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क्या आप जानते हैं MP का ऐसा राजघराना, जहां कभी सिंहासन पर नहीं बैठा राजा, जानें क्यों

रीवा रियासत की राजगद्दी पर नहीं बैठते थे राजा, सदियों से चली आ रही परंपरा

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Published : Feb 7, 2019, 5:14 PM IST

रीवा राजघराने की राजगद्दी

रीवा। राजशाही में राजगद्दी की चाहत हर राजा की होती है, क्योंकि जिसकी जितनी बड़ी गद्दी उसका उतना बड़ा वैभव, लेकिन मध्यप्रदेश में एक ऐसा राजघराना है जहां के राजा कभी राजगद्दी पर नहीं बैठे. इन राजाओं ने शासन तो खूब किया मगर सिंहासन पर बैठना कभी स्वीकार नहीं किया. ये राजघराना है रीवा का, जहां सदियों तक चले शासन के बाद भी कोई राजा राजगद्दी पर नहीं बैठा.

रीवा राजघराने की परंपरा है कि यहां राजगद्दी पर राजाओं की जगह भगवान राम को बैठाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि रीवा राजघराने के कुल देवता भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण हैं. इसके चलते उनके भाई भगवान राम को ही रीवा का महाराजा माना जाता है, क्योंकि लक्ष्मण भगवान राम से छोटे थे इसलिये वो भी सिंहासन पर नहीं बैठते.

रीवा राजघराने की राजगद्दी
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यही वजह है कि रीवा रियासत के 400 वर्षों के इतिहास में यहां की राजगद्दी पर कभी कोई राजा नहीं बैठा. इसी परंपरा की वजह से रीवा राजघराने की देश में अलग पहचान बनी और उसे बिना राजा वाली राजगद्दी के रूप में जाना जाता है.

रीवा। राजशाही में राजगद्दी की चाहत हर राजा की होती है, क्योंकि जिसकी जितनी बड़ी गद्दी उसका उतना बड़ा वैभव, लेकिन मध्यप्रदेश में एक ऐसा राजघराना है जहां के राजा कभी राजगद्दी पर नहीं बैठे. इन राजाओं ने शासन तो खूब किया मगर सिंहासन पर बैठना कभी स्वीकार नहीं किया. ये राजघराना है रीवा का, जहां सदियों तक चले शासन के बाद भी कोई राजा राजगद्दी पर नहीं बैठा.

रीवा राजघराने की परंपरा है कि यहां राजगद्दी पर राजाओं की जगह भगवान राम को बैठाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि रीवा राजघराने के कुल देवता भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण हैं. इसके चलते उनके भाई भगवान राम को ही रीवा का महाराजा माना जाता है, क्योंकि लक्ष्मण भगवान राम से छोटे थे इसलिये वो भी सिंहासन पर नहीं बैठते.

रीवा राजघराने की राजगद्दी
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यही वजह है कि रीवा रियासत के 400 वर्षों के इतिहास में यहां की राजगद्दी पर कभी कोई राजा नहीं बैठा. इसी परंपरा की वजह से रीवा राजघराने की देश में अलग पहचान बनी और उसे बिना राजा वाली राजगद्दी के रूप में जाना जाता है.

Intro:रीवा- जिस राजगद्दी की चाहत मे कत्ल कर दिये जाते थे पुत्र-पिता की हत्या, भाई-भाई की और रियासत मे बगवात हुआ करती थी। लेकिन एक ऐसी रियासत जिसमे महाराज गद्दी में बैठने की इच्छा नही रखते थे। राजगद्दी को भगवान आसन माना । रीवा में यह परंपरा आज भी कायम है यहां राजगद्दी में महाराजा नही बल्कि बैठते है राजाधिराज। राजशाही ठाट-बाट में राजगद्दी का अपना विशेष महत्व होता है जिसकी गद्दी जितनी बडी उसका वैभव उतना बडा। ऐसे मे भला कौन राजा-महाराज इसमे बैठना नही चाहेगे।


Body:वियो- रीवा रियासत के 400 वर्षो के इतिहास के दौरान कोई महाराजा राजगद्दी मे नही बैठे। राजगद्दी मे बैठाया राजाधिराज भगवान विष्णू को। यह इसलिए कि गद्दी को इन्होने भगवान का आसन समझकर उसके सामने सर झुका लिया। रीवा रियासत के वैभव शाही महाराज पुष्पराज सिंह वर्षो से चली आ रही इस परंपरा आज भी कायम रखे है। गद्दी पूजा के बाद महराज साहब के द्वारा नीलकंठ छोडा गया क्योंकि उसको शुभ माना जाता है महराज ने सभी नगरवासियों को दशहरे की शुभकामनाय दी और भगवान से सभी देशवासियों की खुशहाली और समृद्ध की प्राथना की।

वहीं इस म्यूजियम में राजघराने के अस्त्र शस्त्र, सिंहासन ढाल बंधु के बर्तन आदि संरक्षित हैं।  यहां एक 14 किलो वजन का पीतल का अद्भुत ताला भी है जिसे खोलने के लिए चार चाबी या लगती हैं।   वहीं म्यूजियम के अंदर एक अनोखी पेन है जिससे लिखा भी जाता है और बंदूक की तरह गोली भी दागी जाती थी। यहां 8 किलोग्राम से 20 किलो वजन तक की बंदूके हैं। इन बंदूकों के भजन से अंदाजा लगाया जा सकता है कि किन को चलाने वाले लोग कितने हष्ट पुष्ट रहे होंगे जो कि रीवा राजघराने की शान माने जाते रहे होंगे।  



वहीं किले के अंदर म्यूजियम में एक अनोखी सूर्य घड़ी भी है जो अपने आप चलती है यहां महाराजा के हाथी मे रखने वाला चांदी का सिंहासन भी है जिसके ऊपर सोने की बनी हुई हनुमान जी की मूर्ति है हाथी की साज-सज्जा के सभी आभूषण इस म्यूजियम की शोभा बढ़ाते हैं।




Conclusion:..
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