सतना। जिले में एक ऐसा विद्यालय है, जहां अंग्रेजों के जमाने में जेल हुआ करती थी. यहां आरोपियों को फांसी (Culprits hanging) दी जाती थी. इस विद्यालय में अंग्रेजों के जमाने की कोर्ट कचहरी, जेल, नगर पालिका और कांजी हाउस हुआ करता था, लेकिन बदलते समय के साथ यह जेल विद्यालय में परिवर्तित हो गई. इस विद्यालय को वेंकट हाई स्कूल (Venkata High School) के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद इसका नाम बदलकर वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई (Maharani Laxmibai) रख दिया गया. ईटीवी भारत इस खास रिपोर्ट में महारानी लक्ष्मीबाई विद्यालय की खासियत बताएगा.
1873 में हुई विद्यालय की शुरुआत
शहर के बीचोबीच स्टेशन रोड, पन्नीलाल चौक, हॉस्पिटल चौक के अंतर्गत महारानी लक्ष्मी बाई के नाम से विद्यालय संचालित हो रहा है. अंग्रेजों के जमाने में यहां पर जेल हुआ करती थी. यहां जेल के अलावा अंग्रेजों के जमाने की नगर पालिका, कांजी हाउस कचहरी भी थी. आजादी के बाद से इस विद्यालय का नाम महारानी लक्ष्मी बाई रख दिया गया. विद्यालय की शुरुआत 1873 में हुई. सन 1886 में इसका विस्तारीकरण हुआ. विद्यालय में 6 कमरे बने थे, इन्हीं छह कमरों में वेंकट स्कूल शुरू हुआ.
1948 में बना बालिका शिक्षा केंद्र
41 वर्षों तक यह विद्यालय बालक-बालिकाओं का शिक्षा का केंद्र बना रहा. 1927 में वेंकट स्कूल की इमारत बनी और वह स्थानांतरित हो गया. इसके बाद 1948 में यह बालिका शिक्षा (Girls School) का केंद्र बना. अंग्रेजों के जमाने में यहां पर दो कमरों की जेल, एक कमरे का माल खाना और सिपाहियों के रहने के लिए 10 कमरे बने थे. 1850 तक इस विद्यालय में तहसील और नगर पालिका संचालित थी. 8 अगस्त 1922 को यह स्थान विधिवत शिक्षा के केंद्र के रूप में विकसित हुआ. इसके बाद हाईस्कूल और 1960 में विद्यालय को हायर सेकेंडरी (Higher Secondary School Satna) की मान्यता मिल गई.
विद्यालय ने पूरे किये अपने 99 वर्ष
विद्यालय में अभी भी अंग्रेजों के जमाने के जेल खाने का एक लोहे का गेट, बड़े-बड़े रोशनदान, कुंआ, दरवाजे दिवारें आज भी सुरक्षित हैं. विद्यालय में लगातार छात्राओं की संख्या में इजाफा होता रहा. वर्तमान में विद्यालय में करीब 2306 बच्चियां अध्ययनरत हैं. शिक्षा के अलावा भी विद्यालय में बच्चियों के लिए अनेक गतिविधियां (Girls College Activity) संचालित होती हैं. यह विद्यालय 8 अगस्त को अपने 99 वर्ष पूरे कर चुका है और शताब्दी वर्ष में कदम रख चुका है.
बड़े-बड़े मुकाम तक पहुंचे यहां के छात्र
99 वर्ष पुराने इस विद्यालय के जानकारी बारे में आज भी लोगों में अभाव है. इस विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी आज बड़े-बड़े मुकाम तक पहुंच गए हैं. तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर (Former CM Babulal Gaur) ने विद्यालय के कायाकल्प के लिए 50 लाख रुपए स्वीकृत किए थे. उस वक्त सतना कलेक्टर उमाकांत उमराव हुआ करते थे.
अंग्रेजों के जमाने में कैदियों को दी जाती थी फांसी
साहित्यकार अशोक शुक्ला ने बताया कि सतना जिले का यह ऐतिहासिक विद्यालय राजशाही के दौर के समय का है. किसी समय में यहां जेल हुआ करती थी, जहां कैदियों को फांसी भी दी जाती थी. उन्होंने बताया कि इस विद्यालय में शहर के बड़े नामचीन लोग पढ़ा करते थे. जिसमें एक बड़ा नाम हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल (Himachal Pradesh Governor) स्वर्गीय गुलशेर अहमद हैं. वह बैरिस्टर भी रह चुके हैं. इस विद्यालय से ही उन्होंने शिक्षा दीक्षा प्राप्त की है.
महारानी लक्ष्मीबाई के नाम से हुआ नामकरण
साहित्यकार ने बताया कि आजादी के बाद जब देश स्वतंत्र हुआ था, तब वीरांगनाओं के नाम पर या जो शहीद हैं, उनके नाम पर विद्यालय के नाम रखे जाते थे. उस समय महारानी लक्ष्मीबाई वीरांगना के नाम पर इस विद्यालय का नामकरण किया गया. पहले यहां पर छात्र-छात्राएं पढ़ते थे, लेकिन बाद में यह केवल छात्राओं के लिए विद्यालय कर दिया गया.
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इस विद्यालय में अध्ययन की हुईं अंजू सिंह आज आईएएस अधिकारी (IAS Officer) हैं. वहीं डॉ. गीता बनर्जी जानी-मानी डॉक्टर (Rewa Famous Doctor) हैं, जो रीवा में कार्यरत हैं. सतना की पूर्व महापौर विमला पांडेय ने भी इसी विद्यालय में अपनी शिक्षा हासिल की. 5 छात्राएं ऐसी हैं, जो इसी विद्यालय में पढ़ने के बाद शिक्षक पद पर पदस्थ हैं.
हर साल 19 नवंबर को मनायी जाती है लक्ष्मीबाई की जयंती
विद्यालय के प्राचार्य कुमकुम भट्टाचार्य ने बताया कि यह विद्यालय 8 अगस्त को 99 वर्ष पूरे कर 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है. इस विद्यालय में 19 नवंबर को हर वर्ष महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. अगर इस वर्ष कोरोना की तीसरी लहर की स्थिति सामान्य रही तो 19 नवंबर महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा.