:36 PM IST

Updated : Oct 12, 2019, 3:23 PM IST

सतना। जिले का ऐतिहासिक नगर उचेहरा कांसे के बर्तन बनाने के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर राजे-राजवाड़ों के समय से कांसे के बर्तन बनाए जा रहे हैं. आधुनिकता के इस दौर में भी यहां हाथ से ही बर्तन बनाए जाते हैं, जो पूरे देश में प्रसिद्ध हैं, लेकिन स्टील के बर्तनों का प्रचलन बढ़ने और लोगों में कांसे के प्रति कम जागरूकता से आज यह उद्योग बंद होने की कगार पर है.

खत्म हो रही पीढ़ियों पुरानी कांसे के बर्तन बनाने की कला

इस व्यवसाय में रोजी रोटी का संकट पैदा हो जाने से पीढियों से इस उद्योग से जुड़े लोग अब पलायन के लिए मजबूर हैं. तांबे के बर्तनों का कोई भविष्य नहीं दिखने से युवाओं का भी रुझान पारंपरिक व्यवसाय में नहीं है, जिसके चलते वह रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों में पलायन कर रहे हैं. बावजूद इसके उंचेहरा की पहचान को बचाने के लिए सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है.

कभी देश विदेश में पहचान रखने वाला यह उद्योग अब सिमटता जा रहा है. उंचेहरा में रहने वाला ताम्रकार समाज कई पीढ़ियों से इस उद्योग से जुड़ा है, लेकिन पारंपरिक व्यवसाय में विशेष लाभ नहीं होने से केवल दर्जनभर परिवार ही इस व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं.

कारीगरों का कहना है कि पहले बहुत काम मिलता था लेकिन अब गुजारा करना भी मुश्किल हो रहा है. बावजूद इसके न सरकार और न ही जनप्रतिनिधि उनकी इस विरासत को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा है. ईटीवी भारत ने इस विषय में एसडीएम से बात की, जिस पर उन्होंने कहा कि सही मार्केटिंग और युवाओं की रुचि इस क्षेत्र में नहीं होने से उंचेहरा की यह कला सिकुड़ती जा रही है. इस कला को संरक्षित करने के लिए पहले जिला स्तर पर प्रयास किए जा चुके हैं,आगे इसे देश-विदेश में कैसे पहुंचाया जाए इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं.

सतना। जिले का ऐतिहासिक नगर उचेहरा कांसे के बर्तन बनाने के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर राजे-राजवाड़ों के समय से कांसे के बर्तन बनाए जा रहे हैं. आधुनिकता के इस दौर में भी यहां हाथ से ही बर्तन बनाए जाते हैं, जो पूरे देश में प्रसिद्ध हैं, लेकिन स्टील के बर्तनों का प्रचलन बढ़ने और लोगों में कांसे के प्रति कम जागरूकता से आज यह उद्योग बंद होने की कगार पर है.

खत्म हो रही पीढ़ियों पुरानी कांसे के बर्तन बनाने की कला

इस व्यवसाय में रोजी रोटी का संकट पैदा हो जाने से पीढियों से इस उद्योग से जुड़े लोग अब पलायन के लिए मजबूर हैं. तांबे के बर्तनों का कोई भविष्य नहीं दिखने से युवाओं का भी रुझान पारंपरिक व्यवसाय में नहीं है, जिसके चलते वह रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों में पलायन कर रहे हैं. बावजूद इसके उंचेहरा की पहचान को बचाने के लिए सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है.

कभी देश विदेश में पहचान रखने वाला यह उद्योग अब सिमटता जा रहा है. उंचेहरा में रहने वाला ताम्रकार समाज कई पीढ़ियों से इस उद्योग से जुड़ा है, लेकिन पारंपरिक व्यवसाय में विशेष लाभ नहीं होने से केवल दर्जनभर परिवार ही इस व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं.

कारीगरों का कहना है कि पहले बहुत काम मिलता था लेकिन अब गुजारा करना भी मुश्किल हो रहा है. बावजूद इसके न सरकार और न ही जनप्रतिनिधि उनकी इस विरासत को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा है. ईटीवी भारत ने इस विषय में एसडीएम से बात की, जिस पर उन्होंने कहा कि सही मार्केटिंग और युवाओं की रुचि इस क्षेत्र में नहीं होने से उंचेहरा की यह कला सिकुड़ती जा रही है. इस कला को संरक्षित करने के लिए पहले जिला स्तर पर प्रयास किए जा चुके हैं,आगे इसे देश-विदेश में कैसे पहुंचाया जाए इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं.

Intro:एंकर --
सतना जिले के एक ऐसा गांव जहां आज भी कांसा और पीतल के घरेलू उद्योग द्वारा बर्तन बनाए जाते हैं. यहां के लोग कासे और पीतल के बर्तन हाथों से गढ़कर बनाते हैं. इसमें किसी भी प्रकार से मशीनों का उपयोग नहीं किया जाता. यह तस्वीरें हैं सतना जिले के उचेहरा तहसील की जहां कांसे और पीतल के बर्तन बनाने का काम हाथों से किया जाता है. यह काम आजादी के बाद से आज तक चला आ रहा है.यहां ताम्रकार समाज के पांच सौ परिवार इस काम से जुड़े हुए थे. जो अब केवल दर्जनभर ही रह गए हैं. इस उद्योग को करने वाले लोग यहां से पलायन करने लगे हैं. इसकी वजह यह है कि इस उद्योग में ना तो शासन प्रशासन और ना ही कोई जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान दे रहा है ।


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सतना जिले के उचेहरा तहसील में कासा और पीतल घरेलू उद्योग अपने आप में कई इतिहास समेटे हुए हैं. यहां के बर्तन हाथों से गिरकर बनाए जाते हैं. और यह पूरे भारतवर्ष में कांसा उद्योग में सबसे प्रमुख माना जाता है. यहां के बर्तन देश-विदेश तक जाते हैं. यहां ताम्रकार समाज के 5 सौ परिवार जिसकी आबादी लगभग 5 हजार है. जो आजादी के बाद से आज तक इस उद्योग को करते चले आ रहे हैं. 5 सौ परिवारों में अब उचेहरा तहसील में दर्जनभर परिवार ही इस उद्योग के जरिए बर्तन बनाने का काम करते हैं. बाकी लोग यहां से पलायन कर चुके हैं. इनकी कई पीढ़ियां बर्तन बनाने की कला आज भी जीवित रखे हुए हैं. काशी की इस उद्योग के लिए आजादी से लेकर अब तक किसी भी सरकारी या जनप्रतिनिधि ने इसकी चमक बरकरार रखने के लिए जमीनी स्तर पर कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए. जिसके कारण इस घरेलू कासा उद्योग की चमक फीकी पड़ती जा रही है. परंपरागत उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार लाख दावे करती है लेकिन इन दावों की जमीनी हकीकत इसकी सच्चाई बयां कर रही हैं. कभी पूरे देश में प्रसिद्ध उचेहरा के कांसे के बर्तन का कारोबार अब सिमट कर रह गया है. पहले के समय में यहां बर्तन बनाने की टक टक की आवाज हर घर में सुनाई देती थी लेकिन यह आवाज केवल सिमटकर दर्जनभर घरों तक ही सीमित रह गई है. कांसे के बर्तन बनाने वाले कारीगर भी अब रोजी रोटी के लिए मोहताज हो रहे हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी करते चले आ रहे हैं इस कारोबार में बड़ी मुश्किल में काम मिल पाता है और वह दिन दूर नहीं कि जब कांसे के बर्तन का कारोबार विलुप्त की कगार में होगा. इस व्यवसाय में आमदनी घटने के साथ-साथ युवाओं का भी रुझान काटने लगा है. इसका सबसे बड़ा कारण इस उद्योग के प्रति सरकार और लोगों की बेरुखी है. सरकार और नेताओं ने इस उद्योग को बढ़ावा के लिए समय-समय पर चुनावों पर तमाम घोषणाएं की लेकिन वह घोषणा चुनावी वादे तक ही सीमित रह गई. काशी के कारोबार में लगे युवा व्यवसाई चाहते हैं कि इस उद्योग को जिंदा रखने के लिए सरकार कुछ ठोस पहल करें जिससे कि इस उद्योग की चमक बरकरार रखी जा सके. उचेहरा के ताम्रकार समाज के लोग कांसे के बर्तन उद्योग को गर्त में ले जाने की अहम वजह सरकार की नीतियों को मानते हैं. और आज के समय में स्टील प्लास्टिक सिल्वर के उद्योग को बढ़ावा देने से यह उद्योग अब विलुप्त की कगार पर है. लोग इस कारोबार को छोड़कर पलायन कर रहे हैं. लेकिन इसको आज तक शासन-प्रशासन और जल कोई भी जनप्रतिनिधि ध्यान नहीं दे रहा है. पहले के जमाने में राजा रजवाड़े इन्हीं बर्तनों का उपयोग करते थे जिससे लोग निरोग रहते थे और सौ सौ वर्षों तक जीवित रहते थे. आज बाजारों में स्टील और प्लास्टिक सिल्वर के बर्तन आ जाने से कांसे का व्यापार ढप होता नजर आ रहा है ।

Vo 2--
सतना ईटीवी भारत द्वारा इस मामले को उचेहरा एसडीएम संस्कृति शर्मा के संज्ञान में लाया गया जिसमें एसडीएम ने बताया उचेहरा तहसील के अंतर्गत बहुत बढ़िया कांसे का काम किया जा सकता है.लेकिन अब बहुत सीमित परिवार इस कारोबार उद्योग से जुड़े हुए हैं.बहुत सारे कारण हैं कि लोग इस उद्योग को कैरी फॉरवर्ड नहीं करना चाहते,एक तो मार्केट संबंधित दिखते हैं दूसरी जो युवा पीढ़ी हैं वह इस कार्य में रुचि नहीं ले रहे हैं.यह इतना बढ़िया उद्योग है कि शासन की तरफ से इसमें विचार किया जा रहा है कि कैसे यहां की कला को हम जिला स्तर पर प्रदेश स्तर पर देश-विदेश स्तर पर हम इसे कैसे पहुंचा सकते हैं. इस संबंध में पहले भी जिला स्तर पर प्रयास किए जा चुके हैं. और आगे भी इसमें प्रयास किए जाएंगे. और अगर कोई भी बाहर की टीम यहां आती है तो इस काम सर्वे कराएंगे और इस कला को पूरे देश विदेश तक पहुंचाने का काम करेंगे. ताकि लोग इसके बारे में जाने और जागरूक हो सके ।


Conclusion:byte --
रामकरण ताम्रकार -- कासा व्यवसाई ऊँचेहरा सतना ।
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रोहित कुमार -- युवा व्यापारी ऊँचेहरा सतना ।
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अशोक ताम्रकार -- जिलाध्यक्ष ताम्रकार समाज ।
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संस्कृति शर्मा -- एसडीएम ऊँचेहरा सतना ।


Last Updated : Oct 12, 2019, 3:23 PM IST
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