रीवा। जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद गुरुवार को अल्प प्रवास पर रीवा पहुंचे. इस दौरान वह मीडिया से बात करते हुए भारत और देश की संस्कृति से जुडे़ कई विषयों पर चर्चा की. जगत गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा की जिस देश का मूल ही संस्कृत हो उस देश में संस्कृत की उपेक्षा हो रही है. इस लिए भारत इंडिया बन गया, अब न्यू इंडिया बनने की ओर है. भारत से भारतीयता खो गई है. इसलिए अब भारत में अगर भारतीयता को अगर बचा के रखना है तो भारत को संस्कृत भाषा का एक बार फिर से अध्ययन अध्यापन शुरु करने की आवश्यकता है.
राजनीति और धर्म अलग-अलग क्षेत्र: राजनीति में धर्म का प्रवेश होने के सवाल पर जगतगुरु शंकरचार्य अविमुक्तेश्वरानंद स्वामी ने कहा की राजनीति का एक अपना अलग क्षेत्र है और धर्म का अपना अलग क्षेत्र है. दोनों ही क्षेत्र के लोग एक दूसरे का सहयोग करें, यह बात तो समझ में आती है, लेकिन एक दूसरे के क्षेत्र में अतिक्रमण और अधिग्रहण करें और एक दूसरे के क्षेत्र को अपना लें, यह उचित नहीं है. इसलिए दोनों क्षेत्रों की अपनी-अपनी पवित्रता को बनाएं रखना चाहिए. जो भी राजनीतिज्ञ है. वह देश की सत्ता को अपने हाथों में लें और सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य जो भी देशवासियों की मूलभूत आवश्यकताएं हैं, उन्हे वह पूरा करे. लॉ इन आर्डर को मेंटेन करें और जनकल्याण के उपाय करें, यह सब उनके कार्य हैं. आध्यात्मिक और धार्मिक रुप से व्यक्ति के मानसिक आध्यात्मिक उन्नयन का कार्य करें.
राजनेता अब धर्मगुरुओं से नहीं लेते मार्गदर्शन: देश हित के लिए जगतगुरुओं द्वारा राजनेताओं के मार्गदर्शन को लेकर जगत गुरू शंकरचार्य अविमुक्तेश्वरानंद स्वामी ने कहा की हम राजनेताओं का मार्गदर्शन तो अभी भी करते हैं, लेकिन अब समस्या यह हो गई है की जो राजनीतिज्ञ पहले धर्माचार्यों के पास मार्गदर्शन लेने के लिए आते थे. अब परिस्थितियां बदल चुकी है, राजनेता अब आते है तो अपना ठप्पा लगाने के लिऐ या फोटो खिंचवाकर उसका लाभ लेने के लिए आते हैं. मार्गदर्शन अब किसी को नहीं चाहिए. अगर देने लगो तो आना बंद कर देते हैं.
जगतगुरु बोले भारत में हो रही संस्कृति की उपेक्षा: विलुप्त हो रही संस्कृत भाषा को लेकर जगत गुरु ने कहा की भारत एक शब्द है. देश का एक नाम है. संस्कृत भाषा में है "भा" का मतलब क्या होता है और "रत" का मतलब क्या होता है. जब तक संस्कृत भाषा कोई नहीं पढ़ेगा, तब तक नहीं जान सकता है कौन सी संधि है कौन सा समास है. किस तरह से कैसे इसकी उत्पत्ति हुई है तो जिस देश में मूल ही संस्कृत हो उस देश में संस्कृत की उपेक्षा हो रही है. इसलिए भारत इंडिया बन गया, अब न्यू इंडिया बनने की ओर है. भारत से भारतीयता खो गई है. भारत में अगर भारतीयता को बचा के रखना है तो भारत को संस्कृत भाषा का एक बार फिर से अध्ययन अध्यापन शुरु करने की आवश्यकता है. भारत के राजनीतिज्ञों को पता नहीं है की कभी भारत से पूरा विश्व सीखता था, क्या अब हम भारत के लोग दूसरे देशों से सीखेंगे.
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कभी भारत से सीखता था पूरा विश्व: अविमुक्तेश्वरानंद स्वामी ने कहा की राजनीतिज्ञ सक्षम हो भारत की भारतीयत को समझे और समझकर विधि अनुरूप व्यवस्था बनाए हम यही कहना चाहेंगे. हमारे देश में जो भी राजनीतिज्ञ वर्तमान में दिखाई दे रहे हैं, उनमें से अधिकतर कुछ पाश्चात्य संस्कृत के पिछलग्गू हो गए हैं. देश में अगर कुछ करना होता है, तो अपने यहां से प्रतिनिधित्व मंडल बनाकर के विदेश भेजते हैं. यह कह के भेजते हैं की जैसा विदेशों में है, देखकर आओ और वैसा ही भारत में करो. हम यह समझते हैं की भारतीय संस्कृति के प्रति उनमें आत्मगौरव की कमी है. अपनी सुरक्षा अपनी शिक्षा अपनी व्यवस्था अपने पाश्चात्य के अंधा अनुकरण की प्रवृत्ति है. इससे अगर हमारे राजनीतिज्ञ बचे और भारत की भारतीयता को बचा सके तो यह हमारे देश हित में होगा.